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राजस्थान में मानसून से पहले क्यों आया सियासी मानसून ? 7 बड़े कारण और 10 बयानों से जानिए पूरी कहानी Rajasthan News-Jaipur News-why did political monsoon come before monsoon-Gehlot Vs Pilot Story

जयपुर. एक दिन बाद राजस्थान  की गहलोत सरकार (Gehlot government) ढाई साल पूरे करने जा रही है. पहले ढाई साल में विवादों से खूब नाता रहा और अब एक बार फिर यह चरम पर है. एक गुट के विधायकों को लगता है कि यदि अब भी कुछ न हुआ तो वे ‘माया मिली न राम’ वाली स्थिति में रह जाएंगे. उन्हें न तो मंत्री पद या बड़ी राजनीतिक नियुक्ति (Political appointment) मिलेगी और न ही उनके क्षेत्र में ज्यादा काम हो पाएंगे.

ऐसी स्थिति में प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां के चलते मौसमी मानसून आने से पहले ही सियासी मानसून छाया हुआ है. एक-के-बाद एक नए-नए बयानों की बारिश हो रही है. मंत्री और मंत्री ही नहीं मंत्रियों को विधायक तक तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे रहे हैं. उधर स्वास्थ्य कारणों से मुख्यमंत्री क्वारेंटीन हैं. वे जुलाई तक व्यक्तिगत रूप से किसी से नहीं मिलेंगे. मुख्यमंत्री की चुप्पी के बीच सियासी सरगर्मियां इतनी तेज क्यों हैं ? इसकी पीछे की वजह क्या है ? आइये दस बयानों और सात कारणों से सियासत की बिसात पर बिछी बाजी को समझते हैं.

सियासी मानसून में शह और मात का खेल

1. दिसम्बर 2018 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के संयुक्त प्रयास रंग लाए थे. तब मुख्यमंत्री के रूप में दोनों के नाम चले और युवा सोच पर अनुभव को वरियता मिली. तब इस तरह की खबरें भी आई थीं कि दोनों को ढाई-ढाई साल का मुख्यमंत्रित्व काल मिल सकता है. अब ढाई साल पूरा हो रहा है. ऐसे में सचिन गुट बगावती तेवर में है.2. राहुल गांधी के करीबी जितिन प्रसाद का उत्तर प्रदेश कांग्रेस से बीजेपी में जाना दूसरा बड़ा कारण है. दरअसल ज्योति-जितिन और सचिन की तिकड़ी में दो बीजेपी में जा चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव है कि सचिन को किसी भी सूरत में रोका जाए. आलाकमान पर इस दबाव को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए सचिन पायलट गुट एक्टिव है.

3. पंजाब कांग्रेस में भी राजस्थान की तरह मुख्यमंत्री वर्सेज विधायक का घमासान चल रहा है. नवजोत सिंह सिद्धू वहां विरोधियों के ‘पायलट’ बने हुए हैं. राजस्थान की तरह वहां भी सुलह कमेटी बनी और उसने अपनी रिपोर्ट पंद्रह दिन में दे दी. पायलट गुट को यही नाराजगी है कि पंजाब में जो रिपोर्ट कुछ दिन में आ सकती है, वह यहां दस माह से क्यों नहीं आई ?

4. पहली बार बसपा से कांग्रेस में आए छह विधायकों ने लगभग एक साथ नाराजगी जताई है. दरअसल उन्हें ढाई साल से मंत्रिमंडल विस्तार की लॉलीपॉप पकड़ाई जा रही है. लेकिन ‘न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी’. विस्तार ही नहीं हुआ इसलिए अभी मंत्री भी नहीं बने. बसपा से आए विधायकों की दो मंत्री बनाने की मांग है.

5. बहुसंख्यक, खासकर पायलट गुट के विधायकों का पुरजोर आरोप है कि उनके विधानसभा क्षेत्रों में विकास कार्य ही नहीं हो रहे हैं. आधा कार्यकाल बीत चुका है. वह अपने मतदाताओं को आश्वासन देते-देते थक चुके हैं. ऐसे में यदि अब भी विकास के काम नहीं हुए तो वे अगले विधानसभा चुनाव में लोगों को क्या जवाब देंगे ?

