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मां दुर्गा का अनोखा स्वरूप: शेर नहीं घोड़े पर सवार हैं महाराणा प्रताप की कुलदेवी, पढ़ें बाणेश्वरी मंदिर का इतिहास

प्रतापगढ़. आपने शेर पर सवार मां दुर्गा के दर्शन तो किए ही हैं, लेकिन आज हम मां के ऐसे स्वरूप के बारे में बता रहे है, जिसमें मां एक घोड़े पर सवार है. मां के इस रूप को देखकर लगता है जैसे वह किसी युद्ध के मैदान में शत्रुओं का नाश करने जा रही हों. मान्यता है कि घोड़े पर सवार माता अपने भक्तों के सारे कष्ट को दूर करती हैं. मां की ऐसी भव्य, ऐतिहासिक और अद्वितीय मूर्ति प्रतापगढ़ शहर के प्राचीन किला परिसर में बाणमाता मंदिर में स्थापित है. यहां मां एक घोड़े पर सवार हैं. माता के एक हाथ में तलवार है और दूसरे में ढाल है. एक हाथ में धनुष और बाण है. एक में राक्षस की मुंड है और एक हाथ से घोड़े की बाग को संभाले हुए हैं, इसलिए बाणमाता या बाणेश्वरी देवी नाम से माता प्रसिद्ध हैं.

यह बाणमाता चित्तौडगढ़ के इतिहास को गौरवान्वित करने वाले महाप्रतापी महाराणा प्रताप, सांगा, कुम्भा की कुलदेवी हैं. सांगा के समय उनके परिवार के कुछ लोग प्रतापगढ़ आ गए और प्रतापगढ़ की राजधानी देवगढ़ में आकर अपनी रियासत कायम की. उसी रियासत से बाघसिंह भी हुए हैं. उन्होंने पाटन पोल पर अपनी कुर्बानी देकर चित्तौड़ को बचाने का प्रयत्न किया था. कहा जाता है कि सिसोदिया वंश पर जब विपदा आई, तो मां घोडे़ पर सवार होकर प्रकट हुईं और उनकी मदद की. तब से मां के इस स्वरूप को यहां स्थापित किया गया. तब से यहां बाणमाता की पूजा होती आ रही है.

बाणमाता से जुड़ा है अनोखा इतिहास
मुगल काल में राजस्थान की लगभग सभी रियासतों ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी, लेकिन चितौड़गढ़ ही ऐसी रियासत थी, जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की. पूरे देश को गौरवान्वित करने वाले इन्हीं महान महाप्रतापी राजाओं की कुलदेवी बाणेश्वरी शक्ति की प्रतीक हैं. जब भी महाराणा प्रताप, सांगा, कुम्भा जैसे प्रतापी शासक मुगलों से युद्ध के लिए जाते थे, तो पहले अपनी इस कुलदेवी की पूजा-अर्चना करते थे. बाणेश्वरी की उपासना के बाद ही रण भूमि पर जाते थे. इस विश्वास के साथ कि मां भगवती युद्ध में उनके साथ रहेंगी और विजय प्रदान करेगी.

मां दुर्गा का अनोखा स्वरूप: शेर नहीं घोड़े पर सवार हैं महाराणा प्रताप की कुलदेवी, पढ़ें बाणेश्वरी मंदिर का इतिहास

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मंदिर से जुड़े कई मान्यताएं
बाणमाता या बाणेश्वरी मंदिर की यह मान्यता है कि जो भी जिस भाव के साथ मां की शरण में आता है, उसकी इच्छा पूरी होती है. यहां संतान प्राप्ती की पूजा होती है. स्थानीय लोगों में मान्यता है कि गंभीर से गंभीर रोगी भी इसकी शरण में आता है, तो वह स्वस्थ हो जाता है. यहां आकर कई ऐसे व्यक्ति जिनकी बोली बंद थी, जिनके मुंह से आवाज तक नहीं निकलती थी और सभी जगह इलाज कराने के बाद भी ठीक नहीं हुए, वे जब यहां आए तो उनकी वाणी लौट आई.

Tags: Durga Pooja, Navratri, Pratapgarh news, Rajasthan news

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