चंद रुपये एकत्र कर खड़ा किया बिजनेस एंपायर, आज ये 150 महिलायें कमाती हैं सालाना लाखों रुपये

कृष्ण शेखावत.
झुंझुनूं. यह कहानी है राजस्थान के शेखावाटी के सैनिक बाहुल्य और महिला शिक्षा में अग्रणी झुंझुनूं (Jhunjhunu) जिले की. यहां 17 महिलाओं ने करीब 10 साल पहले आत्मनिर्भर बनने का जो कदम उठाया था वह आज मिसाल (Example) बन चुका है. आज 17 महिलाओं का यह समूह अपना दायरा बढ़ा चुका है. इन महिलाओं के आठ समूह आज अपनी मेहनत के दम पर आत्मनिर्भर बन गये हैं. महज 200 रुपये के आंशिक सहयोग से समूह की सदस्य बनने वाली महिलाओं की सालाना आय लाखों में आती है. सुनने में यह कहानी भले ही फिल्मी सी लगती हो लेकिन यह सच है. अब इन समूहों को दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है.
करीब 10 साल पहले किशोरपुरा गांव की महिलायें स्वरोजगार करने पर विचार मंथन कर रही थी। लेकिन उन्हें ना तो कोई आर्थिक मदद मिल पा रही थी और न ही कोई आधार. इस बीच उन्हें डालमिया सेवा संस्थान की ओर से उम्मीद की एक किरण नजर आई. इस ग्रुप से चर्चा के बाद गांव की 17 महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह का गठन किया. प्रत्येक महिला ने प्रतिमाह दो सौ रुपये समूह के खाते में जमा करवाने शुरू कर दिए.
वाटर फिल्टर बनाने का काम शुरू किया
कुछ माह बाद समूह के पास एक हैंडसम अमाउंट एकत्र हो गया. उसके बाद उन्होंने इलाके के पानी में फ्लोराइड की मात्रा को ध्यान में रखते हुए वाटर फिल्टर बनाने का काम शुरू कर दिया. समूह की महिलायें घरेलू कामकाज निपटाने के बाद वाटर फिल्टर बनाने का काम करने लगी. इस वाटर फिल्टर की क्वालिटी इतनी लाजवाब है कि इसे डालमिया ग्रुप की ओर से बनाए जाने वाले जल संरक्षण कुंडों के निर्माण में उपयोग किया जाता है. इससे आज एक समूह को सालाना 4 लाख 3 हजार 4 सौ रुपये का मुनाफा होता है.
आठ समूहों में 150 महिलायें काम कर रही हैं
एक समूह की अध्यक्ष सुमन देवी बताती की है आज उनका समूह आर्थिक रूप से इतना मजबूत हो चुका है वह महिलाओं को कम ब्याज पर दुधारू पशुओं के लिए ऋण भी देता है. समूह की सफलता से प्रेरित होकर आसपास के गांव क्यामसर, पदमपुरा और महरमपुर में महिलाओं के आठ समूह और बन गए. इन समूहों में अब करीब 150 महिलाएं हैं. ये महिलाएं भी वाटर फिल्टर बनाने का कर रही हैं. यह काम दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. समूह की महिलाएं स्वरोजगार कर आत्मनिर्भर हो रही हैं.
समूह की ओर से बिना ब्याज के ऋण उपलब्ध कराया जाता है
समूह की महिलाएं समूह से ब्याज पर राशि ऋण लेकर गाय भैंस पालन कर अपनी आय बढ़ा रही हैं. यह राशि समूह की महिलाएं किस्तों में लौटा देती हैं. सुमन देवी के मुताबिक डालमिया सेवा संस्थान की ओर से 2011 में स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया था. इससे जुड़कर के संस्थान की ओर से बनाए जा रहे कुंडों के लिये फिल्टर का काम हमने शुरू किया. शुरुआत में आमदनी कम होती थी. क्योंकि हम काम में नए थे. उसके बाद काम बढ़ा तो आमदनी बढ़ने लगी. एक अन्य समूह की संतोष देवी ने बताया कि उनके समूह से एक महिला को उसकी बेटी के विवाह में 50 हजार की आर्थिक सहायता मिली. आज हम बिना ब्याज के जरुरत के समय समूह की ओर से ऋण उपलब्ध कराते हैं.
एक समूह को सालाना करीब साढ़े चार लाख रुपये की बचत होती है
रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान के जल एवं ग्रामीण विकास समन्वयक संजय शर्मा ने बताया कि महिला सशक्तिकरण के तहत वर्ष 2011 में महिलाओं के समय स्वयं सहायता समूह बनाए गए थे. महिलाओं ने 200-200 रुपये देकर समूह को आगे बढ़ाया. आज एक समूह की सालाना करीब साढ़े चार लाख की बचत है. उसी बचत से समूह की महिलाएं अन्य महिलाओं को ऋण देती हैं. पशुपालन, छोटी दुकान और बकरी पालन सहित गरीब महिलाओं की बेटियों के विवाह पर बिना ब्याज के ऋण उपलब्ध कराती हैं.
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