राजस्थान: तुष्टिकरण बनाम ध्रुवीकरण की सियासत गरमाई, विकास का नारा हुआ गुम, जहरीली हो रही आबोहवा
जयपुर. राजस्थान में विधानसभा चुनाव से डेढ़ साल पहले ही सियासी माहौल गरमा गया है. कांग्रेस और बीजेपी (Congress and BJP) की लड़ाई को नेता तुष्टीकरण और ध्रुवीकरण (Appeasement and polarization) की निगाह से देख रहे हैं. राज्य में कई जगह टकराव की कोशिश हो रही है और उसमें सियासी पार्टियां अपना नफा और नुकसान का आकलन कर रही हैं. हिंदू नववर्ष से लेकर रामनवमी तक राजस्थान में सैंकड़ों शौभायात्रायें निकाली जा चुकी हैं. ये पहला मौका है जब इतनी बड़े पैमाने पर हिंदू नववर्ष मनाने का जोश दिखाई दिया है. तैयारियां लंबे अरसे से चल रही थी जो पर्वों के आते ही धरातल पर दिखाई दी. लेकिन इस बार उम्मीद से कहीं ज्यादा भीड़ थी. इसमें शांति, प्रेम और भाईचारे की जगह आक्रामकता दिखाई दी.
बीजेपी बहुसंख्यक हिंदुओं को अपने पाले में रखने के लिए हमेशा से हिंदुत्व के एजेंडे पर काम करती है. हिंदू राष्ट्रवाद उसकी पहचान रही है तो कांग्रेस पर वो हमेशा तुष्टीकरण के आरोप लगाते हुए उसे हिंदू विरोधी करार देने का कोई मौका नहीं चूकती. बरसों से दोनों पार्टियों के बीच इस सोच को लेकर विवाद है. करौली में जो हुआ उसके लिए दोनों ही पार्टियों ने एक दूसरे को दोषी ठहराया. सीएम गहलोत ने जेपी नड्डा तक को कसूरवार ठहराने में कोई देर नहीं की. वहीं बीजेपी के नेता राजस्थान से लेकर दिल्ली तक सक्रिय हो गये.
बीजेपी-कांग्रेस ने अपने-अपने नेताओं को मैदान में उतारा
लोकसभा और राज्यसभा में मामला गूंजा. उसके बाद बीजेपी के नेताओं ने दिल्ली जाकर प्रेस कांफ्रेस कर डाली. अशोक गहलोत सरकार पर तुष्टिकरण के आरोप लगाये गये. पीएफआई पर साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने तक के सबूत बीजेनी नेताओं ने दिखाये. करौली में माहौल के शांत होने का भी बीजेपी ने इंतजार नहीं किया. आठ सदस्यीय जांच दल तक भेजा गया तो कांग्रेस ने भी अपने नेताओं को मैदान में उतार दिया.
राजस्थान की आबोहवा जहरीली हो रही है
कांग्रेस बीजेपी पर हमलावर हुई तो उसने मदन दिलावर और किरोड़ीलाल मीना जैसे नेताओं को आगे कर दिया. जाहिर है नेता एक दूसरे पर माहौल बिगाड़ने का आरोप लगाकर सियासी रोटियां सेकने में जुटे हैं. करौली से लेकर दिल्ली तक राजस्थान की आबोहवा जहरीली हो रही है. शांत समझा जाने वाला सूबा दंगों की बदनामी झेल रहा है. हालात सुधारने की कोशिश करने के बजाय नेता हैं कि मानते ही नहीं.
विकास का नारा कहीं गुम सा हो गया है
प्रदेश की सियासी फिजां में विकास का नारा कहीं गुम सा हो गया है. तनाव की खबरें अब सुर्खियां बन रहीं हैं. पुलिस प्रशासन के लिए रोज की शोभायात्रायें परेशानी का सबब बन गई हैं. परमिशन नहीं दें तो सरकार पर तुष्टिकरण के आरोप लगते हैं. परमिशन दी जाये तो माहौल के खराब होने का खतरा बरकरार रहता है. बीजेपी नेता सरकार पर आरोप लगाते हैं कि वो अल्संख्यकों के आगे नतमस्तक हैं. उनके जुलूसों पर रोक लगाने की हिम्मत सरकार में नहीं है. इसके लिए कई जगहों के उदाहरण तक पेश किये जाते हैं.
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