जानवर नहीं बल्कि 9 दिन लगती है चौमुखा दीपक की बली, 22 विद्वान पंडितो द्वारा किए जाते हैं पाठ

मोहित शर्मा/करौली. शक्ति और मां की उपासना के शारदीय नवरात्रा प्रारंभ हो चुके हैं. जहां एक और घर-घर में घटस्थापना कर भक्त माता रानी को प्रसन्न कर रहे हैं तो वहीं, दूसरी ओर माता रानी के प्राचीन मंदिरों में दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की एक बड़ी संख्या नवरात्रि के पहले दिन से ही पहुंचना शुरू हो गई है. ऐसे में राजस्थान के प्रसिद्ध शक्तिपीठ और उत्तर भारत के प्रसिद्ध आस्था धाम मां केला देवी के मंदिर में भी मां की एक झलक पाने के लिए दूर दराज के भक्तों का नवरात्रि के पहले दिन से ही तांता लगा हुआ है.
त्रिकूट पर्वत पर स्थित और करीब 1100 साल प्राचीन मां केला के दरबार में 9 दिन तक विद्वान पंडितो द्वारा सुबह से शाम तक अनेक तरह के पाठ और अनुष्ठान किए जाते हैं. सबसे खास बात तो यह है कि राजस्थान के इस शक्तिपीठ में नवरात्रि के दौरान माता के लिए जानवरों की नहीं अपितु चौमुखा दीपक की बली चढ़ाई जाती है. बताया जाता है कि जब से केला मां यहां विराजी है, तभी से निरंतर इस मंदिर में दीपक की बली चढ़ाई जाती है.
9 दिन होती है विशेष पूजा अर्चना
राज्याचार्य पंडित प्रकाश चंद जती ने बताया कि नवरात्रि में मां की सेवा आराधना विशेष तौर से की जाती है. इसमें रोज प्रातः काल मां की सेवा पूजा करके 22 विद्वान पंडितों द्वारा पाठ किए जाते हैं. प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती के 15 पाठ, देवी भागवत का एक पाठ 9 दिन में और इसी प्रकार से श्री भैरवस्रोत के 108 पाठ प्रतिदिन मातेश्वरी को सुनाए जाते हैं. पाठ समाप्त होने के सांयकाल रोज माताजी की स्तुति आरती और 9 दिन तक बली दी जाती है.
चौमुखा दीपक की लगती है बली
राज्याचार्य पंडित प्रकाश चंद जती बताते हैं कि केला मां के लिए नवरात्रि के 9 दिन दीपक पर क्षेत्रपाल बली दी जाती है. बली के लिए चौमुखा दीपक बनाया जाता है. फिर उस दीपक का और भैरव जी का पूजन कर माता को बली चढ़ाई जाती है. नवरात्रि के 9 दिन मां केला देवी की विशेष पूजा अर्चना के साथ उन्हें अलग-अलग व्यंजनों का प्रसाद चढ़ाया जाता है. पहले दिन मातेश्वरी का मालपुआ का प्रसाद, दूसरे दिन खीर, तीसरे दिन मिष्ठान, चौथे दिन मेवा और पांचवें दिन फलों का, इस प्रकार मां केला देवी को अलग-अलग चीजों का विशेष प्रसाद लगाया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : October 18, 2023, 16:52 IST