कोरोना काल में डेथसिटी बन रही है सूर्यनगरी, मरीजों के साथ मानवता भी तोड़ रही है दम Rajasthan News- Jaipur News- Suryanagari is becoming death city in Corona era- humanity also died


जोधपुर शहर के अस्पतालों में नो बेड की स्थिति है. यहां कोरोना से मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. (सांकेतिक तस्वीर)
Suryanagari is becoming death city in Corona era : कोरोना की दूसरी लहर में राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े शहर में जोधपुर में मौतों का आंकड़ा बेहताशा बढ़ता जा रहा है. यहां महज 25 दिन में 237 कोरोना पॉजिटिव मरीजों की मौत हो चुकी है.
रविवार को जोधपुर में 1411 नये संक्रमित मरीज चिन्हित हुये हैं. 820 मरीज डिस्चार्ज होकर लौटे. रविवार को कोरोना संक्रमित 28 मरीजों की मौत हुई बताई जा रही है. जबकि सरकारी रिकॉर्ड में यहां 12 लोगों की मौत बताई गई है. कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर में गत 25 दिनों में 237 कोरोना पॉजिटिव मरीजों की मौत हो चुकी है. शहर में लगातार बढ़ रहे मौत के आंकड़े से दहशत का माहौल है. इस बार संक्रमण से युवाओं की भी मौत होने के मामले सामने आ रहे हैं.
मरीज भटकते रहते हैं नहीं मिल रहे बेड
जोधपुर के अस्पतालों में नो बेड की स्थिति है. जोधपुर के प्रमुख एम्स अस्पताल, मथुरा दास माथुर अस्पताल और महात्मा गांधी अस्पताल में बेड उपलब्ध नहीं हैं. इसके चलते मरीज अस्पतालों के बाहर स्ट्रेचर पर तड़पते हुए बेड खाली होने का इंतजार करते नजर आ रहे हैं. हालांकि सरकार लगातार बेड की संख्या बढ़ा रही है लेकिन जितनी संख्या बढ़ाई जा रही है उतने ही मरीज भी बढ़ते जा रहे हैं. इसके कारण मरीजों को बेड उपलब्ध नहीं हो रहे हैं.रेमडेसिविर की हो रही है धड़ल्ले से कालाबाजारी
एक तरफ जहां कोरोना संक्रमित मरीज दम तोड़ रहे हैं वहीं दुनियाभर में ‘अपणायत’ के लिये प्रसिद्ध जोधपुर शहर की इंसानियत भी दम तोड़ती नजर आ रही है. निजी अस्पतालों में भर्ती मरीजों के साथ यहां रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी का खेल भी धड़ल्ले से चल रहा है. मरीज के परिजन यह इंजेक्शन 35 से 50 हजार रुपये में खरीदने को मजबूर हो रहे हैं.
यूं चलता है ब्लैक मार्केटिंग का यह खेल
दरअसल रेमडेसिविर इंजेक्शन बाजारों में नहीं मिल रहा है लेकिन निजी अस्पताल के संचालक मरीज के परिजनों को इंजेक्शन खरीदने के लिए हाथों में पर्ची थमा देते हैं. उसके बाद 8 से 10 घंटे तक मरीज के परिजन बाजार में इंजेक्शन के लिए भटकते रहते हैं. यहां से कालाबाजारी का खेल शुरू होता है. फिर दलाल मरीज के परिजन के संपर्क में आता है और इंजेक्शन को लेकर मोलभाव शुरू करता है. मरीज के परिजनों को 45 से 50 हजार में यह इंजेक्शन बेचा जाता है.