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कुछ बच्चे पढ़ने में क्यों होते हैं कमजोर? वैज्ञानिकों ने खोज निकाला कारण… वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

नई दिल्ली. मां-बाप बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए शुरू से ही फिक्रमंद रहते हैं. पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ लिखकर आईएएस और आईपीएस (IAS and IPS) न बने तो कम से कम इंजीनियर-डॉक्टर (Engineer- Doctor) जरूर बन जाए. लेकिन, बाद में बच्चे की नाकामयाबी पर पेरेंट्स अपने भाग्य को कोसते हैं. जबकि, इसका कारण कुछ और होता है. इसलिए पेरेंट्स को शुरू से ही पता करना चाहिए कि उनका बच्चा पढ़ने में वाकई कमजोर है या फिर अन्य दूसरी वजहों के कारण तो कहीं दिक्कत नहीं आ रही है? पेरेंट्स को इस बात का पता लगाने में सालों लग जाते हैं कि उनका बच्चा किन वजहों से क्लास में दूसरे बच्चों से कमजोर था.

आपको बता दें कि कुछ पेरेंट्स बच्चों के पढ़ाई में कमजोर होने पर बच्चे से ज्यादा स्कूल को कसूरवार ठहराते हैं. जबकि, पेरेंट्स को समस्या की असली वजह पता ही नहीं होता. ऐसे में वैज्ञानिकों ने इसको लेकर एक शोध किया है. वैज्ञानिकों ने शोध में खुलासा किया है कि आखिर में कुछ बच्चे पढ़ने में बचपन से ही तेज क्यों होते हैं और कुछ बच्चे सभी तरह के संसाधन होने के बावजूद भी कमजोर क्यों होते हैं?

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बच्चों के पढ़ाई में कमजोर होने पर अक्सर माता-पिता बच्चे से ज्यादा स्कूल को कसूरवार ठहराते हैं. Image: Canva

बच्चों को लेकर रिसर्च में बड़ा खुलासा
वैज्ञानिकों ने इसको लेकर दावा किया है कि जिन बच्चों को बचपन में ट्रैफिक के धुएं से उसके दिमाग पर बुरा असर पड़ता है और बच्चे की एकाग्रता में कमी आ जाती है. बच्चा न ठीक से बैठ पाता है और एकाग्रचित होकर पढ़ पता है. खासकर वायु प्रदूषण से बच्चों के एकाग्रता में काफी कमी आ जाती है. इसके लिए वैज्ञानिकों ने नाइट्रोजन डायऑक्साइड (NO2) को जिम्मेदार ठहराया है.

शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में एक शहर के 17 हजार से अधिक महिलाओं और उनके बच्चों के डाटा का उपयोग किया. इसमें हर परिवार से गर्भावस्था और बचपन के पहले 6 साल के दौरान एनओटू के जोखिम का अनुमान लगाया गया. इस रिसर्च में पता चला कि आमतौर पर गाड़ियों से निकलने वाले धुएं, ईंधन तेल, घरों को गर्म करने के लिए प्राकृतिक गैस, कोयला, इंधन वाले बिजली सयंत्र और रासायनिक उत्पाद से निकलने वाले धुएं को मुख्यतौर पर जिम्मेदार ठहराया गया.

पेरेंट्स को इस बात पर ध्यान देना चाहिए
भारत में भी बच्चों को बसों या प्राइवेट अन्य गाड़ियों से स्कूल भेजने का चलन तेजी से बढ़ा है. नर्सरी से लेकर 12वीं तक के बच्चे आमतौर पर स्कूल बसों या अन्य गाड़ियों से जाते हैं. इनमें ज्यादातर स्कूलों की दूरी बच्चों के घरों से 10 से 20 किलोमीटर तक रहती है. 4 साल से लेकर 16 साल के बच्चे सप्ताह में कम से कम पांच दिन दो से तीन घंटा ट्रैफिक में बीत जाता है. इस दौरान गाड़ियों से निकलने वाले धुएं बच्चों के स्वास्थ्य पर पुरा प्रभाव डालता है और बच्चों को वायु प्रदूषण के कारण एकाग्रता में कमी आ जाती है, जिससे बच्चे पढ़ने में कमजोर हो जाते हैं.

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स्पेन के बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ताओं की मानें तो 4 से 8 साल के बच्चों में यह समस्या देखी गई है.

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स्पेन के बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के शोधकर्ताओं की मानें तो 4 से 8 साल के बच्चों में यह समस्या देखी गई है. शोध में पता चला है कि लड़कियों से ज्यादा लड़कों के दिमाग में इसका असर ज्यादा पड़ता है. ट्रैफिक के धुएं का असर लड़कों के दिमाग में लंबे समय तक रहता है. इशलिए अगर आप अपने बच्चों को पढ़ाई में तेज देखना चाहते हैं और साथ-साथ उसका स्वास्थ्य भी ठीक रखना चाहते हैं तो आपको ट्रैफिक के धुएं से अपने बच्चों को बचाना होगा. वरना वायु प्रदूषण के कारण आने वाले दिनों में आपके बच्चे की पढ़ाई पर असर पड़ेगा ही साथ ही उसका स्वास्थ्य भी खराब हो सकता है.

Tags: Child Care, Children, Education

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