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पारंपरिक रूप से – women and finance financial rights of indian women interview with dr charu wallikhanna importance of nominee and registered will – News18 हिंदी

Difference between Nominee and Successor: भारत में घर की महिलाएं आमतौर पर पारंपरिक रूप से वित्तीय मसलों से दूर ही रखी जाती हैं. ऐसे में वे अपने वित्तीय अधिकारों  (Financial Rights) के बारे में नहीं जान पातीं. इस बाबत उन्हें जागरुक करने की आसपास की उनकी दुनिया में न तो जरूरत महसूस की जाती है और न ही वे खुद आवश्यकता महसूर करती हैं कि उन्हें इस बारे में भागदौड़ कर समझ हासिल कर चाहिए. लेकिन वक्त बदला है. हम जानते हैं कि महिलाओं को आर्थिक रूप से न सिर्फ आत्मनिर्भर होना जरूरी है बल्कि अपने अधिकारों के बारे में भी जानना जरूरी है. इस दिशा में हमने कानूनी मामलों के जानकारों से बात की और रिसर्च की. आमतौर पर हम महिलाओं के प्रापर्टी में अधिकार के कोण से ही बात करते हैं लेकिन क्या आप जानती हैं कि वित्त से जुड़ी कुछ और जरूरी बातें ऐसी हैं जो आपको पता होनी चाहिए. पत्नी होने के नाते आपके क्या कानूनी अधिकार हैं. तलाक या जीवनसाथी की रोग-दुर्घटनावश मृत्यु हो जाने पर सबकुछ उथल पुथल हो जाता है, ऐसे में आप जागरूक रहेंगी तो वक्त जरूरत पर हालात को बेहतरी से संभाल पाएंगी.

सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिसरत वकील और नेशनल कमिशन फॉर वीमन (NCW) की पूर्व सदस्य डॉक्टर चारू वलीखन्ना कहती हैं कि बहुत जरूरी है कि सभी महिलाओं, खासतौर से ऐसी महिलाएं जो कामकाजी नहीं हैं और घर में रहती हैं, को पता होना चाहिए कि आपके पति के क्या क्या फाइेंशनल एसेट हैं. वह बताती हैं कि पति के हर फाइनेंशल अलोकेशन, ऐसेट जैसे कि डीमैट, सेविंग खाते, सेविंग स्कीम व अन्य निवेशों में नॉमिनी के तौर पर आपका नाम हो सकता है. बैंक आदि वित्तीय संस्थान आजकल खाता खोलते समय नॉमिनी भरवाती हैं. इस बात की जानकारी आपको होनी चाहिए. मगर साथ ही, आपको पता होना चाहिए कि आप यदि नॉमिनी हैं.

साथ ही आपको बता दें कि लीगल एंगल से देखें तो केवल इन फाइनेंशनल एसेट में आपका नाम बतौर नॉमिनी होना ही काफी नहीं है. यदि इस एसेट के ओनर की दुर्भाग्यवश मृत्यु हो जाती है तो महज नॉमिनी होने के कारण आपको इसका डिफॉल्ट हकदार नहीं मान लिया जाएगा यदि इस एसेट की वैल्यू 2 लाख रुपये से ज्यादा है. ऐसी सिचुएशन में यह रकम पत्नी के नाम पर ट्रांसफर नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ऐसी विल जो दो गवाहों की मौजूदगी में साइन की गई हो, वह स्वीकार्य होती है. इसके लिए उनकी रजिस्टर्ड विल (वसीयत) में आपका नाम होना जरूरी है ताकि एसेट के आपके नाम पर ट्रांसफर होने में दिक्कत नहीं आती.

ऐसे में सवाल होता है कि नॉमिनी क्यों लिखवाया जाता है और उसे क्या लाभ या नुकसान हैं.. तो डॉक्टर चारू बताती हैं कि नॉमिनी उत्तराधिकारी नहीं माना जा सकता. जहां भी नॉमिनी के तौर पर किसी का नाम लिखा है वह केवल ट्रस्टी ही माना जाता है. उत्तराधिकार अधिनियम (या वसीयत) के अनुसार, संपत्ति/संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी की स्थापना तक, नामांकित व्यक्ति केवल अस्थायी अवधि के लिए ट्रस्टी/संरक्षक होगा.

ऐसे में जरूरी है कि पत्नियां अव्वल तो पति के फाइनेंशल एसेट को लेकर सूचित रहें. साथ ही, पति रजिस्टर्ड वसीयत में उत्तराधिकारी को लेकर स्पष्ट लिखवाए. पति यह भी लिखवा सकता है कि मेरे सभी नॉमिनी (पत्नी/बेटा या बेटी) कानूनी उत्तराधिकारी भी माने जाए. बता दें कि ऐसा न होने पर कानूनी रूप से पत्नी को कोर्ट में Succesion Certificate जमा करवाना होगा और लंबे प्रोसेस के बाद कोर्ट के क्लियरेंस के बाद ही वह इन ऐसेट की हकदार होंगी.

Tags: Business news in hindi, Husband Wife Dispute, Supreme court of india, Women rights, Women’s Finance

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