Religion

ब्राह्मण आखिर हैं क्या ? जाने

👉 ब्राह्मण का अर्थ क्या है ?

“वज्रसूची उपनिषद” के माध्यम से जान ने का प्रयास करे कि ब्राह्मण कौन है …? इसके लिए कई प्रश्न किये गए हैं !
क्या ब्राह्मण जीव है ? शरीर है, जाति है, ज्ञान है, कर्म है, या धार्मिकता है ?
कर्मकांड मे निमग्न कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण हे …?

ब्राह्मण शब्द आदि वेद से उत्पन्न हुआ है ब्राह्मण शब्द का अर्थ या परिभाषा वेद या उपनिषद से जानना उत्तम है

‘ब्राह्मण’ की परिभाषा बताते हुए उपनिषदकार कहते हैं कि जो समस्त दोषों से रहित, अद्वितीय, आत्मतत्व से संपृक्त है, वह ब्राह्मण है !

क्योकि आत्मतत्व, सतचित्त, आनंद रूप ब्रह्म भाव से युक्त होता है, इसलिए इस ब्रह्म भाव से संपन्न मनुष्य को ही सच्चा ब्राह्मण कहा जा सकता है !

सर्वप्रथम चारों वर्णों में से ब्राह्मण की प्रधानता का उल्लेख किया गया है|

अज्ञान नाशक, ज्ञानहीनों के दूषण, ज्ञान नेत्र वालों के भूषण रूप वज्रसूची उपनिषद का वर्णन करते है !!

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चार वर्ण हैं ! इन वर्णों में ब्राह्मण ही प्रधान है, ऐसा वेदो का वचन है ।

अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि ब्राह्मण कौन है ? क्या वह जीव है अथवा कोई शरीर है अथवा जाति अथवा कर्म अथवा ज्ञान अथवा धार्मिकता है ?

इस स्थिति में यदि सर्वप्रथम जीव को ही ब्राह्मण मानें तो यह संभव नहीं है; क्योंकि भूतकाल और भविष्यतकाल में अनेक जीव हुए होंगें ! उन सबका स्वरुप भी एक जैसा ही होता है ! और समस्त शरीरों में, जीवों में एकत्व रहता है, इसलिए केवल जीव को ब्राह्मण नहीं कह सकते ।

क्या शरीर ब्राह्मण है ? नहीं

यह भी नहीं हो सकता ! चांडाल से लेकर सभी मानवों के शरीर एक जैसे है अर्थात पांचभौतिक होते हैं,उनमें जरा-मरण, धर्म-अधर्म आदि सभी सामान होते हैं ! ब्राह्मण- गौर वर्ण, क्षत्रिय- रक्त वर्ण , वैश्य- पीत वर्ण और शूद्र- कृष्ण वर्ण वाला ही हो इसलिए केवल शरीर का ब्राह्मण होना भी संभव नहीं है !!

क्या जाति ब्राह्मण है ? नहीं,

यह भी नहीं हो सकता; क्योंकि विभिन्न जातियों एवं प्रजातियों में भी बहुत से ऋषियों की उत्पत्ति वर्णित है ! जैसे – मृगी से श्रृंगी ऋषि की, कुश से कौशिक की, जम्बुक से जाम्बूक की, वाल्मिक से वाल्मीकि की, मल्लाह कन्या से वेदव्यास की, शशक पृष्ठ से गौतम की, उर्वशी से वशिष्ठ की, कुम्भ से अगस्त्य ऋषि की उत्पत्ति वर्णित है ! इस प्रकार पूर्व में ही कई ऋषि बिना ब्राह्मण जाति के ही प्रकांड विद्वान् हुए हैं, इसलिए केवल कोई जाति विशेष भी ब्राह्मण नहीं हो सकती है !

क्या ज्ञान को ब्राह्मण माना जाये ?

ऐसा भी नहीं हो सकता; क्योंकि बहुत से क्षत्रिय आदि भी परमार्थ दर्शन के ज्ञाता हुए हैं ! इसलिए केवल ज्ञान भी ब्राह्मण नहीं हो सकता है !

तो क्या कर्म को ब्राह्मण माना जाये? नहीं

ऐसा भी संभव नहीं है; क्योंकि समस्त प्राणियों के संचित, प्रारब्ध और आगामी कर्मों में साम्य प्रतीत होता है तथा कर्माभिप्रेरित होकर ही व्यक्ति क्रिया करते हैं ! अतः केवल कर्म को भी ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता है !!

क्या धार्मिक , ब्राह्मण हो सकता है?

यह भी सुनिश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है; क्योंकि क्षत्रिय आदि बहुत से लोग स्वर्ण आदि का दान-पुण्य करते रहते हैं ! अतः केवल धार्मिक भी ब्राह्मण नहीं हो सकता है !!

तब ब्राह्मण किसे माना जाये ?

इसका उत्तर देते हुए उपनिषत्कार कहते हैं – जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त ना हो; जाति गुण और क्रिया से भी युक्त ना हो; सत्य, ज्ञान, आनंद स्वरुप स्थिति में रहने वाला , समस्त प्राणियों के अंतस में निवास करने वाला , अन्दर-बाहर आकाशवत,अखंड आनंद्वान , अनुभवगम्य , काम-राग द्वेष आदि दोषों से रहित होकर कृतार्थ हो जाने वाला ; शम-दम आदि से संपन्न ; मात्सर्य , तृष्णा , आशा,मोह आदि भावों से रहित; दंभ, अहंकार आदि दोषों से चित्त को सर्वथा अलग रखने वाला हो, वही ब्राह्मण है ।

इस प्रकार ब्रह्मभाव से संपन्न मनुष्यों को ही ब्राह्मण माना जा सकता है ! यही उपनिषद का मत है !

ब्राह्मण की पहचान
ब्राह्मण ज्ञान के दीप जलाने का नाम है,
ब्राह्मण विद्या का प्रकाश फैलाने का काम है।
ब्राह्मण स्वाभिमान से जीने का ढंग है,
ब्राह्मण सृष्टि का अनुपम अमिट अंग है।
ब्राह्मण विकराल हलाहल पीने की कला है,
ब्राह्मण कठिन संघर्षों को जीकर ही पला है।
ब्राह्मण ज्ञान, भक्ति, त्याग, परमार्थ का प्रकाश है,
ब्राह्मण शक्ति, कौशल, पुरुषार्थ का आकाश है।
ब्राह्मण न धर्म, न जाति में बंधा इंसान है,
ब्राह्मण मनुष्य के रूप में साक्षात भगवान है।
ब्राह्मण कंठ में शारदा लिए ज्ञान का संवाहक है,
ब्राह्मण हाथ में शस्त्र लिए आतंक का संहारक है।
ब्राह्मण सिर्फ मंदिर में पूजा करता हुआ पुजारी नहीं है,
ब्राह्मण घर-घर भीख मांगता भिखारी नहीं है।
ब्राह्मण गरीबी में सुदामा-सा सरल है,
ब्राह्मण त्याग में दधीचि-सा विरल है।
ब्राह्मण विषधरों के शहर में शंकर के समान है,
ब्राह्मण के हस्त में शत्रुओं के लिए बेद कीर्तिवान है।
ब्राह्मण सूखते रिश्तों को संवेदनाओं से सजाता है,
ब्राह्मण निषिद्ध गलियों में सहमे सत्य को बचाता है।
ब्राह्मण संकुचित विचारधारों से परे एक नाम है,
ब्राह्मण सबके अंत:स्थल में बसा अविरल राम है।

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