उबलते हुए पानी में चेहरा नहीं देखा जा सकता, गहलोत को आईना दिखाने से पहले शाह अपने गिरेबां में भी…
अमित शाह आए राजस्थान को सूरवीरों,त्याग और भक्ति की भूमि बताते हुए गहलोत सरकार को कोसते हुए भाजपा के गुणगान करके कोरोना के नए वैरिएंट ऑमक्रॉन के बीच चलते बने, लेकिन अहसास करा गए कि अब वैश्विक महामारी का कोई सा भी वैरिएंट देश में आ जाए 2024 तक राजनीतिक पार्टियां अपने वजूद के लिए पब्लिक को भेड़ चाल हांकने के लिए हर तरह से कमर कसे हुए हैं। अब राजनीतिक परिदृश्य में आए दिन पारा सातवें आसमान पर होगा नेताओं का एक दूसरे के खिलाफ, तो पब्लिक को भी विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा के,अपने कल को देखते हुए निर्णय बहुत ही सोच समझ कर लेना होगा,क्योंकि उबलते हुए पानी में चेहरा नहीं देखा जा सकता। बातें भी होगी,वादे भी होंगे,लेकिन उप पर खरा उतरने वाले चेहरे कौनसे होंंगे यह निर्णय देश कि जनता को अब 2022-2023-2024 में करना है। अमित शाह अपनी बात कही और चलते बने अब सोनिया और राहुल भी आएंगे,अपनी बात राजस्थान प्रदेश के जयपुर शहर के माध्यम से देश की आवाम के समक्ष रखेंगे और वे भी चले जाएंगे। अब पब्लिक के ताकड़ी-बांट में कोन कितना खरा उतरता है,यह देश-प्रदेश की जनता को तय करना है।
राजस्थान प्रदेश में 2018 में हुए आम विधानसभा चुनावों में वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ जाकर प्रदेश के मतदाताओं ने निर्णय दिया,लेकिन भरे मंच से वसुंधरा सरकार की खामियां गिनाने के बजाय देश के गृहमंत्री और भाजपा के चाणक्य राजे सरकार के कामकाज के कशीदे पढ़ते हुए दोषारोपण भाजपा के कार्यकर्ताओं पर यह कहकर कर दिय कि उन्होंने वसुंधरा सरकार की उपलब्धियों को प्रदेश में वोट बैंक में नहीं बदला। जो गिरता-पडता जनादेश मिला उसे गहलोत ने भुनाते हुए कांग्रेस सरकार बनाई तो पायलट साहब समर्थक यह कहने लग गए कि प्रदेश में सचिन पायलट की बदौलत सरकार की वापसी हुई है गहलोत की बदौलत तो 21 पर ही सिमट गई थी लेकिन यह पब्लिक है सब जानती है और राजनेताओं से भी कोई छुपा नहीं है कि प्रदेश में आज कांग्रेस सरकार वसुंधरा के खिलाफ गए जनमत के कारण है। इसी के चलते अब कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का फोकस राजस्थान प्रदेश में इस बात पर है कि 2023 में प्रदेश की जनता का वोट बैंक कांग्रेस के पक्ष में ही रहे विरोध में न जाए लेकिन यह कार्य खांडे की धार पर चलने जैसा है।
अब शाह ने प्रदेश दौरे के दौरान कांग्रेस सरकार के मुखिया जननायक और मारवाड़ के गांधी के चलतेअशोक गहलोत को एक ओर उपाधि तिजोरी से नवाजा है। शब्द अपने होते हैं लेकिन जुबां से निकलने के बाद वे सार्वजनिक हो जाते हैं,ऐसे में राजनीति पृष्ठभूमि में जी रहे अमित शाह को यह नहीं पता की उनके स्वयं के गिरेबां में कितने दाग है। आज तिजोरी के रूप में ही देख ले तो स्वयं अमित शाह की राजनीतिक पृष्ठभूमि उनके बेटे जय शाह के लिए किसी तिजोरी से कम नहीं है। सर्च करके देखले की जय शाह की आर्थिक स्थिति 2014 में क्या थी और 2021 में क्या है लेकिन उबलते पानी में अमित शाह को अपना यह बेनामी चेहरा नजर जो नहीं आएगा।इसीलिए तो कहा गया है कि दूसरे पर अंगूली उठाने से पहले यह देख लेना चाहिए कि अपनी तरफ कितनी अंगूली उठ रही है।
- प्रेम शर्मा