Religion

सावन मे किसी हिल स्टेशन से कम नहीं मालेश्वर शिव मंदिर सामोद

जयपुर। सावन का दूसरा सोमवार हैं मेघ रिमझिम बरस रहे हैं। कोरोना काल की पाबंदियों से काफी हद तक आजादी मिली हैं तो आप को ऐसे दार्शनिक ओर धार्मिक स्थल से अवगत कराते हैं जहां जाने पर आप अच्छे भले हिल स्टेशन को भूल जाएंगे। मालेश्वर धाम जाने पर आपको लगेगा जैसे त्रिनेत्रधारी के साक्षात दर्शन हो रहे है कलतर ध्वनि मे झरने महसूस कराएंगे जैसे शिव की जटा से गंगा बह रही हो। वाटरफॉल मे अठखेलियाँ करने का मन करेगा। प्रकृति की गोद मे मंदिर तो बहुत मिल जाएंगे लेकिन ऐसा विलक्षण मंदिर और वातावरण महर कला सामोद मे स्थित मालेश्वर धाम मे ही देखने को मिलेगा, जहां पिकनिक के साथ आस्था के सरोवर में डुबकी लगाकर सावन मे मनोरंजन और शिव भक्ति का परम आनंद की अनुभूति होगी।
मंदिर में शिवलिंग (Maleshwar Mahadev Temple ) अपने आप मे निराला है जो हर 6 महीने में दिशा बदलता है। मंदिर में विराजमान शिवलिंग सूर्य की दिशा के अनुरूप चलने के लिए विख्यात है। यह स्थान जयपुर से लगभग 44 किलोमीटर दूर है। विक्रम संवत 1101 काल के इस मंदिर मेंस्वयंभूलिंग ( shivling ) विराजमान है।
यहां आनेवाले भक्तों ने बताया कि वैज्ञानिकों ने भी शिवलिंग के इस तरह से दिशा बदनेके कारणों की खूब जांच पड़ताल की लेकिन वे भी भगवान के इस चमत्कार के आगे नतमस्तक हो गए और चमत्कार को नमस्कार करने लगे हैं।
मालेश्वर महादेव मंदिर में विराजमान ये शिवलिंग हर छह माह में सूर्य के हिसाब से दिशा में झुक जाता है। सूर्य हर वर्ष छह माह में उत्तरायण और दक्षिणायन दिशा की ओर अग्रसर होता रहता है। उसी तरह यह शिवलिंग भी सूर्य की दिशा में झुक जाता है। अपने इस चमत्कार के कारण यह दुनिया में अनूठा शिव मंदिर ( Shivling ) है। मंदिर के पुजारी महेश व्यास के अनुसार, वर्तमान में महार कलां गांव पौराणिक काल में महाबली राजा सहस्रबाहु की माहिशमति नगरी हुआ करती थी और मंदिर के तीनों और की पहाडियों को मलियागिरी के नाम से जाना जाता था। इसी कारण इस मंदिर का नाम मालेश्वर महादेव मंदिर पड़ा। विक्रम संवत 1101 काल के इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है।
कुण्ड़ों का पानी कभी नहीं होता खाली
प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान अपने आप में काफी मनोरम है। जहां बारिश में बहते प्राकृतिक झरने,पानी के कुण्ड, आसपास पौराणिक मानव सभ्यता-संस्कृति की कहानी कहते अति प्राचीन खण्डहर इस स्थान की प्राचीनता को दर्शाते हैं। इस मंदिर के आसपास चार प्राकृतिक कुण्ड हैं, जिनका पानी कभी खाली नहीं होता हैं। ये कुण्ड मंदिर में आनेवाले दर्शनार्थियों, जलाभिषेक और सवामणी आदि करने वालों के लिए प्रमुख जलस्रोत हैं। पहाडिय़ों से घिरे इस धार्मिक स्थल पर प्रकृति भी जमकर मेहरबान है।
बारिश में मंदिर के आसपास प्राकृतिक झरने बहने लगते हैं। जो यहां की छटा को और भी मनमोहक बना देतेहैं। बारिश ( rain ) के दिनों में रोज गोठें होती हैं। मंदिर को लेकर मान्यता है कि गडरिया गाय चराने इस क्षेत्र मे लाता था। गांव के बणिये की गाय शाम चर कर वापस आती तो उसका दूध निकला होता था। गडरिया से शिकायत हुई तो उसने अनभिज्ञता जाहिर कर दी। एक दिन बणिया स्वयं चुपचाप गाय के पीछे गया तो देखा गाय चरने के बाद एक स्थान पर स्वयं दूध देने लग जाती हैं और जहां मालेश्वर शिवलिंग है यह वही स्थान हैं।

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