क्यों दुनिया में हर मिनट 8 से ज्यादा गर्भवती महिला या शिशुओं की हो रही मौत, भारत का क्या है हाल?

Maternal and Neonatal Deaths: मातृ-शिशु मृत्युदर ज्यादातर देशों के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 के बाद से इसमें कमी लाने की कोशिशों में दुनियाभर में कोई प्रगति नजर नहीं आई है. वहीं, यूएन एजेंसी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा दरों पर 60 से अधिक देश 2030 तक इन मौतों को कम करने के लक्ष्यों को पूरा करने से बहुत दूर दिखाई दे रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में बीते आठ साल में करीब 2.90 लाख गर्भवती महिलाओं और माताओं की मौत हर साल हुई है. वहीं, 23 लाख नवजात शिशुओं की जन्म के पहले महीने में ही हर साल मौत हुई है.
यूएन एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते आठ साल के रिकॉर्ड से साफ है कि हर साल 45 लाख महिलाओं और शिशुओं की गर्भावस्था या प्रसव या जन्म के बाद शुरुआती हफ्तों में ही मौत हो जाती है. इस आधार पर देखा जाए तो दुनियाभर में हर एक मिनट में 8 से ज्यादा गर्भवती महिलाओं या शिशुओं की मौत हर साल हो जाती है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि ऐसी मौतों को रोकथाम, बचाव और बेहतर व सही इलाज के जरिये रोका जा सकता है. लिहाजा, सभी देशों को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना चाहिए ताकि ऐसी मौतों की रोकथाम की जा सके. बता दें कि 2014 में दुनिया के 190 देशों ने इस तरह की मौतों में कमी लाने वाली योजना का समर्थन किया था.
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क्यों लक्ष्य से भटक गए हैं देश
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का कहना है कि कोरोना महामारी के साथ ही जलवायु परिवर्तन, गरीबी और युद्ध जैसे मानवीय संकटों ने पहले से बेहाल स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र पर दबाव बढ़ा दिया है. इन समस्याओं के चलते काफी देश मातृ-शिशु मृत्युदर को कम करने के लक्ष्य से भटक गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2000-10 के दौरान इस मामले में प्रगति शानदार रही थी. बाद में धन की कमी समेत कई कारणों से स्थिति खराब होती चली गई. रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि सिर्फ 61 फीसदी देशों में स्टिलबर्थ की निगरानी के लिए प्रणाली हैं.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने अपनी रिपोर्ट में देशों के लक्ष्य से भटकने के कारण भी बताएं हैं.
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पर्याप्त फंड ना होना समस्या
एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, हर 10 में एक देश के पास ही स्वास्थ्य योजनाओं को लागू करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध हैं. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि मौजूदा अनुमान मातृ-शिशु मृत्युदर में कमी लाने के लिए वैश्विक प्रयासों में तेजी लाने के स्पष्ट संकेत दे रहे हैं. अगर इन लक्ष्यों को पूरा कर लिया जाता है तो साल 2030 तक पूरी दुनिया में कम से कम 78 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है. इस रिपोर्ट में शामिल 106 देशों में केवल 12 फीसदी ने मातृ-शिशु स्वास्थ्य योजनाओं को पूरी तरह से फंडिंग की थी.
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भारत का हाल भी है बेहाल
यूएन एजेंसीस की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में सबसे ज्यादा मातृ-शिशु मृत्यु में 60 फीसदी 10 देशों में हुई हैं. भारत, नाइजीरिया और पाकिस्तान साल 2020 के दौरान इन 10 देशों की सूची में सबसे ऊपर थे. यह रिपोर्ट डब्ल्यूएचओ, यूएएफपीए और यूनिसेफ ने अंतरराष्ट्रीय मातृ नवजात स्वास्थ्य सम्मेलन के दौरान जारी की. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020-21 के दौरान कुल मिलाकर मातृ-शिशु मौतों का आंकड़ा 45 लाख रहा है. उप सहारा अफ्रीका, मध्य और दक्षिण एशिया में ऐसी मौतों का आंकड़ा सबसे अधिक है. दुनियाभर में 2020 के दौरान हुईं 45 लाख मातृ-शिशु मौतों में से 7,88,000 भारत में ही हुई हैं.

दुनियाभर में 2020 के दौरान हुईं 45 लाख मातृ-शिशु मौतों में से 7,88,000 भारत में ही हुई हैं.
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कम निवेश बिगाड़ेगा हाल
इसके बाद मातृ-नवजात मृत्यु, और मृत जन्में बच्चों की सूची में नाइजीरिया, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, इथियोपिया, बांग्लादेश और चीन का नंबर आता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राथमिक स्वास्थ्य में कम निवेश हालात को बदतर बना सकता है. सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र उप सहारा अफ्रीका और मध्य व दक्षिण एशिया में 60 फीसदी महिलाओं की डब्ल्यूएचओ की ओर से अप्रूव की गईं गर्भ से जुड़ी 8 में से 4 जाचें भी नहीं हो पाती हैं.
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Tags: Child death, Health News, United nations, WHO, World Health Organization
FIRST PUBLISHED : May 10, 2023, 21:08 IST