आपराधिक मामलों में उम्र के निर्धारण का आधार केवल 10वीं की मार्कशीट ही नहीं है, और भी दस्तावेज हैं- HC

जयपुर. अभी तक किसी भी व्यक्ति की आयु का प्रमाण (Proof of age) उसकी दसवीं की अंक तालिका (10th mark sheet) को माना जाता रहा है. लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट (Rajasthan High Court) ने अपने एक आदेश में यह साफ किया है कि अगर आपराधिक मामलों में आयु संबंधित कोई विवाद है तो ऐसी स्थिति में केवल दसवीं की अंकतालिका ही अंतिम विकल्प नहीं है. पहली बार स्कूल के रजिस्टर में दर्ज जन्मतिथि से भी आपकी आयु का निर्धारण किया जा सकता है. खासतौर पर तब जब मामला दुष्कर्म अथवा गंभीर अपराधों (Rape or serious offenses) से जुड़ा हो.
यह आदेश जस्टिस उमाशंकर व्यास की अदालत ने आरोपी अनिल कुमार मीणा की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए दिया. आरोपी अनिल ने पोक्सो कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की थी. हाई कोर्ट ने जेजे एक्ट की धारा 94 के आधार पर आदेश देते हुये कहा कि जहां भी व्यक्ति के बालिग होने और किशोर होने में विवाद हो वहां जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 94 (2) के अनुसार क्लॉज (i) को आयु के प्रमाण-पत्र के रूप में प्राथमिकता दी गई है.
ये दस्तावेज माने गये हैं मान्य
इसमें विद्यालय में पहली बार प्रवेश के दौरान दर्ज करवाई गई जन्मतिथि अथवा दसवीं की मार्कशीट और उससे संबंधित दस्तावेज मान्य होंगे. उसके बाद स्थानीय निकाय की ओर से जारी किए प्रमाण-पत्र के आधार पर आयु का निर्धारण होगा. वहीं अंत में अगर इन दोनों से भी आयु का निर्धारण नहीं होता है तो एक्ट की धारा 94 (2) के सब क्लॉज 3 में दिए गए ऑसिफिकेशन अथवा अन्य किसी मेडिकल टेस्ट से आयु का निर्धारण करना होगा.
यह था पूरा मामला
दरअसल आरोपी पवन मीणा पर जमवारामगढ़ थाने में 27 जनवरी को तीन साल की मासूम के साथ दुष्कर्म करने मामला दर्ज हुआ था. लेकिन अभियुक्त मीणा की ओर से पोक्सो कोर्ट में प्रार्थना-पत्र दायर करके कहा गया कि घटना की दिनांक 7 जनवरी 2021 को वह नाबालिग था. ऐसे में उस पर पोक्सो कोर्ट में मामला नहीं चल सकता है. उसका ट्रायल जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत किशोर न्याय बोर्ड में चलाया जाए. अभियुक्त की ओर से दसवीं की मार्कशीट पेश की गई थी. उसमें उसकी जन्मतिथि 11 अप्रेल 2006 दर्ज थी.
हाई कोर्ट ने साफ की स्थिति
वहीं पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार अभियुक्त जब पहली बार स्कूल गया तो उसके स्कूल के रजिस्टर में उसकी आयु 22 अक्टूबर 2002 दर्ज की गई थी. इस आधार पर पोक्सो कोर्ट ने अभियुक्त के प्रार्थना-पत्र को खारिज करते हुए उसे घटना के समय बालिग माना. वहीं हाई कोर्ट ने भी अपने आदेश में माना कि अगर ऐसे मामले जिनमें अभियुक्त अपनी आयु के आधार पर बचने का रास्ता तलाशना चाहे तो उस स्थिति में दसवीं का प्रमाण-पत्र ही एक मात्र उम्र का निर्णय करने के लिए दस्तावेज नहीं माना जा सकता है.
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