इस घास के सेवन से बुढ़ापे में भी रहेंगे जवान, खरपतवार में छिपा है सेहत का खजाना

घर, खेत-खलिहान या फिर पार्कों में अपने-आप उगने वाली घास-फूस कोई बेकार खरपतवार नहीं होती है. असल में ये औषधीय पौधे होते हैं. इन पौधों में सेहत का खजाना छिपा होता है. जरूरत है पेड़-पौधों या घास-फूस के औषधी गुण को पहचानने की. हिंद पॉकेट बुक्स (पेंगुइन स्वदेश) से डॉ. दीपक आचार्य की पुस्तक ‘जंगल लैबोरेटरी’ प्रकाशित हुई है.
दीपक आचार्य अब हमारे बीच नहीं हैं. बहुत कम उम्र में वे इस दुनिया से रुखस्त कर गए. डॉ. दीपक आचार्य ने माइक्रोबायोलॉजी में पी. एचडी और इथनोबॉटनी विषय में पोस्ट डॉक्टरेट किया था. उन्होंने वर्षों तक जंगलों में आदिवासियों के बीच रहकर जंगली जड़ी-बूटियों का अध्ययन किया. दीपक आचार्य ने अपने शोध और वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर 9 पुस्तकें, 50 से अधिक रिसर्च आर्टिकल और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया पर 5,000 से अधिक लेख लिखे हैं. ‘जंगल लैबोरेटरी’ में दीपक आचार्य ने खरपतवारों के महत्व पर भी रोशनी डाली है.
खेत-खलिहानों में खरपतवार अक्सर किसानों के लिए मुसीबत बनकर आते हैं और इन खरपतवारों को खत्म करने के लिए किसान कई तरह के जहरीले और महंगे पेस्टिसाइड का इस्तेमाल करते हैं. खर-पतवार शब्द सुनकर ही ऐसा लगता है मानो ये सिवाए नुकसान के कुछ और काम नहीं कर सकते. लेकिन यह सचाई नहीं है. “जंगल लैबोरेटरी” में अनेक खर-पतवारों को औषधीय नुस्खों के तौर पर अपनाया जाता है. प्रकृति में जन्मा हर पौधा असामान्य गुण लिए होता है और यह गुण औषधीय भी हो सकता है.
सेहत के लिए ‘अमृत’ से कम नहीं यह पौधा, कई गंभीर बीमारियों को जड़ से कर देता है खत्म!
अब गेहूं की बात करें तो यह भी किसी जमाने में खरपतवार हुआ करता था और आज यही खरपतवार करोड़ों लोगों का पेट भर रहा है. महानगरों में सर्दियों के समय 250 रुपये किलोग्राम के भाव से बिकने वाला बथुआ भी एक खरपतवार है, इसकी खेती नहीं होती है. गेहूं के साथ यह खुद ही उग आता है. इस तरह खेत-खलिहानों और जंगलों में उगने वाले ये खरपतवार किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होते हैं. ‘जंगल लैबोरेटरी’ के आधार पर इस लेख में कुछ खास खरपतवारों के औषधीय महत्व का उल्लेख किया जा रहा है-
पौरुष बढ़ाए ‘अतिबल’
अतिबल पौधे के सभी अंग छाल, पत्ती, फूल, जड़ आदि में कई प्रकार के औषधीय गुण होते हैं. इसका वानस्पतिक नाम एब्युटिलॉन इंडिकम (Abutilon indicum) है. इसे खेतों में खर-पतवार के तौर पर उगता हुआ देखा जा सकता है. आदिवासी इस पौधे को सुखाकर चूर्ण बनाते हैं और फिर शहद के साथ सेवन करते हैं. पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि इस प्रकार का चूर्ण प्रतिदिन एक बार लेने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और असीम ताकत और शक्ति प्राप्त होती है. इसकी पत्तियों के रस को मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है. इसके फूल, पत्तियों, जड़ और छाल का चूर्ण बनाकर पुरुषों को दिया जाए तो उनके शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता में सुधार होता है.
मजबूती प्रदान करता ‘ऊंटकटेरा’
ऊंटकटेरा एक छोटा कंटीला पौधा है जो मैदानी इलाकों, जंगलों और खेतों के आसपास दिखाई देता है. इसके फलों पर चारों तरफ एक-एक इंच लम्बे कांटे लगे होते हैं. ऊंटकटेरा का वानस्पतिक नाम एकीनोप्स एकिनेटस (Echinops Echinatus) है. ऊंटकटेरा की जड़ की छाल के चूर्ण को पान की पत्ती में लपेटकर खाने से सर्दी और खांसी में आराम मिलता है. ऊंटकटेरा के पौधे को अच्छी तरह से धोकर छांव में सुखाकर उनका चूर्ण बना लिया जाए. चूर्ण का चुटकीभर रात को दूध के साथ सेवन करने से ताकत मिलती है. यह वीर्य को भी पुष्ट करता है. गुजरात के डांग जिले के आदिवासी मानते हैं कि इस चूर्ण के साथ अश्वगंधा, पुनर्नवा और अकरकरा की समान मात्रा मिलाकर लिया जाए तो यह शरीर को मजबूती प्रदान करता है.
बुढ़ापे में लाए जवानी ‘पुनर्नवा’
पुनर्नवा घास भी बेहद औषधीय महत्व की है. इस बूटी का वानस्पतिक नाम बोरहाविया डिफ्यूसा (Boerhavia Diffusa) है. आयुर्वेद के अनुसार इस पौधे में व्यक्ति को पुनः नवा अर्थात फिर से जवान कर देने की क्षमता है. मध्य प्रदेश के पातालकोट के आदिवासी भी इसे जवानी दुरुस्त करने वाली दवा के रूप में उपयोग में लाते हैं. पुर्ननवा की ताजी जड़ों का रस (2 चम्मच) दो-तीन महीने तक लगातार दूध के साथ सेवन करने से बूढ़ा भी खुद को जवान महसूस करता है. पीलिया होने पर पुर्ननवा के पौधे के रस में हरड़ या हर्रा के फलों का चूर्ण मिलाकर लेने से आराम मिलता है. हृदय रोगियों के लिए पुर्ननवा के समस्त पौधे का रस और अर्जुन छाल की समान मात्रा बड़ी फायदेमंद होती है. प्रोस्टेट ग्रंथियों के वृद्धि होने पर जड़ के चूर्ण का सेवन लाभकारी होता है.
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FIRST PUBLISHED : January 19, 2024, 15:25 IST