दुरंगा… 'गुलशन' की पेचीदा 'दृष्टि' का टि्वस्ट
आर्यन शर्मा @ जयपुर. साउथ कोरियन शो ‘फ्लॉवर ऑफ इविल’ पर बेस्ड वेब सीरीज ‘दुरंगा’ की कहानी पेचीदा और डार्क है। हर एपिसोड में कई ट्विस्ट और टर्न आते हैं। सीरीज कभी दर्शकों को उलझाकर रखती है तो कभी यह खुद फंस जाती है। वेब सीरीज की स्पीड में उतार-चढ़ाव हैं, जिससे रहस्य और रोमांच का ‘जायका’ प्रभावित होता है। नौ एपिसोड की सीरीज वर्तमान और अतीत के बीच स्विच करती रहती है। अधपके किरदार, ढीला संपादन और अन्य त्रुटियां मनोरंजन के प्रवाह में बाधा हैं।
कहानी में मुंबई क्राइम ब्रांच की चतुर ऑफिसर इरा जयकर (दृष्टि धामी) अपने पति समित पटेल (गुलशन देवैया) और बेटी के साथ खुशहाल जीवन जी रही है। तभी शहर में एक ओल्ड लेडी का मर्डर हो जाता है। हत्या का पैटर्न कुछ हद तक ऐसा है, जो इसके तार 17 साल पहले हुईं सीरियल किलिंग से जोड़ता है। हालांकि वह साइकोपैथ सीरियल किलर बाला बाणे (जाकिर हुसैन) मर चुका है। इरा और उसकी टीम की तफ्तीश में कई चौंकाने वाले राज खुलने लगते हैं…। कहानी में कुछ लूपहोल्स हैं। स्क्रीनप्ले पूरे समय एक जैसा नहीं है। कहीं यह एंगेजिंग है तो कहीं रबर के माफिक खींचा हुआ है। निर्देशन ठीक-ठाक है, लेकिन कसावट की और दरकार थी। सिनेमैटोग्राफी अच्छी है।
गुलशन देवैया की परफॉर्मेंस कमाल की है। गुलशन की बॉडी लैंग्वेज और आई एक्सप्रेशंस उनके बहुआयामी चरित्र के मुताबिक हैं। दृष्टि धामी की स्क्रीन प्रजेंस सराहनीय है। अभिजीत खांडकेकर और बरखा बिष्ट ने अपने किरदार से न्याय किया है। राजेश खट्टर और दिव्या सेठ के रोल सीमित हैं। जाकिर हुसैन के लिए ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं है। अगर आप खामियों को नजरअंदाज कर ट्विस्ट और टर्न का मजा लेना चाहते हैं तो ‘दुरंगा’ देख सकते हैं। वैसे, इस थ्रिलर में फ्रेशनेस की उम्मीद करना बेमानी है।