Rajasthan

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस – होम मैनेजमेंट से एडवांस टेक्नोलॉजी तक पहुंची महिलाएं | National Science Day- Women moved from home management to advanced tec

न्यू बोर्न बेबी की सांस होगी मॉनिटर आईआईटी गुवाहाटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी करने वाली श्रुतिधरा शर्मा वर्तमान में आईआईटी जोधपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। यहां उन्होंने फर्न लैब के नाम से अपनी प्रयोगशाला स्थापित की। जिसमें फ्लेक्सिबल सेंसर पर काम चल रहा है। वह बताती हैं कि जब न्यू बोर्न बेबी आईसीयू में होता है और उसकी सांसों को मॉनिटर किया जाता है। फ्लेक्सिवल सेंसर की मदद से पता लगाया जा सकेगा कि बच्चा सामान्य रूप से सांस ले रहा है या उसे परेशानी आ रही है, क्योंकि यह ऐसे सेंसर हैं जो ऊबड़-खाबड़ या समतल सतहों पर चिपक सकते हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक भारत सेंसर के लिए विदेशों पर निर्भर रहा है। मैं इसे बदलना चाहती हूं और यह साबित करना चाहती हूं कि बाधाओं के बावजूद भारत अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता है। उन्हें इंटरनेशनल सोसायटी फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी की ओर से ‘यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड 2023’ मिल चुका है।

photo_2024-02-25_16-28-44.jpgफोरेंसिक रिसर्च में डीएनए तकनीक केरला की डॉ. वीणा नायर ने डीएनए टेक्नालॉजी में रिसर्च की है। वह बताती हैं कि कई अपराधों को सुलझाने के लिए फोरेंसिक रिसर्च का प्रयोग डीएनए तकनीक के जरिए किया जा सकता है। इस तकनीक का प्रयोग सिविल मामलों को सुलझाने के लिए भी किया जा सकता है, जिनमें बच्चों के जैविक माता-पिता की पहचान, इमिग्रेशन मामले और मानव अंगों के ट्रांसप्लांट आदि शामिल हैं। उनका कहना है कि आनुवांशिक इंजीनियरिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए वैज्ञानिक एक जीव के जीनोम को संशोधित करते हैं। इसमें रेकॉम्बीनैंट डीएनए टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक में आनुवांशिक पदार्थों डीएनए तथा आरएनए के रसायन में परिवर्तन कर उसे मेजबान जीवों (होस्ट आर्गेनिज्म) में प्रवेश कराया जाता है। इससे इनके लक्षणों में परिवर्तन आ जाता है। रिसर्च में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि प्रथम रेकॉम्बीनैंट डीएनए का निर्माण साल्मोनेला टाइफीमूरियम के सहज प्लाज्मिड में प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन के जुडऩे से हो सका था। डीएनए तकनीक का अच्छा खासा उपयोग फसलों के उत्पादन और प्रतिरोधी क्षमता के इस्तेमाल में किया जा सकता है। फसलों के उत्पादन में आनुवांशिक इंजीनियरिंग का उपयोग कर रोग और कीटों से प्रतिरोधी फसलों को प्राप्त किया जा सकता है। वीणा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं।
photo_2024-02-25_17-51-02.jpg

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj