विज्ञान और तकनीक क्षेत्र में महिलाओं को मिल रही पहचान | sunday guest editor

किसी भी वस्तु या सेवा की गुणवत्ता में मानकों की अहम भूमिका होती है। सभी स्तरों पर मानकों के प्रति जागरूकता पिछले वर्षों में लगातार बढ़ी है। बीआईएस स्टैंडड्र्ज क्लब में 60 प्रतिशत मेंटॉर महिलाएं हंै, जो मानकों की अवेयरनेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। महिलाओं के लिए कहना चाहूंगी कि महिला एक पूर्ण चक्र है, जिसके भीतर सृजन, पोषण और परिवर्तन करने की शक्ति होती है। हिलेरी क्लिंटन के शब्दों में हमें यह समझने की जरूरत है कि महिलाओं को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए, इसका कोई फ ॉर्मूला नहीं है। इसलिए हमें उन विकल्पों का सम्मान करना चाहिए जो महिला अपने और अपने परिवार के लिए चुनती हैं।
सेहत का पाठ पढ़ा महिलाओं को बना रहीं आत्मनिर्भर जयपुर. टोंक रोड निवासी आशा कुमावत पिछले तीन साल से ईको फ्रेंडली सेनेटरी नैपकिन बनाकर ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूककर रही हंै। वे बताती हैं कि शुरुआत में 10-12 वर्ष शिक्षा के क्षेत्र में काम किया। बच्चे के जन्म के बाद उसे संभालने के लिए नौकरी छोड़ दी। कोविड के दौरान एक रिसर्च पढ़ रही थीं कि सेनेटरी नैपकिन में कितना कैमिकल आ रहा है, जिसका खमियाजा महिलाओं और पर्यावरण को भुगतना पड़ रहा है। इसी विषय पर और रिसर्च की तो सामने आया कि राजस्थान में अब भी बहुत से गांव हैं, जहां अभी तक सेनेटरी नैपकिन नहीं पहुंचे। उसके बाद ईको फ्रेंडली नैपकिन बनाना सीखा। पहले खुद ही ईको फ्रेंडली नैपकिन बनाए और अपने साथ कुछ महिलाओं को घंटे के हिसाब से काम पर रख लिया। धीरे-धीरे काम बढऩे लगा तो आस-पास की महिलाओं को भी रोजगार देना शुरू किया। उनका कहना है, ‘हालांकि मैं पहले से ही एक निजी संस्था में सेनेटरी नैपकिन अवेयरनेस के लिए काम कर रही थी। कोरोना के बाद पूरी तरह से इसी काम में जुट गई और अपने आस-पास छोटे-छोटे कस्बों को गोद लेने लग गई। हम हर माह मुफ्त नैपकिन उपलब्ध कराते हैं, महिलाओं में अब भी स्वास्थ्य के लिए प्रति जागरूकता की कमी है।Ó
ग्रामीण क्षेत्र में फैला रहीं अवेयरनेस
बाजार में जो नैपकिन आ रहे हैं, उनमें कैमिकल का इस्तेमाल होता है। लोग कैमिकल के प्रति इतना ज्यादा अवेयर ही नहीं है। सरकार की तरफ से मिलने वाला मैटीरियल भी अच्छा नहीं होता है। इससे संक्रमण फैलने का खतरा अधिक रहता है। यहां तक कि महिलाएं सर्वाइकल कैंसर जैसी गंभीर रोग का शिकार हो रही हैं।
़12 गांव की 25 से ज्यादा महिलाएं शामिल
आशा ने अपने काम में जयपुर के आस-पास के 12 गांवों की 25 से अधिक महिलाओं को शामिल किया, जो घरेलू हिंसा, दहेज के लिए प्रताडि़त और बाल विवाह का शिकार थीं। उन महिलाओं को अपने साथ लेकर ट्रेनिंग दी। ये महिलाएं बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हंै। इस पूरे काम को महिलाएं ही संभालती हैं और बनाने से लेकर बेचने तक का काम ये खुद करती हैं। इनका बनाया उत्पाद पूरे देश में जाता है। तीन साल में टर्नओवर दो करोड़ रुपए तक चला गया है।

