बीजेपी की तुलना में कांग्रेसी मंत्रियों पर ज्यादा होती है एंटी इंकम्बेंसी की मार, आलाकमान के संकेत से खलबली
हाइलाइट्स
एंटी इंकम्बेंसी से बचने के लिए बीजेपी अपने मंत्रियों के टिकट काटने में कांग्रेस से रही है आगे
गहलोत सरकार में उप मुख्यमंत्री कमला बेनीवाल और बनवारी लाल बैरवा 2003 में चुनाव हारे
दोनों दलों के सीएम ने तो सीटें बचाईं, लेकिन कई मंत्रियों को झेलनी पड़ी जनता की नाराजगी
एच. मलिक
जोधपुर/जयपुर. विधानसभा चुनाव में गहलोत सरकार के कई मंत्रियों की टिकट कट सकती है. कांग्रेस (Congress) के आला नेता कई बार इसके संकेत दे चुके हैं. दरअसल इसके पीछे एक अहम कारण मंत्रियों की हार का गणित भी है. दो दशकों का इतिहास बताता है कि बीजेपी (BJP) की तुलना में कांग्रेसी मंत्रियों को ज्यादा एंटी इन्कंबेंसी फेक्टर (Anti-Incumbency Factor) की मार झेलनी पड़ी है. इसलिए कांग्रेस की रणनीति है कि कमजोर मंत्रियों (Ministers) की जगह जिताऊ चेहरे को टिकट दी जाए.
विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर कांग्रेस के अपने सर्वे में ही कई मंत्रियों की स्थिति कमजोर नजर आ रही है. इसलिए इस बार कई मंत्रियों के टिकट काटे जाने की बात सामने आ रही है. प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा तो कुछ मंत्रियों से इस पर वन-टू-वन चर्चा भी कर चुके हैं.
पिछले चार चुनावों में मंत्रियों का हार-जीत का गणित
यदि पिछले चार विधानसभा चुनावों के जीत-हार के आंकड़ों की पड़ताल करें तो पाएंगे कि सत्ता में रहते 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सर्वाधिक 37 मंत्रियों को चुनाव में हार मिले थी. इनमें दो उप मुख्यमंत्री और 18 कैबिनेट मंत्री भी शामिल थे. दस साल बाद 2013 के चुनाव में कांग्रेस के 12 कैबिनेट और 18 राज्यमंत्रियों को जनता ने हार का स्वाद चखाया था. दूसरी ओर 2008 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में रहते बीजेपी के 17 मंत्रियों हो हार झेलनी पड़ी. लेकिन दस साल बाद बीजेपी के मंत्रियों के खिलाफ एंटी इन्कंबेंसी बढ़ी और 25 मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा, जिसमें से 15 तो कैबिनेट मंत्री ही थे.
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2018: वसुंधरा राजे जीती, पर 25 मंत्री चुनाव हारे
पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो वसुंधरा राजे सरकार के मंत्रियों के खिलाफ जनता ने खूब नाराजगी दिखाई. ‘मोदी तुझसे बैर नहीं और वसुंधरा तेरी खैर नहीं’ के नारे के बीच चुनाव में बीजेपी से साख मंत्रियों को भी हार का मुंह देखना पड़ा. वसुंधरा राजे ने 18 कैबिनेट और 13 राज्यमंत्री बनाए थे. लेकिन बड़े-बड़े कद्दावर मंत्री हार गए. मुख्यमंत्री राजे के अलावा गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़, कालीचरण सर्राफ और किरण माहेश्वरी ही अपनी सीट निकाल पाए. इसके अलावा 13 राज्यमंत्रियों में से वासुदेव देवनानी, पुष्पेंद्र सिंह राणावत और अनिता भदेल को ही जीत नसीब हो पाई. आठ राज्यमंत्रियों को जनता का नाराजगी का सामना करना पड़ा.
