जब जज की बहन को पड़ी न्याय की जरूरत, ‘चट्टान’ की तरह साथ खड़े हो गए न्यायाधीश…हाईकोर्ट ने क्या कहा?

नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि महज न्यायाधीश होने के नाते किसी न्यायिक अधिकारी के मौलिक अधिकार समाप्त नहीं हो जाते, जो अन्य नागरिकों को उपलब्ध हैं. हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही किसी मामले में शिकायतकर्ता किसी न्यायिक अधिकारी का रिश्तेदार हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि किसी आपराधिक मामले में खड़े होने, लड़ने और अदालतों से न्याय मांगने के लिए उसके पास दूसरों की तुलना में कम अधिकार हैं. न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, ‘यह न्याय का मजाक होगा, अगर पीड़िता अपने लिए न्याय पाने में विफल रहती है या उसे न्याय पाने के समान अवसरों से इसलिए वंचित कर दिया जाता है कि उसका एक रिश्तेदार न्यायिक अधिकारी है और दूसरों को न्याय दे रहा है.’
अदालत ने मोहित पिलानिया की जमानत याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर एक महिला और उसके परिवार को धोखा देकर उसकी शादी एक ऐसे व्यक्ति से कराने का आरोप है, जो पहले से ही शादीशुदा है. पीड़िता एक न्यायिक अधिकारी की बहन है. महिला ने एक अन्य व्यक्ति आरव उर्फ रवि गौतम के खिलाफ भी भारतीय दंड संहिता के तहत धोखाधड़ी, बलात्कार, आपराधिक षडयंत्र जैसे अन्य अपराधों के लिए मामला दर्ज कराया है. महिला के अनुसार रवि गौतम ने यह बताए बिना उससे शादी की थी कि वह पहले से शादीशुदा है.
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प्रभाव में दर्ज हुई एफआईआर?
हाईकोर्ट ने पिलानिया की इस दलील पर ”सख्त आपत्ति” जताई कि चूंकि शिकायतकर्ता का भाई न्यायिक अधिकारी है, इसलिए उसके प्रभाव के कारण प्राथमिकी दर्ज की गई और उसे जमानत नहीं दी जा रही है. अदालत ने इस पर भी ‘आश्चर्य’ जताया कि निचली अदालत द्वारा चेतावनी दिए जाने के बावजूद, व्यक्ति के वकील ने शिकायतकर्ता, उसके भाई और उसके पदनाम और तैनाती आदि का खुलासा करते हुए फिर से हाईकोर्ट में दस्तावेज दायर किए हैं, जो महिला की पहचान का खुलासा किए जाने के समान है.
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FIRST PUBLISHED : January 25, 2024, 23:41 IST