ध्यान रहे जो अंगारों की सेज पर चलेगें वहीं 2023 में पार पाएंगे।


हकीकत को नकार कर डेढ़ साल की रस्साकसी का परिणाम राजस्थान में मंत्रीमंडल के पुर्नगठन के रूप में सामने आ गया,लेकिन चुनौतियां भी उतनी ही साथ लेकर आया है। प्रदेश में अशोक गहलोत के तीन साल में से करीब डेढ़ साल कोरोना चुनौतियों के साथ संगठन ओर सरकार को लेकर आपसी टकराव में बीता। इस बीच सचिन पायलट ने तो कभी नहीं कहा कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार की वापसी में उनका महत्वपूर्ण पार्ट रहा है लेकिन उनके सर्मथकों ने जमकर उछाला की 21 सीटों पर सिमटी कांग्रेस सरकार की वापसी में पायलट सुत्रधार रहे हैं,जबकि हकीकत यह है कि वसुंधरा सरकार की विरोधी लहर के परिणाम का प्रतिफल2018 के चुनावों में कांग्रेस को मिला है तो सभी भद्र कांग्रेसजन को स्वीकार कर लेना चाहिए कि 15वीं विधानसभा में कांग्रेस को जो भी हासिल हुआ है वह वसुंधरा सरकार की देन है न कि जननायक अशोक गहलोत या फिर सचिन पायलट की।
मंत्रीमंडल पुर्नगठन के पश्चात पहली और आखरी चुनौति के रूप में देखा जाए तो एक ही है कि प्रदेश में 2023 के चुनावों में कांग्रेस सरकार पुन: बहाल हो और वर्षों से चलता आया चला चली का खेला खत्म हो, उसके लिए मानकर चले कि महज अशोक गहलोत और सचिन पायलट पर ही यह जवाबदेही नहीं है बल्कि मंत्रीमंडल के प्रत्येक सदस्य के साथ कांग्रेस संगठन से जुड़े हर कांग्रेसजन की भी इसमें अह्म भूमिका अदा होनी चाहिए।
आने वाला समय 2023 के चुनावों के मद्देनजर अंगारों की सेज पर चलने से कम नहीं होगा।इसे पार पाने के लिए सरकार और संगठन को उन मूल्यों की अवहेलना करनी होगी जिसे राजनीति में आजकर शिष्टाचार कहा जाता है,यानि की भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार की परम्परा से उपर उठकर कार्य करना होगा। शिक्षकों के सम्मेलन में स्वयं मुख्यमंत्री कहलवा चुके हैं कि किस कदर हस्तानान्तरण के मामलों में शिक्षा विभाग में पैसे के नाम पर भ्रष्टाचार का बोलबाला है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बात में दम है और प्रदेश के हर सरकारी महकमें में कहीं न कहीं भ्रष्टाचार रूपी महामारी कोरोना से भी भयावह स्थिति में अपनी जड़े जमाए हुए है इसे भी नकारा नहीं जा सकता और इसे जहन में रखकर कांग्रेस सरकार और संगठन कार्य करेगी तभी 2023 में कांग्रेस की राजस्थान प्रदेश में वापसी संभव है। प्रदेश में सरकार के कामकाज को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपनी धार्मिक यात्रा का चार दिवसीय प्रोग्राम घोषित कर चुकी है लेकिन उनका मूल उद्देश्य इस यात्रा के दौरान गहलोत सरकार को कठघरे में करने का है। ऐसे में मंत्रीमंडल को महकमों का आवंटन हो या फिर कांग्रेस संगठन में नियुक्तियों के आधार पर सक्रिय होने वाले भद्र कांग्रेसजन को चाहिए कि उनका लक्ष्य सात पीढी के जुगाड़ से उपर उठकर प्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनावों के दौरान बहुमत से सरकार की वापसी का हो अगर ऐसा नहीं होकर रफ्ता रफ्ता सफेदपोशी की आड में घर भरने लगे तो मानकर चले इसका सीधा लाभ प्रदेश में भाजपा की वापसी के रूप में सामने आएगा। जितेगा वहीं जो इस बात पर चलेगा कि :-
कर्तव्य का पथ निराला है,चले तो पांव जलते है, रूके तो आत्मघाती है।
- प्रेम शर्मा