बोयतराम डूडी: 100 साल की उम्र में हुआ निधन, द्वितीय विश्वयुद्ध में दिखाया था शौर्य, बेमिसाल सैनिक थे
हाइलाइट्स
बोयतराम को चार सेना मेडल से नवाजा गया था
राजस्थान के झुुंझुनूं के भौड़की गांव के रहने वाले थे
बोयतराम सेना से 66 साल पहले सेवानिवृत्त हो गए थे
कृष्ण शेखावत.
झुंझुनूं. देश को सबसे अधिक सैनिक और शहीद देनी वाली राजस्थान की वीर धरा झुंझुनूं के बहादुर सिपाही बोयतराम डूडी (Brave Soldier Boytram Dudi) का 100 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है. बोयतराम डूडी का सोमवार को उनके पैतृक गांव भौड़की गांव में अंतिम संस्कार कर दिया गया. बोयतराम ने द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) में छह मोर्चों पर जंग लड़ी थी. वे महज साढ़े 17 वर्ष की उम्र में सेना में भर्ती हो गए थे. बोयतराम 66 साल पहले रिटायर हुए थे. रिटायरमेंट के समय बोयतराम की पेंशन महज 19 रुपये थी लेकिन उनके निधन के समय तक यह 35460 रुपये हो गई थी.
राजस्थान के कई बहादुर सैनिकों ने विभिन्न युद्धों में अपने शौर्य का परिचय देते हुए देश के लिए शहादत दी है. राजस्थान के जांबाजों की बहादुरी किस्से तो प्रसिद्ध हैं ही उनके बनाए कई रिकॉर्ड भी आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है. ऐसा ही एक रिकॉर्ड बोयतराम डूडी के नाम भी है. बोयतराम की पहचान सबसे अधिक समय तक पेंशन लेने सैनिक के रूप में भी रही है. बोयतराम डूडी वो पूर्व सैनिक थे जो जिन्हें बीते करीब 66 साल तक फौज से पेंशन से मिलती रही. वे अपने गांव में ही रह रहे थे. वहीं पर उन्होंने अंतिम सांस ली.
आपके शहर से (झुंझुनूं)
रिटायरमेंट के बाद19 रुपये पेंशन मिलनी शुरू हुई थी
बोयतराम संभवतया प्रदेश में एकमात्र ऐसे पूर्व सैनिक थे जिन्होंने रिटायर्ड होने के बाद करीबन 66 साल तक फौज से पेंशन ली. बोयतराम 1957 में रिटायर होकर आए थे. तब उन्हें महज 19 रुपये पेंशन मिलती थी. उनकी यह पेंशन 66 साल बाद बढ़कर 35640 रुपये तक पहुंच गई थी. अब उनकी धर्मपत्नी 92 वर्षीय चंदा देवी सेना के नियमानुसर आजीवन पेंशन मिलेगी. बोयतराम के निधन के बाद गांव में शोक की लहर दौड़ गई. उनके अंतिम संस्कार में परिजनों और नाते- रिश्तेदार समेत काफी संख्या में पूर्व सैनिक भी शामिल हुए.
बोयतराम को बहादुरी के लिए चार सेना मेडल मिले थे
झुंझुनूं जिले के भौड़की गांव निवासी पूर्व सैनिक बोयतराम डूडी 66 साल से लगातार पेंशन लेने का अनूठा रिकॉर्ड बनाकर सुर्खियों में आए थे. भौड़की के बोयतराम डूडी दूसरे विश्व युद्ध में शामिल हुए थे. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में छह मोर्चो पर जंग लड़ी थी. उन्हें उनकी बहादुरी के लिए चार सेना मेडल मिले थे. डूडी अक्सर ग्रामीणों को दूसरे विश्व युद्ध के किस्से सुनाया करते थे. उनका जन्म भौड़की में 1923 में हुआ था. वे केवल साढ़े 17 साल की उम्र में सेना में चले गए थे.
सेना की राजरिफ बटालियन में हुई थी पोस्टिंग
उनकी पोस्टिंग सेना की राजरिफ बटालियन में हुई थी. दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने पर उनको लीबिया और अफ्रीका के छह मोर्चों पर जंग के लिए भेजा गया था. उन्होंने इस लड़ाई में अभूतपूर्व बहादुरी का परिचय दिया था. उनकी बटालियन के 80 फीसदी सैनिकों के शहीद होने के बाद भी उन्होने लड़ाई जारी रखी थी. बोयतराम 1957 में सेना से रिटायर हो गए. बताया जाता है कि वे न केवल राजस्थान बल्कि देश के भी संभवतया सर्वाधिक समय तक पेंशन लेने वाले पूर्व सैनिक थे.
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Tags: Indian army, Jhunjhunu news, Rajasthan news, Soldier death
FIRST PUBLISHED : January 31, 2023, 13:36 IST