पेट की आग के सामने कम है सूर्यदेव की तपिश, थार में 45 डिग्री तापमान में काम करने को मजबूर मनरेगाकर्मी
मनमोहन सेजू/बाड़मेर. एक तरफ जहां थोड़ा सा भी तापमान बढ़ने पर लोग राहत के लिए एसी-कूलर की ठंडक के पास पहुंच जाते हैं. वहीं भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर में हजारों लोग भरी दोपहरी में मजदूरी करने को मजबूर हैं. सरकार के मनरेगाकर्मियों के लिए छाया पानी के दावे भी कागजों में अटके नजर आते है, उनकी हकीकत की धरा पर दूर तलक कोई नाता नही है.
लोकल 18 ने बाड़मेर जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर स्थित दूधोई नाड़ी में जाकर इस देह जला देने वाले मौसम में मजदूरों को मिल रही सुविधाओं का लाइव चेकअप किया. तो वहां काम कर रही 90 के करीब महिलाओं के लिए ना तो कोई छाया की व्यवस्था है और ना ही पानी की. सुबह 10 से 4 बजे तक इन महिलाओं को काम करना पड़ रहा है. हर साल 15 अप्रैल को मनरेगाकर्मियों का समय बदलता है लेकिन सरकार और प्रशासन के चुनावों में व्यस्तता के चलते वह इन मजदूरों के समय को बदलना ही भूल गए है.
दोपहर में 1 घंटे मिलता है विश्राम का समय
पूरे जिले में हजारों मनरेगाकर्मियों को 45 डिग्री के तापमान में काम करना पड़ रहा है. दोपहर में 1 घण्टे के भोजन विश्राम के वक्त भी आराम की छांव इनको नसीब नही हो रही है. मजदूरी करने आई बुजुर्ग महिला मति देवी कहती है कि यहां 6 घण्टे धूप में काम करना पड़ रहा है लेकिन उन्हें मेहनत के अनुरूप मजदूरी नही मिलती है.
वही महिला गवरी देवी बताती है कि दूधोई नाड़ी में न तो कोई छांव है औऱ न ही कोई अन्य व्यवस्था. यहां की महिलाएं एक बबूल के नीचे बैठकर भोजन करती है. वह कहती हैं कि 45 डिग्री तापमान में भी मजदूरी करना मजबूरी हो गई है. 15 अप्रैल के बाद मनरेगा के समय बदल जाता है लेकिन इस बार अभी तक समय मे परिवर्तन नही किया गया है जिससे उन्हें मजबूरी में मजदूरी करनी पड़ रही है.
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FIRST PUBLISHED : April 22, 2024, 20:20 IST