Rajasthan

टूटेगा दक्षिण का कमल गट्टा | patrika-group-editor-in-chief-gulab-kothari-article-2 april

केरल की कुल 20 लोकसभा सीटों में से अभी 15 सीटें कांग्रेस के पास हैं। तमिलनाडु में पुड्डुचेरी सहित 40 सीटें हैं। द्रुमुक के पास 39 सीटें हैं। केरल की राजनीतिक मानसिकता यह है कि जब कोई सीट भाजपा के पक्ष में भारी लगती है तो अन्तिम क्षणों में विपक्षी कांग्रेस और सत्ता दल साथ होने का संदेश मतदाता को कर देते हैं। उनका लक्ष्य केरल में भाजपा के प्रवेश को रोके रखना है। इस बार कमल गट्टा टूटता जान पड़ता है। तिरुवनंतपुरम (त्रिवेन्द्रम) में केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चन्द्रशेखर और शशि थरूर के बीच मुकाबला है। लगभग यही स्थिति त्रिचूर लोकसभा सीट की है। यहां भाजपा से फिल्म अभिनेता सुरेश गोपी चुनाव मैदान में है।

केरल का उत्तरी भाग मुस्लिम बाहुल्य है, केन्द्रीय भाग में ईसाई और दक्षिण में हिन्दू समुदाय प्रधान है। अल्पसंख्यक कुल 48 प्रतिशत है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लम्बे समय से कार्यरत भी है। त्रिवेन्द्रम में ही संघ की 46 शाखाएं हैं। अल्पसंख्यकों में राम मन्दिर कोई मुद्दा नहीं है, किन्तु महिलाएं तीन तलाक के कारण भाजपा से जुड़ेंगी। हिन्दू महिलाएं राम मन्दिर से तो किसान केन्द्र की योजनाओं से प्रभावित हैं। युवा विकास के सपने देख रहा है। राजधानी त्रिवेन्द्रम में भाजपा धीरे-धीरे ही सही, अपनी पकड़ बना रही है। कुछ समय पूर्व भाजपा का एक भी पार्षद नहीं था, आज 33 पार्षद हैं। यह निश्चित है कि भाजपा के पक्ष में मतदान का प्रतिशत ही बढ़ेगा। सीटें प्रभावित होंगी या नहीं, समय समझाएगा।

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तेलंगाना विधानसभा चुनावों में तख्तापलट हुआ था। आज कांग्रेस सत्ता में है। लोकसभा की कुल 17 सीटों में कांग्रेस-3, भाजपा-4 और बीआरएस-9 पर कायम है। भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) प्रमुख केसीआर की पुत्री के.कविता की 100 करोड़ रुपए के आबकारी घोटाले में हुई गिरफ्तारी के बाद मैदान में लगभग कांग्रेस और भाजपा ही आमने-सामने रह गए। बीआरएस की 9 सीटों में बंटवारे का लाभ भाजपा को भी होगा। उधर आन्ध्रप्रदेश में तेलुगुदेशम पार्टी से सन्धि हो जाने से भाजपा को भी लाभ मिलेगा। रेवड़ियां बांटने के बावजूद, मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी को बड़ा झटका लगने की संभावना है। कुल 25 सीटें हैं आन्ध्रप्रदेश में-जगन (वाइएसआरसीपी) के पास 22 तथा तेलुगुदेशम के पास 3 सीटें हैं।

कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भी तख्ता पलट हुआ था। कांग्रेस आज सत्ता में है। कभी भाजपा-कभी कांग्रेस।

योजनाओं पर टिकी आस
एक बार एच. डी. देवगौड़ा की जनता दल (एस) ने सरकारें चलाई हैं। इस बार जनतादल (एस) भी भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गया है। कुल 28 सीटों में से भाजपा-25 और जनता दल (एस)-3 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस सभी 28 सीटों पर लड़ रही है।

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कर्नाटक में दो पूर्व मुख्यमंत्री एम. वीरप्पामोइली (कांग्रेस) तथा बी.एस. येडियूरप्पा से विस्तृत चर्चा हुई। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडूराव तथा भाजपा प्रत्याशी (बैंगलोर) शोभा करन्दलाजे (केन्द्रीय कृषि-किसान कल्याण राज्य मंत्री) से भी चुनाव चर्चा हुई। लगभग सभी प्रदेशों में वरिष्ठ नेताओं से मिल पाना सहज नहीं था। प्रात: प्रचार पर निकल जाते थे, देर से आते थे अथवा प्रवास पर रहते थे।

पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा 28 में से 25 सीटें जीती थी। येडियूरप्पा का कहना है कि इस बार जद एस भी साथ है। अत: हम सभी 28 सीटों पर लौटेंगे। वीरप्पा मोइली ने भी नामांकन दाखिल किया था, किन्तु एक दिन पहले ही वापिस ले लिया। कांग्रेस में सीटें तय करने का कार्य चल रहा है-यहां भी और तेलंगाना में भी। दिनेश गुंडूराव कांग्रेस को सभी सीटों पर आगे मानते हैं। वे केन्द्र सरकार के रवैये से अधिक नाराज हैं। यही बात चेन्नई में द्रमुक के सांसद पी. विल्सन और दो बार के राज्यसभा सदस्य पीटर गुंसोल्विस ने भी कही। सूखा-बाढ़ राहत में सहायता नहीं मिलना, करों की आय का मात्र एक चौथाई अंश मिलना इन दोनों नेताओं का मुख्य मुद्दा था।

सांसद विल्सन चुनाव को लेकर कुछ तेजी में थे। पिछले लोकसभा चुनावों में द्रमुक एवं सहयोगी दलों को 40 में से 39 सीटें मिली थीं। वे भाजपा को आज भी प्रदेश से बाहर मानते हैं। राम मन्दिर का केरल की तरह यहां भी कोई प्रभाव नहीं मानते। जबकि चेन्नई (सेंट्रल) से भाजपा प्रत्याशी विनोज पी.सिल्वम का मानना है कि सम्पूर्ण प्रदेश में भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ेगा। सीटें कितनी मिलेंगी-कहा नहीं जा सकता। कन्याकुमारी और कोयम्बटूर पर आंखें टिकी हैं।

चुनावी संतुलन का आंकड़ा भाजपा-कांग्रेस मिलकर ही तय करते दिखाई पड़ते हैं। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक भी तीन धड़ों में बंटी है। आन्ध्रपदेश की तरह यहां भी मुख्यमंत्री की योजनाओं पर आस टिकी है। कर्नाटक में भी सरकार अपनी पांच गारंटियों (योजनाओं) के क्रियान्वयन को लेकर आश्वस्त है। विकास के नाम पर कुछ नया नहीं है। मोदी के नाम पर वोट मांग रही है-भाजपा। प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री की यात्राओं का भी लम्बा कार्यक्रम अभी शेष है। मौसम बदलेगा-कमल गट्टा टूटेगा, यह तो तय है। दक्षिण में अभी कांग्रेस-भाजपा के पास 29-29 सीटें हैं। राज्य और केन्द्र का अन्तर आज का मतदाता समझता है। युवा मतदाता धर्म-जाति में नहीं, भविष्य में विश्वास करता है। राज्य सरकारों के विकास का प्रमाण-पत्र महत्वपूर्ण रहेगा।

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