बच्चों में डायबिटीज के मामले तेजी पर, हो जाएं सावधान, जरुर लें डॉक्टर से परामर्श
हाइलाइट्स
टाइप 2 डायबिटीज से बचने के लिए मोटोपे से बचें
डायबिटीज से गुर्दों और नसों पर भी पड़ता है असर
बच्चों में डायबिटीज के लक्षण वक्त रहते पहचानें
Diabetes in children doctor view: डायबिटीज शब्द सुनकर दिमाग मे ख्याल आता है कि यह सिर्फ व्यस्कों तथा बुजुर्गों में पायी जाने वाली बीमारी है किन्तु यह एक भ्रान्ति है. युवाओं के अलावा आजकल किशोरों तथा बच्चों में भी यह बीमारी पायी जाती है. आजकल की खराब जीवन शैली और खानपान में लापरवाही के चलते डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स को मेटाबलाइज (metabolize) करके ऊर्जा बनाने की क्षमता में कमी आ जाती है. बता रही हैं इंदौर के कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी अस्पताल की डॉ. रुचिरा पहारे, (कन्सल्टेन्ट पीडियाट्रिशियन ) बच्चों में होने वाली डायबिटीज की समस्या के बारे में:
डायबिटीज में पेन्क्रियाज नामक एक ग्रंथी द्वारा हारमोन (इंसुलिन) बनना बंद या कम हो जाता है. इन्सुलिन के अभाव में शक्कर का मेटाबॉलिज्म ठीक तरह से नहीं हो पाता है, जिससे वह खून में ही रहती है, जिसे Hyperglycemia कहते हैं. डायबिटीज किसी भी उम्र में हो सकती है. डायबिटीज दो प्रकार की होती है टाइप 1 व टाइप 2 डायबिटीज. बच्चों में ज्यादातर टाइप 1 डायबिटीज होती है.
टाइप-1 डायबिटीज: इसमें शरीर में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है. कुछ समय पहले तक साधारणतया बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज ही होती थी, इसलिए इसे जुवेनाइल (juvenile) डायबिटीज भी कहा जाता है. इसमें बच्चों को नियमित इंसुलिन इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं.
टाइप-2 डायबिटीज: यह थोडे बड़े बच्चों जैसे किशोरावस्था व युवाओं में होती है. इसमें इन्सुलिन का उत्पादन या तो कम होता है या फिर इन्सुलिन प्रतिरोध (Insulin resistance) की स्थिति होती है. यह बच्चे ज्यादातर मोटापे के शिकार रहते हैं या इनकी शारीरिक गतिविधियां काफी कम होती है इसलिए इन्हें यह बीमारी हो जाती है.
1 अत्यधिक भूख लगना
2. वजन कम होना
3 बार-बार पेशाब आना, खासकर रात में बार-बार उठकर पेशाब करना या बिस्तर गीला करना
4 खूब ज्यादा प्यास लगना तथा मुंह सूखना
5 चिड़चिड़ापन व थकान महसूस होना
6 बार-बार संक्रमण होना
7 घाव अथवा चोट का जल्दी ठीक नहीं होना.
1 नसों की क्षति (डायबिटिक न्यूरोपैथी)
2 गुर्दो पर असर होना (डायबिटिक नेफ्रोपैथी)
3 आंखों (Retina) पर प्रभाव और कभी-कभार अंधापन भी हो सकता हैl
4 हृदय रोग व स्ट्रोक जैसी समस्याएं होनाl
5 डायबिटिक कीटोएसिडोसिस – यह एक खतरनाक स्थिति है जिसमें समय पर इलाज नहीं करवाया जाए तो इससे मरीज कोमा में जा सकता है या मृत्यु भी हो सकती है.
7 डायबिटीज के चलते बच्चों के विकास, वजन व लम्बाई पर प्रभाव पड़ सकता है.
पौष्टिक आहार लें और अधिक चीनी व अत्यधिक कार्बोहाइड्रेटेड डाइट लेने से बचें. बच्चों को शारीरिक रुप से सक्रिय रहने के लिए प्रोत्साहित करें, जैसे कि उन्हे रोजाना 1 घंटा खेल कूद, सायकल चलाना आदि गतिविधियां करवाएं, जिससे उनमें मोटापा न बढ़े. यदि बच्चे का वजन जल्दी बढ़ रहा है तो डॉक्टर की सलाह लें तथा डायटीशियन को भी दिखाऐं. इस प्रकार मोटापे से होने वाली टाइप-2 डायबिटीज से बचा जा सकता है.
1. बच्चों व किशोरों में डायबिटीज का पता लगाने के लिए खून में शुगर की जांच (ब्लड ग्लूकोज) से पता लगाया जा सकता है.
2. Hemoglobin AIC टेस्ट (HbAIC) से भी डायबिटीज पता की जा सकती है तथा पिछले कुछ महीनो में शरीर में शुगर का कंट्रोल भी जाना जा सकता है.
3. इसके अलावा पेशाब में शुगर की जांच की जा सकती है जिससे डायबिटीज का पता चल सकता है.
बच्चों में डायबिटीज होने पर डाक्टर के निर्देशानुसार नियमित दवा का इंजक्शन (इंसुलिन) या गोली लेते रहें और डॉक्टर के सम्पर्क में बने रहें. नियमित रुप से खून में शुगर की निगरानी के लिए ग्लूकोमीटर नामक एक मशीन से’ खून में शुगर की जाँच घर पर ही कर सकते हैं. नियमित रूप से HbA1c लेवल की जांच करवाई जिससे पिछले तीन महीनों का शुगर कंट्रोल पता कर सकते हैं. बच्चों को ज्यादा देर तक भूखा ना रहने दें और उनकी शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान दें.
इसके अलावा यह भी ध्यान देने की आवश्कता है कि यदि बच्चा जरूरत से ज्यादा खेल कूद करता है और अधिक देर तक भूखा रहता है तो उसका शुगर लेवल कम हो सकता है (hypoglycemia) जिससे वह बच्चा कमजोरी महसूस कर सकता है तब उसे तुरंत शक्कर, ग्लुकोज का पानी या बिस्किट आदि खिला सकते हैं ताकि उसका शुगर लेवल संतुलित हो जाए. ज्यादा समस्या आने पर तुरंत ऐसे अस्पताल जहां चौबीस घंटे डाक्टरों की सुविधा हो, ताकि जरुरत पड़ने पर तुरंत इलाज मिल सके.
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Tags: Diabetes, Health tips, Lifestyle
FIRST PUBLISHED : November 15, 2023, 11:27 IST