2013: कांग्रेस के मंत्रियों ने पहली बार देखी इतनी करारी हार
विधानसभा के 2013 के चुनाव में तो कांग्रेस सरकार के मंत्रियों को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा. अशोक गहलोत सरकार की 80 प्रतिशत कैबिनेट हार गई. गहलोत ने 2008 में जीत के बाद 15 कैबिनेट और 18 राज्य मंत्री बनाए थे. लेकिन चुनाव में पार्टी ने इतिहास की सबसे बुरी हार देखी और कांग्रेस केवल 21 सीटों पर सिमट गई. गहलोत कैबिनेट में शामिल 15 मंत्रियों में से सिर्फ 3 ही जीत पाए, इनमें खुद सीएम गहलोत के अलावा महेंद्रजीत सिंह मालवीय और मास्टर भंवरलाल मेघवाल ही थे. इसके अलावा 18 राज्यमंत्रियों में से सिर्फ बृजेंद्र ओला और डॉ. राजकुमार शर्मा ही अपनी जीत को दोहरा सके.
2008: पहली परिवर्तन यात्रा के पांच साल बाद ‘परिवर्तन’
वसुंधरा राजे परिवर्तन यात्रा के बाद 2003 में पहली बार सीएम बनीं थी. राजे ने 20 कैबिनेट मंत्री बनाए. लेकिन पांच साल के बाद सरकार जब चुनाव में उतरी तो बीजेपी के करीब आधे मंत्री चुनाव हार गए. राजे के 11 कैबिनेट मंत्री ही अपनी सीट बचा पाए. इनमें खुद राजे के अलावा किरोड़ीलाल मीणा, गुलाबचंद कटारिया, घनश्याम तिवाड़ी, नरपत सिंह राजवी, प्रभुलाल सैनी, राजेंद्र राठौड़, दिगम्बर सिंह, कालीचरण सर्राफ, देवीसिंह भाटी और नंदलाल मीणा ने विधानसभा चुनाव-2008 जीता था. इसके अलावा सरकार के 13 राज्य मंत्रियों में से वासुदेव देवनानी और गजेंद्र सिंह खींवसर सहित 3 ही मंत्री चुनाव जीत पाए थे.
2003: कांग्रेस के दो-दो उपमुख्यमंत्री हारे
नब्बे के दशक के आखिर में 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में 153 सीटों की बड़ी जीत के बाद गहलोत ने सत्ता संभाली थी. अपने 5 साल के कार्यकाल में गहलोत ने दो उप-मुख्यमंत्री समेत 25 कैबिनेट मिनिस्टर बनाए. लेकिन विधानसभा चुनाव-2003 में केवल 7 मंत्री ही चुनाव जीत पाए. इनमें सीएम गहलोत के अलावा बीडी कल्ला, डॉ. सीपी जोशी, रामनारायण चौधरी, गोविंद सिंह गुर्जर, प्रद्युम्न सिंह और रामसिंह विश्नोई ही जीते. गहलोत ने कमला बेनीवाल और बनवारी लाल बैरवा दो उप-मुख्यमंत्री बनाए थे और दोनों ही चुनाव हार गए. इसके अलावा 22 राज्यमंत्रियों में से केवल तीन डॉ. जितेंद्र सिंह, हेमाराम चौधरी और रघुवीर मीणा ही चुनाव जीत सके.
बीजेपी ने जिन मंत्रियों के टिकट काटे सभी हारे
बीजेपी मंत्रियों के टिकट काटने के मामले में भी कांग्रेस से आगे है. कांग्रेस ने 2013 में मंत्री डॉ. राजकुमार शर्मा और बाबूलाल नागर का टिकट काटा. इसके बाद राजकुमार शर्मा निर्दलीय लड़े और नवलगढ़ से जीत गए. वहीं रेप के आरोप लगने के बाद बाबूलाल नागर का टिकट काट उनके भाई हजारी लाल नागर को टिकट दिया. मगर वे चुनाव हार गए थे. दूसरी ओर 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने तत्कालीन कैबिनेट मंत्री हेम सिंह भडाना, पीएचईडी मंत्री सुरेंद्र गोयल, देव स्थान मंत्री राजकुमार रिणवा और पंचायती राज राज्यमंत्री धनसिंह रावत के टिकट काटे थे. वहीं जनजाति मंत्री नंदलाल मीणा और मंत्री जसवंत यादव की जगह उनके बेटों को टिकट दिया गया था. बीजेपी ने 2018 में जिन मंत्रियों के टिकट काटे वे सभी हार गए.
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FIRST PUBLISHED : September 05, 2023, 06:31 IST