करौली हिंसा में मासूम बेटी के साथ लपटों के बीच बचकर निकली थी विनिता, पढ़ें दंगे की कहानी उनकी जुबानी
करौली. चारों तरफ पत्थर बरस रहे हो और आग की लपटें निकल रही हो. भगदड़ मची हो और किसी को कुछ नहीं सूझ रहा हो. ऐसे हालात में अगर कोई महिला अपने मासूम बच्ची के साथ फंस जाये तो उसकी कल्पना मात्र से ही दिल कांप उठता है. लेकिन ऐसे माहौल में डरी सहमी महिला और उसकी बच्ची को बचाने के लिये कोई आये तो वह देवदूत से कम नहीं होता है. कुछ ऐसा ही दिल को दहला देने वाला वाकया चार दिन पहले पेश आया था करौली की विनिता अग्रवाल के सामने जब वह हिंसा (Karauli violence) की लपटों में घिर गई थी.
विनिता उस समय अपने परिवार की महिलाओं के साथ खरीदारी करने के लिये करौली के बाजार में आई हुई थी. अचानक वहां दंगा भड़क उठा. हालात को देखकर ये महिलायें कांप उठी लेकिन राजस्थान पुलिस के एक कांस्टेबल नेत्रेश कुमार ने जान पर खेलकर उनको बचाया और वहां से सुरक्षित निकाला. कांस्टेबल की इस बहादुरी के लिये सीएम अशोक गहलोत ने न केवल उससे बात कर बधाई दी, बल्कि पदोन्नति का तोहफा देने का भी आश्वासन दिया है.
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दुकानदार ने बाहर निकाल कर शटर डाल दिया
बीते 2 अप्रेल को करौली में हुई हिंसा लपटों से बचकर निकली विनिता के अनुसार उसकी देवरानी का गणगौर पर सिजारा जाना था. वह अपनी बेटी पीहू, देवरानी वैशाली और उसकी भाभी बबीता के साथ बाजार में शॉपिंग करने गई थी. बकौल विनिता वे फूटाकोट चौराहे पर चूड़ी खरीदने गए थे. तभी दुकानदार बोला की रैली आ रही है. उसने हमें दुकान से बाहार निकाल दिया और शटर गिरा दिया.
चारों तरफ धुएं के गुब्बार उठने लगे
एकाएक सभी दुकानें बंद हो गई. थोड़ी देर बाद ही माहौल को बिगड़ता देखकर वे पास ही स्थित एक घर के अंदर जा रहे लोगों के साथ उस घर के अंदर चले गए. उसके कुछ देर बाद ही दुकानों के शटरों पर पत्थर फेंकने की आवाज आने लग गई. करीब 15 मिनट बाद आग की लपटें दिखाई देने लगी. चारों तरफ धुएं के गुब्बार उठने लगे. इससे घर के अंदर दम घुटने लगा.
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पति को खतरे में नहीं डालना चाहती थी
बकौल विनिता वहां पर मौजूद अन्य लोग घर के ऊपर छत पर जाने लगे लेकिन मेरी बेटी सो रही थी और मैं उसे लेकर कहीं भी नहीं जाना चाहती थी. मेरी बेटी मेरे लिए बहुत जरुरी थी. हमें ऐसी स्थिति में डर गए और मैंने रोते हुए अपने पति हरिओम को फोन किया तो वे भी चिंता में पड़ गए और कहा कि मैं जल्द वहां आ रहा हूं. मेरे पति ने मुझसे लॉकेशन मांगी तो मैंने कह दिया कि मैं फूटाकोट पर हूं. लेकिन लोकेशन नहीं भेजी क्योंकि मैं अपने पति को खतरे में नहीं डालना चाहती थी.
कोई पुलिसकर्मी लोगों को बचा रहा था कोई आग बुझा रहा था
इस दौरान नीचे से माइक से आवाज आई कि कोई भी घरों में हो तो बाहर आ जाएं. घबराए नहीं सभी जगह पुलिस तैनात है. डरने की जरुरत नहीं है. यह सुनकर जान में जान आई. तभी घर के मालिक ने घर का गेट खोला और हमने देखा कि वहां सफेद कलर की गाड़ी खड़ी थी. उस पर पुलिस अधीक्षक लिखा हुआ था. उसके पास पुलिस की वर्दी पहने हाथ में डंडा लिए एक व्यक्ति माइक पर एनाउसमेंट कर रहा था. वे पुलिस अधीक्षक शैलेन्द्र सिंह इंदोलिया ही थे. पुलिस के लोग घरों में फंसे लोगों को निकाल रहे थे तो कोई पुलिसकर्मी आग बुझा रहा था. सभी जगह आग की लपटें उठ रही थी.
पुलिस में ऐसे अधिकारी और जाबांज सिपाही हैं तो हम सुरक्षित हैं
पुलिस अधीक्षक ने दो पुलिसकर्मियों को हमें वहां से निकालने के निर्देश दिये. इस एक पुलिसकर्मी मेरी देवरानी और उसकी भाभी को वहां से सुरक्षित बाहार निकाल कर ले गया. दूसरे पुलिसकर्मी नेत्रेश कुमार मेरी बेटी को गोद में लेकर मुझे पीछे आने की कहकर वहां से निकालकर लाया. बेटी को आग वाले स्थान से लगभग 20 मीटर दूर ले जाकर उतारा. बेटी मेरे से लिपट गई. यह देखकर मेरी आंखों में आसूं आ गए. थोड़ी देर बाद पुलिस ने हमें सुरक्षित स्थान पर बिठाया और मेरे पति हरिओम के आने पर हमें उनके साथ भेज दिया. विनिता ने कहा कि जब तक पुलिस में ऐसे अधिकारी और जाबांज सिपाही हैं तब तक हम सुरक्षित हैं.
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