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खुद को राम का अवतार बताने वाला राजा जो बच्चे को आगे रख करता था शिकार, क्यों छोड़ना पड़ा भारत

भारत में भगवान राम (Lord Ram) के असंख्य भक्त हैं. तमाम लोग खुद को रामलला का वंशज बताते रहे हैं. एक राजा ऐसे भी हुए जो खुद को भगवान राम का अवतार बताया करते थे. हाथ में हमेशा दस्ताने पहना करते थे, ताकि किसी से संपर्क न हो जाए. बाद में उन्हें देश निकाला दे दिया गया. वह राजा थे अलवर के महाराजा जय सिंह.

खुद को राम का अवतार मानते थे राजा
मशहूर इतिहासकार डोमिनिक लॉपियर और लैरी कॉलिन्स अपनी चर्चित किताब ‘फ्रीडम एड मिडनाइट’ में लिखते हैं कि अलवर के महाराजा जय सिंह का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि तमाम वायसराय उनके प्रभाव में रहे. महाराजा खुद को भगवान राम का अवतार मानते थे. इसलिए हमेशा काले दस्ताने पहना करते थे, ताकि उनकी उंगलियां किसी इंसान के संपर्क में आकर अपवित्र ना हो जाए. यहां तक कि एक बार इंग्लैंड के महाराजा से हाथ मिलाने के लिए भी उन्होंने अपने दस्ताने नहीं उतारे थे.

महाराजा जयसिंह (Maharaja Alwar Jai Singh) ने बड़े-बड़े पंडितों को सिर्फ इस काम के लिए रखा था कि वह हिसाब लगाकर बताएं कि भगवान राम की पगड़ी आखिर कितनी बड़ी रही होगी, ताकि उस हिसाब से महाराज अपने लिए पगड़ी बनवा सकें. लॉपियर और कॉलिन्स लिखते हैं कि एक तरफ महाराजा अलवर खुद को भगवान राम का वंशज बताते थे, तो दूसरी तरफ उनके कुछ कारनामे बिल्कुल ठीक नहीं थे. जैसे जानवरों के प्रति उनके मन में जरा भी दया नहीं थी.

जब अपने घोड़े का जिंदा फूंक दिया
एक बार पोलो मैच के दौरान उनका घोड़ा, खेल से पहले बिदक गया. किसी कीमत पर आगे बढ़ने को तैयार ही नहीं था. महाराजा को लगा कि उनकी बेइज्जती हो रही है और इतना गुस्सा हुए कि उन्होंने फौरन मिट्टी का तेल मंगाया और भरे मैदान पर घोड़े के ऊपर छिड़क कर आग लगा दी. घोड़ा वहीं, तड़प-तड़पकर मर गया. महाराजा की यह हरकत देखकर वहां मौजूद तमाम लोग दंग रह गए.

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जिंदा बच्चे को आगे रख करते थे शिकार
महाराजा जय सिंह की गिनती उन दिनों हिंदुस्तान के सबसे अव्वल शिकारियों में होती थी. वह अचूक निशानेबाज माने जाते थे. जब वह शेर का शिकार करने निकलते तो जानवर को रिझाने के लिए जिंदा बच्चे को उसके आगे कर देते. अपनी रियासत के किसी गरीब परिवार से बच्चे को पकड़कर मंगवाते और उसके परिवार से कहते कि जब तक शेर बच्चे तक पहुंचेगा, तब तक वह उसका शिकार कर लेंगे.

हीरे की अंगूठी से जुड़ा वो किस्सा
महाराजा से जुड़ा एक और किस्सा बहुचर्चित है. यह तब का है जब लॉर्ड विलिंग्डन (Lord Wellington) वायसराय हुआ करते थे. उन्होंने वायसराय हाउस में महाराज अलवर दोपहर के भोजन पर बुलाया. लॉर्ड विलिंग्डन की पत्नी भी उस भोजन में मौजूद थीं. उन्हें हीरे-जवारत में खासी दिलचस्पी थी. एक से बढ़कर एक रत्न उनके पास हुआ करते थे.

लंच के दौरान उन्होंने महाराज अलवर के हाथ में हीरे की चमचमाती अंगूठी देखी और खुशी से मचल पड़ीं. महाराजा ने लेडी विलिंग्डन को अंगूठी देखने के लिए दे दी. डोमिनिक लॉपियर और लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि उन दिनों परंपरा यह थी कि अगर वायसराय या उनकी पत्नी किसी चीज में दिलचस्पी दिखाएं तो वह चीज उन्हें दे दी जाती थी. पर महाराज अलवर ने ऐसा नहीं किया.

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जब लेडी विलिंग्डन ने महाराजा को वह अंगूठी लौटाई तो उन्होंने वेटर से एक कटोरे में पानी मंगवाया और फिर अंगूठी को सबके सामने ही धोने लगे. फिर हाथ में पहन लिया. महाराजा की इस हरकत से वहां मौजूद तमाम मेहमानों की आंखें फटी रह गई थीं.

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क्यों मिला देश निकाला?
महाराजा जय सिंह की इन्हीं हरकतों को आधार बनाते हुए उन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने देश निकाला दे दिया. हालांकि कुछ इतिहासकार कहते हैं कि उस वक्त अलवर के महाराजा अंग्रेजों से लोहा लेने की योजनाएं बना रहे थे और अंग्रेज इससे खुश नहीं थे. आखिरकार साल 1933 में अंग्रेजों ने अलवर रियासत पर कब्जा जमा लिया. बाद ब्रिटिश हुकूमत के वफादार माने जाने वाले ठाकुर तेज सिंह को बागडोर सौंप दी गई.

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