चंडीगढ़ की सुखना लेक की तरह नजर आता है जालौर का यह तालाब, पर्यटकों का बना आकर्षण का केंद्र
सोनाली भाटी/जालौर: जालौर में कई सालों से पुराने इतिहास को संजोय रखने का काम बखूबी निभाया जा रहा है. फिर चाहे वह जालौर का किला हो या यहां की अविस्मरणीय पहाड़ियां या फिर जालौर की छतरियां जो हजारों वर्ष पहले बनाई गई थी वैसी ही है. जालौर का एक अनूठा उदाहरण जालौर का सुंदेलाव तालाब है जो आज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है.
दरअसल, यह तालाब 1300 साल पहले सातवीं शताब्दी के प्रतिहार राजा नागभट ने अपनी माता सुंदरा देवी की याद में बनवाया था. उस समय जालौर में पेयजल की सुविधा राजा महाराजाओं व शहरवासियों के लिए इस तालाब से ही होती थी और वर्तमान में सौंदर्यकरण के बाद यह तालाब चंडीगढ़ की सुखना झील की तरह नजर आने लगा है. सुंदेलाव तालाब को विकसित करने का निर्णय भूतपूर्व जिला कलेक्टर महोदय हिमांशु गुप्ता ने किया और इस तालाब को चंडीगढ़ की सुखना झील की तरह विकसित करने का लक्ष्य लिया जिसके तहत तालाब के बीच एक टापू बनवाया.
सुंदेलाव तालाब बना पर्यटन स्थल
ऐतिहासिक सुन्देलाव तालाब को पर्यटन की दृष्टि से चंडीगढ़ की सुकना झील की तरह विकसित किया है. सुंदेलाव तालाब में आने वाले पर्यटकों के लिए बोटिंग की भी सुविधा है साथ ही यहां बच्चों के लिए झुले भी लगवाए हुए हैं. तालाब पर एक सेल्फी पोंईट भी बना हुआ है, जो कि एक आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इस तालाब में बहुत ही सुंदर नजारे देखने को मिलते हैं. यहां तरह-तरह के साइबेरियन पक्षी आते हैं और तालाब में कई तरह की रंग-बिरंगी मछलियां भी है, जिनको लोग सुबह शाम दान देने आते हैं. तालाब के किनारे संत कबीर दास आश्रम, प्राचीन हनुमान जी वह माता रानी भटियाणी का मंदिर बना हुआ है जहां लोग दर्शन करते हैं.
देवझूलनी एकादशी पर लगता है मेला
देवझूलनी एकादशी के पर्व पर यहां पर बहुत विशाल मेला लगता है जिसमें शहर के सभी समाजों की कृष्ण भगवान की रेवड़ियां निकाली जाती है. सभी रेवड़ियां तालाब के किनारे स्थापित होती है. इस तालाब के पानी से ही भगवान को नहला कर पूजा अर्चना की जाती है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटकों की भारी भीड़ लगती है.
इतिहास की जानकारी रखने वाले पवन गिरी महाराज ने बताया कि यह तालाब 196 बीघा क्षेत्र में बना हुआ था लेकिन वर्तमान में आसपास तालाब के किनारे बहुत सी कॉलोनिया बना दी गई जिससे इस तालाब का भराव क्षेत्र अब केवल 146 बीघा रह गया है. बताया जाता है कि इस तालाब के अंदर कई सुरंगे निकलती है जो सीधा किले तक पहुंच जाती थी. जब अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी सेना के साथ जालौर पर आक्रमण किया था तब इन सुरंगों के माध्यम से किले पर अनाज, पानी का प्रबंध किया जाता था और राजा भी सुरंगों के सहारे बावड़ी पर नहाने आते थे और राजा के गुप्तचर यहां से सूचना लेकर किले जाते थे.
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FIRST PUBLISHED : February 12, 2024, 14:01 IST