जाओ चाहे दिल्ली, मुंबई, आगरा, नहीं मिलेगा 108 कली वाला घाघरा
झुंझुनूं का 108 कली का घाघरा (लहंगा) इंग्लैंड और यूरोप में छाया हुआ है। कई देशों में इसकी डिमांड है। इस लहंगे ने जिले की कई महिलाओं को रोजगार भी दे रखा है। एक संस्था से जुड़े स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं यह लहंगा तैयार करती हैं। संस्था की अध्यक्ष अनिता कंवर शादी के बाद दहेज की जगह केवल एक कैमरा और सिलाई मशीन लेकर अपने ससुराल नुआं गांव आई थीं।
यहां उसने 108 कली का घाघरा तैयार करना शुरू किया। वह 2500 महिलाओं को इस कार्य में दक्ष कर चुकी हैं, जो घर बैठे अच्छी-खासी कमाई कर रही हैं। 108 कली का लहंगा तैयार करने में चार-पांच दिन का समय लगता है। इसमें गोटा, तारा और तागड़ी का काम किया जाता है। अनिता ने बताया कि वह 180, 250 और 500 कली का घाघरा भी बना चुकी है।
इसलिए बनाया 108 कली का लहंगा
अनिता ने बताया कि आमतौर पर सभी साठ या अस्सी कली के लहंगे की ही बात करते हैं। उसने कुछ अलग करने की सोची और 108 कली का घाघरा तैयार किया। समूह से जुड़ी महिलाएं हालांकि हर तरह के कपड़ों की सिलाई का कार्य करती हैं लेकिन 108 कली के लहंगे ने अपनी अलग पहचान बना ली है।
यों हुई विदेशों में डिमांड
पिछले दिनों इंग्लैंड के लोटस फ्लोर ट्रस्ट के सीईओ जॉन हंट जिले के दौरे पर आए। उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को लहंगा पहने देखा तो जानकारी करके नुआं गांव पहुंच गए और वहां अनिता कंवर से कुछ लहंगे साथ ले गए। जॉन हंट अनिता के कार्य से इतने प्रभावित हुए कि 25 लाख रुपए की लागत से नुआं गांव में सिलाई प्रशिक्षण केंद्र के लिए भवन बनवा दिया। इसमें सिलाई मशीन सहित सभी सुविधाएं हैं। उन्हें देख अन्य देशों से भी 108 कली के लहंगे सहित अन्य कपड़ों की डिमांड आने लगी। अनिता के अनुसार करीब सात देशों में उनका यह लहंगा मंगवाया जा रहा है।