अशोक गहलोत पर कांग्रेस हाईकमान ने कसा शिकंजा, पायलट गुट खुश; आगे क्या होगा?

ऐसा हुआ क्यों
पहली वजह तो ये कि सचिन पायलट के बगावत के बाद 11 महीने पहले पायलट को हटाकर गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था लेकिन गहलोत-पायलट गुट की जंग में डोटासरा न तो संगठन न तो जिला अध्यक्ष बना पाए, न ही संगठन में जिला से लेकर ब्लॉक लेवल पर नियुक्तियां कर पाए.
सचिन पायलट लगातार संगठन में अपने समर्थकों की भागीदारी का दबाब बना रहे थे लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट का वजन अब बढ़ने नहीं देना चाहते थे. पायलट जब अध्यक्ष थे तब उनके साथ संगठन की लंबी चौड़ी टीम थी. पायलट चाहते थे कि संगठन में हटाए गए उनके समर्थकों की फिर बहाली हो. इसी खींचतान में संगठन सिर्फ अध्यक्ष को चलाना पड़ रहा है. कांग्रेस आलाकमान को समझ में आ गया कि दोनों की खींचतान में जमीनी स्तर पर पार्टी की दिशा औऱ दिशा बिगड़ सकती है, इसलिए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की प्रकिया से अधिकार अपने हाथ में लिए हैं.
अब पार्टी नेतृत्व दोनों गुटों के नेताओं को समायोजित करने की कोशिश करेगा जिससे झगड़ा थमे. हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटसरा ने ये तो माना कि पार्टी नेतृत्व ने जिलाध्यक्षों के मनोनयन के लिए सीधे जिला प्रभारियो से नाम मांगे, लेकिन सफाई दी उनसे भी नाम मांगे गए और जब फैसला होगा तब सहमति से होगा कि कौन कौन जिला अध्यक्ष बनेंगे.
आगे क्या होगा
सचिन पायलट गुट चाहता है कि पार्टी नेतृत्व मंत्रीमंडल विस्तार से लेकर राजनीतिक नियुक्तियों का फैसला भी खुद करे न कि गहलोत जिससे सचिन पायलट कांग्रेस नेतृत्व को 10 महीने का वादा याद दिलाकर सरकार में अधिक भागीदारी हासिल कर पाएंगे. दूसरी तरफ अशोक गहलोत नहीं चाहेंगे कि उनके मंत्रीमंडल के विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियो में केंद्रीय नेतृत्व का अधिक दखल हो. गहलोत इसे टालना चाहते हैं लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने शायद पहला संदेश मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दे दिया कि पायलट को भी साथ लेकर चलना होगा. अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो दखल आगे और बढ़ सकता है. यानी संदेश साफ राजस्थान में पायलट भी जरूरी है. सुप्रीम वीटो पावर गहलोत के पास नहीं हाईकमान के पास है. ये भी संदेश कि पार्टी आलाकमान सिर्फ नाममात्र नहीं, पावरफुल भी हैं और फैसले ले सकता है.