राजस्थान की महिलाएं तैयार कर रहीं कैमिकल फ्री कलर, इसे लेकर नो टेंशन होकर खेलें होली

मनमोहन सेजू/बाड़मेर : पश्चिम राजस्थान के सरहदी बाड़मेर जिले में होली से पहले ही चटक रंगों की बहार आ गई है. ऐसे में बाड़मेर शहर की महिलाओं ने हर्बल गुलाल बनाने का बीड़ा उठाया है. यहां की महिलाएं रंग-बिरंगे खुशबूदार फूलों से लाल, पीला, हरा, संतरा, नीला, गुलाबी, रंग का गुलाल बना रही हैं. इससे न केवल महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही है बल्कि यह रंग शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.
होली के अगले दिनों अस्पतालों में बढ़ने वाली भीड़ की वजह केमिकल वाले कलर और गुलाल होते है. कई लोगो के लिए होली के रंग उनकी जिंदगी को इतना बदरंग कर देता है कि लोग होली के रंग से ही तौबा कर लेते है, लेकिन सरहदी बाड़मेर में एक कुटीर उद्योग में बनने वाला गुलाल इन सभी परेशानियों से निजात दिलाने वाला है. बाड़मेर जिला मुख्यालय पर महिलाओं के स्वयं सहायता समूह द्वारा तैयार किया जाने वाला प्राकृतिक अबीर और गुलाल ना केवल लोगों की पसंद बनता जा रहा है बल्कि लोगों में इसकी डिमांड पिछले साल से ज्यादा अब और बढ़ गई है.
बाड़मेर शहर के तिलक नगर निवासी हीरों प्रजापत, निर्मला प्रजापत और इंदु प्रजापत अपने घर पर ही हरी सब्जियों व फूलों से हर्बल गुलाल बना रही है. इससे महिलाएं आत्मनिर्भर भी हो रही हैं. हर्बल गुलाल बनाने वाली निर्मला प्रजापत के मुताबिक फूलों, सब्जियों और मिठाई के उपयोग में लिए जाने वाले अरारोट के आटे से हर्बल गुलाल बनाया जा रहा है. गेंदा, गुलाब जैसे खुशबूदार फूलों के अलावा चुकंदर, अनार, टमाटर, पालक,पोदीना, नीम की पत्तियों का इस्तेमाल कर हर्बल गुलाल बनाया जा रहा है.
इसके अलावा गीता व सीमा प्रजापत भी इस काम में हाथ बंटवाती हैं. वहीं स्वयं सहायता ग्रुप से जुड़ी हीरों प्रजापत बताती है कि होली से पहले इसे बनाना शुरू किया जाता है. यह हल्का फीका होता है जिसकी वजह से यह करीब तीन साल तक खराब नही होता है. वह बताती हैं कि पिछले साल की तुलना में इस बार अधिक हर्बल गुलाल की बिक्री की उम्मीद है. वह इसे 350 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचती है.
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FIRST PUBLISHED : March 15, 2024, 17:36 IST