Rajasthan

रेगिस्तान का जहाज बना कोरोनाकाल में शिक्षा का दूत, बच्चों को पढ़ाने हो रही ऊंट की सवारी

जयपुर. कोरोना के इस संक्रमण काल में सबसे ज्यादा बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है. कोरोना की दूसरी लहर का पीक थमने के बाद 21 जून से राजस्थान सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा के लिए स्माईल 3 प्रोजेक्ट भी शुरू कर दिया गया है, लेकिन राजस्थान के थार के रेगिस्तान में मोबाइल नोटवर्क ही बड़ी चुन्नौती है. ऐसे में रेते के धोरों के बीच बसे गांवो में ऑनलाइन शिक्षा दूर का सपना है. रेत के पहाड़ों के बीच बसे इन गांवों तक  सड़कें नहीं होने  से पहुंचना भी आसान नहीं है. ऑनलाइन शिक्षा से वंचित रह रहे छात्रों को पढ़ाने का रास्ता खोजा कुछ साहसी शिक्षकों ने. ये शिक्षक ऊंट पर सवार होकर रेत के धोरों में बसे गांवों में  पढ़ाने जा रहे हैं. आसपास की ढाणियों से छात्रों को एक जगह इकट्ठा कर खुले आसमान के नीचे पढ़ाते हैं.

राजस्थान के बाड़मेर के रेगिस्तानी इलाके में दूर दूर रेत के पहाड़ और रेत के धोरों में चल रहे ऊंट पर सवार हो कर शिक्षक बच्चों को पढ़ाने जाते हैं. पक्की सड़क नहीं हैं. कोरोना के चलते स्कूलें बंद होने से छात्र स्कूल तक नहीं आ पा रहे हैं. मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से ऑनलाइन शिक्षा भी संभव नहीं है. ऐसे में मास्टर जी ही ऊंट पर सवार होकर रेतीले धोरों में निकल पड़े बच्चों को पढ़ाने.

10 किलोमीटर का सफर

करीब 10 किलोमीटर के सफर के बाद एक ढ़ाणी ( छोटा गांव) में पहुंचते हैं. ऊंट से नीचे उतरते हैं. जहां ग्रामीणों की मदद से आसपास के ढाणियों से स्कूल के छात्रों को बुलाया गया और खुले आसमान के  नीचे पाठशाला शुरू कर दी गई. शिक्षक रुप सिंह जाखड़ बताते हैं कि बच्चों को पढ़ाई में नुकसान न हो इसलिए शिक्षकों द्वारा ये कवायद की जा रही है.

(जोधपुर से लोकेश के साथ जयपुर से भवानी सिहं की रिपोर्ट)

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