भूल जाएंगे मथुरा के पेड़ों का स्वाद, खेतड़ी की इस मिठाई के आगे फीकी है ‘बरेली की बर्फी’

निजी काम से अचानक ही खेतड़ी जाने का कार्यक्रम बन गया. दिल्ली से पत्नी आशु, मित्र मदन गहलोत और अमित कुमार के साथ सुबह-सवेरे खेतड़ी के लिए निकल पड़े. खेतड़ी मित्र अमित कुमार का पैतृक आवास है. गुरुग्राम, रेवाड़ी होते हुए हम राजस्थान के झुंझुनू की ओर बढ़ रहे थे. छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच निकलता साफ-सुथरा रास्ता सफर को सुहाना बना रहा था. दिल्ली से खेतड़ी की दूरी लगभग 225 किलोमीटर की है. कार से यह सफर तकरीबन साढ़े तीन घंटे का है.
खेतड़ी के रास्ते में एक अजीब से कशीश जो पर्यटकों को खींचती है. सड़क के दोनों ओर बिखरे कुदरत के नजारों को देखकर यही ख्याल आ रहा था कि दो दिन की छुट्टी मिलते ही दिल्ली वाले पहाड़ों की ओर भागते हैं. हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून या नैनीताल में पर्यटकों की अचानक बढ़ी भीड़ सारे सफर और छुट्टी का मजा किरकिरा कर देती है. कुदरत की जिस खूबसूरती के लिए हम नैनीताल, देहरादून भागते हैं, वह तो खेतड़ी के रास्तों में दिल खोल का बिखरी हुई है. अरावली पहाड़ियों की तलहटी से गुजरता रास्ता निश्चित ही हर किसी को आकर्षित करता है. ठंडी हवा का झोंखे और साफ-सुथरी (यहां आपको सड़के के किनारे कचरे के ढेर देखने को नहीं मिलेंगे) सड़क पर बहते हुए हम आगे बढ़ते चले जा रहे थे.
खेतड़ी में प्रवेश करने से पहले सामना हुआ कॉपर माइंस का. अमित ने बताया कि राजस्थान का खेतड़ी तांबा बेल्ट के नाम से दुनिया में विख्यात है. यहां की जमीन में तांबे का भंडार है. सिंघाना से लेकर रघुनाथगढ़ तक 80 किलोमीटर का इलाका मेटलोजेनेटिक प्रांत में आता है. यह इलाका हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के अंतर्गत आता है. इस इलाके में जहां तक आप नजर दौड़ाएंगे, खेतों में बिखरी लाल मिट्टी ही नजर आएगी. बताया जाता है कि मिट्टी में तांबे की मात्रा अधिक होने के चलते मिट्टी में अलग ही निखार दिखलाई पड़ता है. खेतड़ी को कॉपर नगर के नाम से भी जाना जाता है.
सिंघाना से ही अगला कस्बा खेतड़ी है. यह दो हिस्सों में बँटा हुआ है. खेतड़ी नगर और उससे 10 किलोमीटर आगे खेतड़ी गांव. वैसे तो यहां गांव कतई नहीं है. यहां एक बड़े शहर जैसी तमाम सुविधाएं हैं. हां, आबादी के लिहाज से यह गांव ही प्रतीत होता है. हमारा पड़ाव खेतड़ी गांव ही था. इस गांव की खूबसूरती देखते ही बनती है. खेतड़ी नगर का निर्माण राजा खेत सिंहजी निर्वाण द्वारा कराया गया.
अब बात पेड़ों की बात
खेतड़ी आना तो किसी और काम से हुआ था, लेकिन इस एक दिन की यात्रा के दूर तलक और देर तक असर की बात करें तो यहां पेड़ों का स्वाद और हलवाई की भट्टी के उठती सौंधी महक अभी भी जहन में घुली हुई है. दोपहर के भोजन आदि से निवृत्त होकर दिल्ली वापसी से पहले खेतड़ी के पैदल भ्रमण का कार्यक्रम बना. यह आमंत्रण अमित कुमार की तरफ से आया. उनका कहना था कि यहां कि मिठाई खाकर आप अच्छी से अच्छी मिठाई का स्वाद भूल जाएंगे.
हम चार-पांच खेतड़ी भ्रमण के लिए निकल पड़े. अमित कुमार हमें मुख्य बाजार में किले के एक बड़े से फाटक के पास ‘श्री श्याम मिष्ठान भंडार’ पर ले गए. इस मिष्ठान भंडार के बोर्ड पर लिखा था- ‘चिड़ावा के मशहूर पेड़े’. चूंकि चिड़ावा के पेड़े हम पहले भी खा चुके थे, लेकिन हमें स्वाद में कोई खास नहीं लगे. क्योंकि हमारे मुंह तो मथुरा के पेड़े लगे थे. शुद्ध देशी घी में दानेदार मावा के मीठे-मीठे मथुरा के पेड़े.
