
मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष निहाल चन्द्र पांडया ने बताया कि महोत्सव के तहत आज सुबह नित्याभिषेक के बाद आचार्य के सान्निध्य में श्रीजी की शांतिधारा व अभिषेक की क्रियाएं सम्पन्न हुई। इस अवसर पर कार्यक्रम स्थल कर लो जिनवर का गुणगान…,रोम-रोम पुलकित हो जाए..जैसे भजनों की स्वर लहरियों से गुंजायमान हो उठा। इसके बाद इन्द्रध्वज महामंडल विधान में सौधर्म इन्द्र विनोद कुमार पांडया व सुलोचना पांडया,चक्रवर्ती प्रभाचंद्र-मधु चांदवाड़ सहित अन्य इन्द्र-इन्द्राणियों व श्रद्धालुओं ने 371 मंडल पर ध्वजाएं अर्पित की। इस दौरान इस मौके पर आचार्य विमल सागर जी महाराज का दीक्षा दिवस व आचार्य चैत्य सागर जी महाराज का 18 वां आचार्य पदारोहण दिवस मनाया गया।

इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य चैत्य सागर जी महाराज ने कहा कि मेरे पूज्य गुरुदेव ने मुझ पर जो उपकार किए है। जिन्होनें हमें मोक्ष मार्ग का रास्ता दिखाया उन्हें भूल पाना मुश्किल है। वैरागी संत रत्नों के पीछे नहीं भागते बल्कि रत्न प्राप्त करने में लग जाते हैं। मेरे गुरु के मुझपर अनंत उपकार हैं, उन्होंने मुझे दीक्षा देकर मेरा मानव जीवन सार्थक कर दिया। जीवन में सर्वोच्च पद प्राप्त करना है तो दिगंबर साधु निर्गंथ मुनि से बढ़कर कोई पद नहीं है। यही परम शाश्वत पद है। उन्होंने यह भी कहा कि जीवन में व्यक्ति को जो भी मिला है, उसमें संतोष धारण करना चाहिए,जो नहीं मिला है,उसके पीछे नहीं भागना चाहिए,जीवन में इच्छाओं की पूर्ति नहीं की जा सकती है।