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संदेशे आते हैं… अंटार्कटिका में खुला तीसरा भारतीय डाकघर | Messages come… Third Indian post office opened in Antarctica

वीरान अंटार्कटिका में भारत के करीब 100 वैज्ञानिक काम करते हैं। उनका कहना है कि हाथ से लिखी चिट्ठियों का आज भी कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि इनके शब्दों में भावनाएं होती हैं। अंटार्कटिका ऑपरेशंस के ग्रुप डायरेक्टर शैलेंद्र सैनी का कहना है कि हमारे वैज्ञानिक सोशल मीडिया से जुड़े हैं, फिर भी वे अपने परिवार के साथ कम रफ्तार वाले इस माध्यम (चिट्ठियों) के जरिए जुड़े रहना पसंद करते हैं। हम साल में एक बार सारी चिट्ठियां इक_ा करेंगे और उन्हें गोवा में अपने मुख्यालय को भेजेंगे।

बर्फ में डूब गई पहली शाखा दक्षिण गंगोत्री बर्फीले महाद्वीप में नए डाकघर का पिनकोड ‘एमएच-1718’ रखा गया है। वहां पहला डाकघर ‘दक्षिण गंगोत्री’ 1984 में खोला गया था। यह वहां देश का पहला वैज्ञानिक बेस था। एक साल में इस डाकघर में करीब 10,000 चिट्ठियों का आना-जाना हुआ। दक्षिण गंगोत्री को 1988-89 में बर्फ में डूबने के बाद निष्क्रिय कर दिया गया। अंटार्कटिका में 1990 में डाकघर की दूसरी शाखा ‘मैत्री’ खोली गई।

जब भी देखेंगे, हरी होंगी यादें… महाराष्ट्र सर्किल के चीफ पोस्टमास्टर जनरल के.के. शर्मा ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अंटार्कटिका में नए पोस्ट ऑफिस का उद्घाटन करते हुए वैज्ञानिकों से अपील की कि वे अपने परिवार और दोस्तों को चिट्ठियां लिखना जारी रखें। ई-प्रारूप कुछ समय बाद मिट जाते हैं, लेकिन चिट्ठियां हमेशा अनमोल निशानियां बनी रहेंगी। कई साल बाद इन्हें देखकर आप पुरानी यादों को हरा-भरा महसूस करेंगे।

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