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इसरो और नासा की ये सेटेलाइट रखेगी धरती पर पैनी नजर, भूकंप से लेकर भूस्खलन तक की करेगा भविष्यवाणी – News18 हिंदी

सृष्टि चौधरी
नई दिल्‍ली.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अमेरिका स्थित नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के नेतृत्व में एक बड़े संयुक्त मिशन पर काम चल रहा है. लगभग एक साल बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से अपने शक्तिशाली जीएसएलवी को लॉन्च करेगा. इसमें एक एडवांस अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट होगा जो भूमि पर होने वाले परिवर्तनों को अभूतपूर्व विस्तार से ट्रैक करेगा. यह अगले तीन वर्षों में 12 दिनों की नियमितता के साथ पूरे विश्व की मैपिंग करेगा, और यहां तक ​​कि उन स्थानों को भी देखेगा जो अब तक अस्पष्ट थे.

मिशन निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार) को बनाने में आठ साल लग चुके हैं. दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने छोटी और लंबी तरंगदैर्ध्य के लिए इस राडार को अंतिम रूप देने के लिए बहुत मेहनत की है. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एल-बैंड एसएआर पेलोड सिस्टम का निर्माण किया है, तो वहीं उनके भारतीय समकक्षों ने शॉर्ट एस-बैंड एसएआर पेलोड तैयार किया. ये दोनों प्रणालियां मिलकर लगभग 12 मीटर के व्यास वाले एक मेगा रिफ्लेक्टर एंटीना के साथ NISAR बनाती हैं, जो उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के बाद खुल जाएगा. ड्रम के आकार का एंटीना सबसे बड़ा माना जाता है जिसे नासा ने पहले किसी विज्ञान मिशन के लिए अंतरिक्ष में उड़ाया है. भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित ऑन-बोर्ड कैमरे अगले साल की शुरुआत में रॉकेट के अंतरिक्ष में जाने के बाद अंतिम तैनाती को देखने में मदद करेंगे.

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सब सेटेलाइट से बेहतर और सबसे अलग 
अंतरिक्ष में बहुत सारे ऐसे सेटेलाइट हैं जिनसे पृथ्‍वी का ऑबसर्वेशन किया जा रहा है. लेकिन अब कहा गया है कि निसार उन सभी से बेहतर और सबसे अलग है. वैज्ञानिक समझाते हैं कि पृथ्‍वी पर अभी भी व्यापक क्षेत्र हैं जिनका वे लगातार अध्ययन नहीं कर पाए हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादातर खराब मौसम, या चक्रवात या बाढ़ के तुरंत बाद घने बादलों के कारण ऐसे क्षेत्रों पर अध्‍ययन नहीं हो पाया है. अब निसार उन्हें उन बादलों के आर-पार अगले तीन साल तक दिन-रात बेहद सूक्ष्मता से देखने की क्षमता देगा. रडार के सिग्नल घने बादलों को भेद सकते हैं, और पृथ्वी पर व्यापक वनस्पति को उसकी ऊपरी परत में घुसने के लिए भेज सकते हैं. यह अब तक एकत्र किए गए किसी भी अन्य पृथ्वी अवलोकन मिशन की तुलना में बड़े पैमाने पर डेटा उत्पन्न करेगा – एक संकल्प और सटीकता के साथ जो पहले कभी नहीं किया गया है. वास्तव में, रडार 10 मीटर के रूप में छोटे परिवर्तनों का पता लगा सकते हैं, जो विशेषज्ञों को शहरी क्षेत्रों या यहां तक ​​कि शहर के ब्लॉकों के साथ-साथ छोटे कृषि क्षेत्रों में परिवर्तनों का अध्ययन करने में सक्षम बनाता है. रडार से प्रसारित सिग्नल पृथ्वी के जरिए दोबारा ऊपर भेजे जाएंगे जिन्‍हें सेटेलाइट द्वारा प्राप्त किया जाएगा. इसका उपयोग यह अध्ययन करने के लिए किया जाएगा कि पृथ्वी कैसे बदल रही है?

