गहलोत की जुंबा फिसल रही है या फिर ?
42वर्ष के राजनीतिक सफर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के व्यक्तित्व में जो परिवर्तन इस डेढ साल में देखा गया है वह पहले कभी नहीं देखा गया। यह परिवर्तन नौसिखिया सिपहसालारों की मिसाल है या फिर गहलोत की उपज,यह तो स्वयं गहलोत ही बतला सकते हैं लेकिन कई बार इस तरह की बात गहलोत के मुंह से निकल जाती है कि वे स्वयं भी नहीं जानते की उनके कहे कि पब्लिक में प्रक्रिया क्या होगी।अलबत्ता गहलोत स्वयं आत्मचिन्तन करते समय यह जरूर महसुस करने लग जाते होगें कि उनके कहे शब्द पब्लिक किस रूप में ले रही होगी।
पिछले साल बाडाबंदी के दौरान मीडिया के सामने गहलोत की जुबां ऐसी फिसली की खींज मिटाते हुए उन्होंने अपने ही मंत्रीमंडल में उपमुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट को निकम्मा-नालायक तक कह डाला। गांधीवादी मुख्यमंत्री प्रदेश के जननायक अशोक गहलोत का यह किरदार प्रदेश की जनता ने ही नहीं बल्कि देश की जनता ने भी पहली बार देखा।
मारवाड़ के गांधी अशोक गहलोत पिछले दिनों शिक्षकों के राज्य स्तरीय सम्मान समारोह में अपने ही काबीना मंत्री के सामने यह कहने से नहीं चूकें कि तबादलों में पैसों का लेनदेन होता है या नहीं और शिक्षकों ने हांमी भरी तो विभाग के मंत्री का मुंह देखने लायक था।
गहलोत की जुंबा फिसल रही है या फिर वे प्रदेश की जनता और सरकार को आईना दिखा रहे हैं यह तो वहीं जानें लेकिन राजस्थान लोकसेवा आयोग के ७३वें स्थापना दिवस में नियुक्तियों में पैसा चलता है,वर्षों से यह सुनते आ रहे हैं….यह भ्राति दूर करें आरपीएससी कहकर गहलोत ने प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी को ही नहीं बल्कि पक्ष-प्रतिपक्ष सहित जनता-जर्नादन को भी एक बार फिर आश्चर्य चकित कर दिया।
अब यह बाते गहलोत की तरफ से चुटकी लेते हुए कहीं जा रही है या फिर सार की बात निकल कर पब्लिक के सामने आ रही है आने वाले कल में इस तरह की बातों के परिणाम क्या होगें इस पर अभी मंथन नहीं किया जा सकता लेकिन जो बाते सामने आई चाय के दौरान वे जनसाधारण के नजरिए से थी या फिर किसी पार्टी विशेष से जुड़े व्यक्ति के तंज। गहलोत के कथन पर एक के मुंह से निकला नो सौ चूहें खाकर बिल्ली हज को चली तो दूसरे ने कह दिया कि यार यह नहीं गहलोत की बांतों से तो लगता है कि हाथी के दांत खाने के ओर दिखाने के और।
उधर एक दिन पहले सचिन पायलट ने गहलोत को दिल दिमाग में रहकर सार्वजनिक रूप से गाना गाया कि जीना यहां मरना यहां,इसके सिवा जाना कहा…क्या इस तरह की विचार धाराएं कांग्रेस को 2023 में वापसी का रास्ता दिखा पाएंगी।
- प्रेम शर्मा