दुकान पर ग्राहक के नाम पर हम ही पांच लोग थे. वहां शोकेस में पेड़े, बर्फी, मिल्क केक, बेसन की बर्फी और कलाकंद लगा था. हलवाई की दुकान में कुल मिलाकर 4-5 मिठाई…! मिठाई खरीदने से पहले उनकी चैकिंग शुरू की गई. दुकान के स्वामी श्याम जी ने खुश होकर हमें दुकान की हर मिठाई चखने के लिए दी और वह भी पूरी-पूरी मात्रा में. जितनी मिठाई हम लोगों ने टेस्टिंग में खाई वह कम से कम आधा किलो तो जरूर होगी. इसे मिठाई की जादू ही कहेंगे कि जो मिठाई मुंह में जाती तुरंत ही उसे एक-दो किलोग्राम की मात्रा में पैकिंग का ऑर्डर दे दिया जाता. मजेदार बात ये है कि घर में खाने वाले चार लोग और मिठाई पैक करवा ली लगभग आठ किलो. हमारे साथियों ने भी कई-कई किलो मिठाई पैक करवा ली. क्योंकि मिठाई जुबान और जेब दोनों के ही मुफीद थी. अगर यही मिठाई दिल्ली में खरीदी जाए तो 500-600 रुपये किलो से कतई कम नहीं होगी और शुद्धता का भी भरोसा नहीं. जबकि यहां इसका रेट 350 रुपये किलो था.
पेड़ों के साथ-साथ यहां की बर्फी का जिक्र करना भी जरूरी है. इसका स्वाद आपको बरेली की बर्फी (फिल्म की वजह से चर्चा में आई) से उम्दा ही मिलेगा.
मिठाई के स्वाद और पैकिंग के साथ-साथ श्यामजी ने हमें पूरी दुकान का मुआयना करवाया और मिठाई कैसे बनती है, इसकी पूरी जानकारी दी. दुकान के अंदर ही बड़े-बड़े कड़ाहे में अलग-अलग काम हो रहा था. किसी कहाड़े में दूध औट रहा था तो किसी में मावा घोटा जा रहा था. इस औटने और घोटने में जो महक हवा में घुल रही थी वाकई मदहोश कर रही थी.
श्यामजी ने बताया कि वह पिछले 55 सालों से पेड़े बनाने का काम कर रहे हैं. पहले वह चिड़ावा में यह काम करते थे अब पिछले तीस सालों से खेतड़ी में उनकी दुकान सजी है. हालांकि, मिठाई बनाने की जिम्मेदारी अब उनके बेटे संभाल रहे हैं.
त्योहारों पर लगती है लंबी लाइन
जब हम मिठाई खरीद रहे थे, तो दो-तीन ग्राहक और आ गए. श्यामजी के पेड़ों की चर्चा उनके साथ चली तो उन्होंने बताया कि आज भले ही यहां कम भीड़ हो लेकिन तीज-त्योहार के मौकों पर यहां लंबी लाइन लगती है. लोग कई-कई दिन पहले अपना ऑर्डर दे देते हैं. बड़ा ऑर्डर बाहर का होता है. त्योहारों के अलावा भी तैयार माल लगातार बिकता रहता है. भले ही दुकान में ग्राहक दिखाई ना दें, लेकिन बड़ी-बड़ी भट्टियों से उठती आग की लपटें गवाह हैं कि माल लगातार तैयार होता रहता है और साथ के साथ बिकता भी रहता है.
शुद्धता सोने से खरी
हमने पूरी दुकान में घूम-घूम कर देखा. सामान के नाम पर हमें ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दिया जो मिठाई में अलग से मिलाया जाता हो. दूध के कैन, चीनी की बोरियां, बेसन, मैदा के कट्टों के अलावा कुछ नहीं था. यानी खालिस दूध, चीनी, बेसन और मावा की मिठाई. शुद्धता की गवाही यहां दीवार पर टंगे एफएसएसएआई के सर्टिफिकेट भी दे रहे थे. श्यामजी ने बताया कि अक्सर लोग मिठाई में मिलावट की शिकायत प्रशासन को कर देते हैं. फूड डिपार्टमेंट की टीम कई बार आई और सैंपल लेकर गई. लेकिन हर बार उनकी मिठाई शुद्धता के हर पैमाने पर खरी उतरी.
यहां नमकीन सेव भी बनते हैं. नमकीन सेव चाय के साथ नाश्ते में तो इस्तेमाल होते ही हैं, साथ ही इनकी सब्जी भी बड़ी लाजवाब बनती है. डेढ़ सौ रुपये किलो के हिसाब से आपको जायकेदार सेव खाने को मिल जाएंगे.
पर्यटन की नजरिये से भी खास
ये बात हुई यहां की मिठाई की. खेतड़ी एक-दो दिन की पिकनिक के हिसाब से भी बहुत शानदार जगह है. इसका इतिहास भी बड़ा समृद्ध है. जिस जगह अमित का घर है, वहीं बगल में खाटू श्याम का एक भव्य मंदिर है. खास बात ये है कि अमित का घर पहाड़ी की तलहटी में है, जिसके कारण यहां का मौसम हमेशा खुशगवार रहता है. खेतड़ी महल का निर्माण भोपाल सिंह द्वारा करवाया गया था. भोपाल सिंह शार्दुल सिंह का पोता था. खेतड़ी महल दरवाजे या खिड़कियां नहीं हैं. इसलिए इसे हवा महल भी कहते हैं. जयपुर के सवाई प्रताप सिंह इस अनोखी संरचना से इतने प्रभावित हुए कि 1799 में जयपुर के हवा महल का निर्माण करवाया.
तो अगर आपके पास एक दिन की छुट्टी में कहीं घूमने-फिरने का प्लान है तो इस बार खेतड़ी जाने की प्लानिंग कर सकते हैं. एक दिन यहा छोटा सा टूर निश्चित ही यादगार टूर साबित होगा.
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Tags: Government of Rajasthan, Jhunjhunu news
FIRST PUBLISHED : October 11, 2023, 14:58 IST