अफगानिस्तान से जुड़ा है रिश्ता ,In Jaipur a crowd gathered for the life of Imam Hussain Kulah-e-Mubarak cap– News18 Hindi

जयपुर. शहर में सदियों से मुहर्रम (muharram) की दस तारीख को ताजिए निकाले जा रहे हैं. इस दिन हल्दियों के रास्ते के ऊंचा कुंआ स्थित सलीम मंजिल में 1876 से हजरत इमाम हुसैन (imam hussain) की कुलाह-ए-मुबारक, यानि इमाम हुसैन की टोपी- की जि़यारत कराई जाती रही है. जयपुर के जौहरी बाजार स्थित ऐतिहासिक सलीम मंजिल में नौ तारीख की शाम से इस टोपी का दीदार शुरू होता है. मुहर्रम की दस तारीख की शाम पांच बजे तक इसके दीदार कराये जाते हैं.
सलीम मंजिल में मुहर्रम की नौ तारीख यानि गुरुवार शाम से ही कुलाहे मुबारक को जियारत के लिए रख दिया गया था. शाम पांच बजे तक ये सिलसिला जारी रहा. हज़रत ईमाम से मुहब्बत करने वाले लोगों का इन दो दिन यहां हुजूम उमड़ पड़ता है. यहां अकीदतमंद अपनी मुरादें लेकर आते हैं. इन दो दिनों कुलाहे मुबारक कांच के फ्रेम लगे बॉक्स में रखी जाती है. इसे एक बड़े हॉल में रखा जाता है, जहां पूरे कमरे में इत्र और फूलों की महक से माहौल खुश्बू से तर कर दिया जाता है.
हर साल मीलाद शरीफ के साथ कुलाहे मुबारक की जियारत शुरू होती है. पिछले 145 साल से जयपुर में यही सिलसिला जारी है. सन 1876 में ये कुलाके मुबारक जयपुर के हकीम सलीम खान को अफगानिस्तान के बादशाह ने भेंट की थी. सलीम खान जयपुर स्टेट के इकलौते ठिकानेदार और जागीरदार थे. वे बहुत माहिर हकीम भी थे. उस दौरान उन्होंने अफ़गानिस्तान के बादशाह के बेटे का इलाज किया था. उससे खुश होकर बादशाह ने ये कुलाहे मुबारक बतौर नज़राना हकीम सलीम खान को भेंट की थी. हालांकि बरसों इसकी हिफाज़त और देखरेख करने वाले सलीम खान के पोते नसीमुद्दीन खां प्यारे मियां पिछले साल इस दुनिया को कोरोना के दौरान अलविदा कह गए. अब उनके बेटे मुईनुद्दीन खां ने जिम्मेदारी संभाली और कुलाके मुबारक की जियारत का सिलसिला जारी रखा है.
कुलाह-ए-मुबारक मुईनुद्दीन खां कहते हैं कि पूरी दुनिया में हज़रत ईमाम हुसैन की कुलाहे मुबारक सिर्फ हमारे यहां ही सुरक्षित मौजूद है. इसके पूरे सिलसिले का ताम्रपत्र मय बादशाह की मुहर हमारे पास मौजूद है कि पिछले 1400 साल में कब कहां किसके पास मौजूद रही.
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