6. प्रदेश अध्यक्ष पद से सचिन पायलट को हटाने के बाद अध्यक्ष बने गोविंद सिंह डोटासरा को लेकर भी पार्टी के एक वर्ग में नाराजगी है. दरअसल बड़े नेता उन्हें दो पोर्टफोलियों (प्रदेश अध्यक्ष और शिक्षा राज्यमंत्री) पचा नहीं पा रहे हैं. डोटासरा महाराणा प्रताप पर और ‘नाथी का बाड़ा’ जैसे बयानों से भी विवादित बने रहे हैं. शिक्षा विभाग में परीक्षा और पदों पर नियुक्ति न होने से भी युवाओं में नाराजगी है.

7. गहलोत और पायलट गुट तो सर्वविदित है ही. अब गहलोत गुट के अंदर भी गुटबाजी ने पायलट गुट को प्रोत्साहित किया है. दो बार प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और वरिष्ठ यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल में खुलेआम तनातनी हो चुकी है. शांति धारीवाल और जल संसाधन मंत्री बीडी कल्ला में भी अच्छी पटरी नहीं बैठ रही है.

बयानों की बारिश में भीगते-भिगोते नेता

1. पंजाब में सुलह कमेटी की 15 दिन में अपनी रिपोर्ट दे दी. यहां दस महीने से ज्यादा का समय हो गया है – सचिन पायलट, पूर्व उपमुख्यमंत्री

2. मेरे क्षेत्र में ढाई से विकास कार्यों की उपेक्षा हो रही है. जिले के अधिकारी सिर्फ एक मंत्री के कहने पर काम कर रहे हैं. जनता के काम न होने से मैं जवाब देने की स्थिति में नहीं हूं. इसलिए इस्तीफा दे रहा हूं – हेमाराम चौधरी

3. मेरी सचिन पायलट से बात हुई है. वह जल्द ही बीजेपी का हिस्सा हो सकते हैं – रीता बहुगुणा जोशी

4. उनकी सचिन तेंदुलकर से बात हुई होगी. मुझसे बात करने का उनमें साहस नहीं है – सचिन पायलट

5. पिछले साल यदि बसपा से कांग्रेस में आए विधायक और दस निर्दलीय विधायक न होते तो सरकार की पहली पुण्यतिथि मन चुकी होती. क्योंकि तब मुख्यमंत्री के पास रिजाइन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था – राजेंद्र गुढ़ा, विधायक उदयपुरवाटी

6. ये मौसम ही कुछ ऐसा है. बहुत आतुर है परिंदे. अपना घौंसला बदलने के लिए….! डा. सुभाष गर्ग, तकनीकी शिक्षा राज्यमंत्री

7. कुछ परिंदे खुद का घोंसला कभी नहीं बनाते हैं. वे बस दूसरों के बनाए हुए घोंसलों पर ही अपना कब्जा जमाए रहते हैं – वेद प्रकाश सोलंकी, पायलट गुट के विधायक

8. इतनी देर से डींगें हांक रहे हो. आपने जयपुर के प्रभारी रहते ढाई साल में एक मीटिंग तक नहीं ली. काहे के प्रभारी हैं आप. मैं सोनिया गांधी से आपकी शिकायत करूंगा – गोविंद सिंह डोटासरा, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष

9. मैं सब देख लूंगा. मुझे ज्ञान देने की जरूरत नहीं हैं. क्या मुझे धमकाएंगे आप ? बहुत देखे हैं ऐसे अध्यक्ष ! – शांति धारीवाल, यूडीएच मिनिस्टर

10. पूर्वी राजस्थान में विधायकों को कोई सुनवाई नहीं हो रही है. हम सचिन पायलट के साथ हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम कांग्रेस के खिलाफ हैं और हमारे क्षेत्र में काम ही न हों – हरीश मीना, पायलट समर्थक विधायक

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