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्‍ययन और आपदाओं की भविष्यवाणी होगी संभव
जब रडार को अगले साल अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया जाएगा, तो यह बड़ी मात्रा में डेटा एकत्र करना शुरू कर देगा कि कैसे भूमि और बर्फ की चादर सहित पृथ्वी बदल रही है. यह अध्ययन करने में मदद करेगा कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के रूप में बर्फ की चादरें कितनी तेजी से पिघल रही हैं, ग्लेशियर बदल रहे हैं और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. यह भूजल स्तर में कमी का पता लगाने में भी सक्षम होगा, और इसका कितना हिस्सा आस-पास के क्षेत्रों को प्रभावित करता है और क्या भूमि का कोई हिस्‍सा डूबना है. यह अध्ययन करने के लिए पर्याप्त डेटा होगा कि कैसे जंगलों में परिवर्तन हो रहा है, और क्या वृक्षों के आवरण में कोई कमी हो रही है. तटीय क्षेत्रों में परिवर्तनों की जांच करने के लिए डेटा होगा, जो क्‍लाइमेट-प्रेरित खतरों से ग्रस्त हैं.

भूकंप, ज्वालामुखी और भूस्खलन की भविष्यवाणी करने में सहायक होगा
यदि मिशन सफल होता है, तो यह वैज्ञानिकों को ऐसे डेटा से भी सशक्त करेगा जो सबसे चुनौतीपूर्ण प्राकृतिक खतरों – भूकंप, ज्वालामुखी और भूस्खलन की भविष्यवाणी करने में सहायक हो सकते हैं. रडार सिग्नल पृथ्वी और उस पर मौजूद वनस्पति में प्रवेश कर सकते हैं और यह पता लगा सकते हैं कि क्या परत खिसकने लगी है – भूस्खलन या भूकंप के शुरुआती संकेत पर ये एक स्‍पष्‍ट संकेत दे सकेंगे. यह एक ज्वालामुखी के अंदर मैग्मा की गति को भी ट्रैक कर सकता है और अगर यह ऊपर आ रहा है – एक सक्रिय ज्वालामुखी के चेतावनी संकेत, साथ ही साथ कई अन्य आपदाएं जिनकी आवृत्ति और तीव्रता क्‍लाइमेट चेंज के कारण बढ़ गई है. यह डेटा जो एक दिन में लगभग 80 टेराबाइट्स तक जा सकता है. इससे किसानों को फायदा होगा. रडार, मिट्टी की नमी के हाई रिज़ॉल्यूशन डेटा प्रदान करेगा. यह विशेषज्ञों को अधिक सटीकता के साथ सूखे या जंगल की आग के शुरुआती संकेतों का पता लगाने में मदद कर सकता है.

एडवांस्‍ड रडार के लिए हुई कड़ी मेहनत, कोरोना महामारी के दौरान भी जारी रहा काम 
वैज्ञानिकों ने एडवांस्‍ड रडार को बनाने में काफी समय लगाया है. यह रडार अंतरिक्ष में खुद को स्थिर बनाए रखने में सक्षम होगा. वैज्ञानिकों ने कोरोना महामारी के दौरान भी कड़ी मेहनत की और तब अधिकांश चर्चा ऑनलाइन सम्मेलनों के माध्यम से हो रही थी. कैलिफोर्निया की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) के वैज्ञानिकों द्वारा अमेरिका में निर्मित और भारत में निर्मित दोनों रडार अब तैयार हैं और एक इकाई में एकीकृत हैं. वैज्ञानिक उपकरण अब आने वाले हफ्तों में आगे परीक्षण करने और अंततः अंतरिक्ष यान बस के साथ एकीकृत करने के लिए भारत में ले जाने के लिए तैयार है. श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जनवरी 2024 में प्रक्षेपण के लिए मंजूरी मिलने से पहले इसरो अब आने वाले महीनों में मिशन की अंतिम यात्रा को आगे बढ़ाएगा.

Tags: ISRO, ISRO satellite launch, Nasa

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