एम्स दिल्ली की रिसर्च ने किया साबित, क्लासरूम में बैठकर ही नहीं वर्चुअली भी हो सकती है पढ़ाई बेहतर, पढ़ें रिपोर्ट

हाइलाइट्स
कोरोना महामारी के दौरान वर्चुअल एक्टिविटीज बढ़ गई थीं.
एम्स ने मेडिकल छात्रों को पढ़ाने के लिए वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स के साथ कई प्रयोग किए थे.
कोरोना महामारी ऐसा समय था जब बाजार-दफ्तरों से लेकर स्कूल-कॉलेज तक बंद हो गए थे. स्कूलों की पढ़ाई व्हाट्सएप, फेसबुक, गूगल मीट, या जूम जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर उतर आई थी. मेडिकल फील्ड में भी पोस्टग्रेजुएशन और एमडी की पढ़ाई के दौरान सबसे जरूरी फेस टू फेस एक्टिविटीज भी वर्चुअल मोड में शिफ्ट हो गई थीं. करीब दो साल तक चले इस लंबे पीरियड में जहां वर्चुअल प्लेटफॉर्म को बहुत फायदे की नजर से नहीं देखा गया, वहीं वर्चुअल पढ़ाई की आलोचना भी हुई. हालांकि ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की एक रिसर्च स्टडी वर्चुअल पढ़ाई को लेकर कही जा रहीं बातों को गलत साबित कर रही है. यह रिसर्च बताती है कि सही तरीके से किया गया वर्चुअल मोड का इस्तेमाल क्लासरूम से बेहतर तो नहीं लेकिन हां अन्य माध्यमों के मुकाबले बेहतर हो सकता है.
हाल ही में एम्स नई दिल्ली के फिजियोलॉजी विभाग की एडिशनल प्रोफसर और स्टडी की प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. सिमरन कौर और उनकी टीम की ओर अमेरिकन फिजियोलॉजिकल सोसायटी में प्रकाशित ये स्टडी बताती है कि पूरी प्लानिंग, बेहतर तैयारी और स्ट्रक्चरर्ड तरीके से वर्चुअल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जाए तो यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सबसे ज्यादा कठिन माने जाने वाले मेडिकल ग्रुप डिस्कशन तक को बेहतर तरीके से पेश कर सकता है.
News18Hindi से बातचीत में डॉ. सिमरन कौर ने बताया कि कोरोना के दौरान अचानक से सभी स्कूल-कॉलेजों को क्लासरूम से वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट होना पड़ा था. हालांकि फिजियोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन के छात्रों से जब इस बारे में पूछा गया कि पढ़ाई के दौरान होने वाली क्लास, सेमिनार, ग्रुप डिस्कशंस, प्रेजेंटेशंस में से ऐसी क्या चीज है तो जो वर्चुअली समझने में मुश्किल आ सकती है तो ज्यादातर ने ग्रुप डिस्कशंस का नाम लिया. चूंकि आमतौर पर फिजियोलॉजी के छात्रों के लिए हर हफ्ते डेढ़ से 2 घंटे का फेस टू फेस जीडी रखा जाता है, ऐसे में कोविड टाइम में इसके लिए विभाग ने पारंपरिक वर्चुअल ग्रुप डिस्कशंस के बजाय टुकमेन मॉडल के तहत स्ट्रक्चर्ड वीजीडी (sVGD)अपनाने का फैसला किया.
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क्या है एसवीजीडी? कैसे करता है काम?
डॉ. सिमरन कहती हैं कि एसवीजीडी, पूरी प्लानिंग के साथ स्ट्रक्चर्ड वर्चुअल ग्रुप डिस्कशंस है. जिसके तहत पांच फेज तय किए गए. पहले फेज में, दो हफ्ते पहले जीडी के मॉडरेटर और सीनियर डिमॉन्स्ट्रेटर दो लोगों की ओर से तैयारी की गई और विषय चुनकर छात्रों को दे दिया गया, ताकि छात्र इसके बारे में विस्तार से पढ़ लें, दूसरे फेज में एक हफ्ते पहले छात्रों के मिनी ग्रुप्स बनाए गए और उन्हें कहा गया कि वे अपनी चीजें समझने और समझाने के लिए पॉइंटर्स, एनिमेशन आदि का इस्तेमाल करें, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके आपस में जानकारी का आदान-प्रदान कर सकते हैं.
तीसरे फेज में एक दिन पहले, मॉडरेटर की ओर से चुनिंदा पॉइंट छात्रों के साथ शेयर किए गए. वहीं चौथे फेज में ग्रुप डिस्कशन वाले दिन, किसी भी ऑनलाइन प्लेटफार्म पर सभी छात्रों के ग्रुप्स के सामने मॉडरेटर ने विषय रखा, वहीं छात्रों ने अपनी क्वेरीज के आधार पर सब टॉपिक सामने रखे और डिस्कशन शुरू हो गया. पांचवे फेज में मॉडरेटर की ओर से जीडी का सार पेश किया गया.
क्या हुआ नतीजा
डॉ. सिमरन, डॉ. दीनू एस चंद्रन, डॉ. मेघ बीर और डॉ. के के दीपक के इस रिसर्च पेपर में बताया गया कि प्री एसवीजीडी और पोस्ट एसवीजीडी छात्रों से फीडबैक लिया गया. जिसमें पहले 14 और बाद में 15 छात्रों ने फीडबैक दिया. वर्चुअली हुए ग्रुप डिस्कशंस से पहले मिले फीडबैक में 14 में से 10 छात्रों का मानना था कि वर्चुअल के मुकाबले फेस टू फेस ग्रुप डिस्कशन ही बेहतर हो सकता है लेकिन पोस्ट एसवीजीडी लिए गए फीडबैक में 15 में से 10 छात्रों ने कहा कि पारंपरिक वर्चुअल जीडी के बजाय इस तरह स्ट्रक्चर बनाकर किए गए वर्चुअल जीडी में टॉपिक ज्यादा अच्छे से क्लियर हुआ और छोटे-छोटे ग्रुप में बंटे साथियों के साथ बेहतर तरीके से बातचीत संभव हो सकी.
क्या बोले विशेषज्ञ?
डॉ. सिमरन कहती हैं कि यह तरीका फिजियोलॉजी डिपार्टमेंट में पीजी छात्रों के लिए इस्तेमाल हुआ है और पुरस्कृत भी हुआ है लेकिन इसे जरूरत पड़ने पर अंडर ग्रेजुएट लेवल या स्कूल स्तर पर भी अपनाया जा सकता है और यह फेस टू फेस से बेहतर तो नहीं लेकिन हां अन्य माध्यमों के मुकाबले बेहतर हो सकता है.
वहीं फिजियोलॉजी के पूर्व एचओडी प्रोफेसर के के दीपक कहते हैं कि मेडिकल शिक्षा को बेहतर करने के लिए टेक्नोलॉजी का जितना इस्तेमाल हो सकता है करना चाहिए.
वहीं डिपार्टमेंट ऑफ फिजियोलॉजी एचओडी प्रोफेसर के पी कोचर कहते हैं कि यह रिसर्च मेडिकल शिक्षा में सीखने की अलग-अलग तरीकों के लिए प्रेरित करेगी और इसका बेहतर परिणाम भी दिखाई देगा.
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Tags: AIIMS, Aiims delhi
FIRST PUBLISHED : May 06, 2023, 20:30 IST