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स्वाद में लाजवाब, पर बनाने वाले की 15 साल उम्र कम कर देती है ये चीज! हर घर में होता है इसका इस्तेमाल

आशीष कुमार/पश्चिम चम्पारण. गुड़ की मिठास हमें भाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका उत्पादन कई कारीगरों के जीवन को कम कर देता है? यह सच है कि चीनी और गुड़ बनाने वाले मजदूरों की जिंदगी आम आदमी की तुलना में 10 से 15 वर्ष तक कम हो जाती है. इतना ही नहीं, त्वचा से लेकर शरीर के अंदरूनी अंग तक को कई गंभीर बीमारियां जकड़ लेती हुई, जिसका इलाज भी लगभग असंभव सा हो जाता है. आज हम आपको गुड़ बनाने वाले इन्हीं कारीगरों की जिंदगी को दिखा रहे हैं, जिसकी कल्पना हम गुड़ खाते समय शायद ही कभी करते हैं.

बिहार का पश्चिम चम्पारण जिला बेहतर किस्म के गुड़ उत्पादन के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. यहां का बगहा-2 प्रखंड गुड़ उत्पादन का हब माना जाता है. मुख्य रूप से इस प्रखंड के सेमरा में गुड़ बनाने वाली फैक्ट्रियों की भरमार है. यहां केमिकल मुक्त सफेद गुड़ का उत्पादन किया जाता है, जिसे झारखंड, यूपी, कोलकाता और बिहार के अन्य कई जिलों तक पहुंचाया जाता है. सेमरा में मौजूद एक गुड़ फैक्ट्री के मालिक सतीश से जब हमने गुड़ बनाने के प्रोसेस और गुड़ बनाने वाले कारीगरों के जीवन पर बात की, तो उन्होंने बताया कि गुड़ को बनाना किसी जंग से कम नहीं होता है. रात 2 बजे ही क्रशर शुरू हो जाता है, जो रात के 10 बजे तक लगातार चलता रहता है. मुख्य बात यह है कि क्रशर के शुरू होते कारीगरों के साथ क्रशर मालिक को भी प्लांट पर आना रहता है, तब जाकर काम शुरू होता है.

स्वास्थ्य पर पड़ता है बुरा प्रभाव
बकौल सतीश, गन्ने को ट्रक, टैक्टर और ट्रेलर से उतारने से लेकर उसके रस को गुड़ में तब्दील करने तक का सारा काम कारीगरों को ही करना पड़ता है. मौसम चाहे जैसा भी हो, भट्टी की आग में उन्हें तपना पड़ता है. चिमनियों से निकलते धुएं एवं निचोड़ लिए गए गन्ने के खुज्जे के उड़ते फाइबर्स को न चाहते हुए भी श्वसन द्वारा अंदर लेना ही पड़ता है. हालांकि, प्लांट पर प्रदूषण और अन्य सभी मानदंडों का खयाल रखा जाता है, लेकिन इसके बावजूद शरीर और स्वास्थ्य उस प्रकार नहीं रह जाता है.

जैसा प्लांट पर काम करने से पहले होता है. गौर करने वाली बात यह है कि सतीश ने खुद अपने बारे में जिक्र करते हुए बताया कि प्लांट पर काम संभालने से पहले उनका अवस्था कुछ और था. जबकि आज उनका स्वास्थ्य कुछ और ही है. स्किन सहित शरीर के अंदरूनी अंगों में कई प्रकार की ऐसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी.

पैदा होती हैं ये गंभीर बीमारियां
बेतिया के रहने वाले एमडी डीएनबी फैमिली मेडिसिन डॉक्टर देवेश चैटर्जी ने बताया कि जो कारीगर चीनी मिल और गुड़ बनाने वाली फैक्ट्रियों में काम करते हैं, उनकी जिंदगी आम मनुष्य की तुलना में करीब 10 से 15 साल तक कम हो जाती है. इसका सबसे मुख्य कारण निचोड़ लिए गए गन्ने के फाइबर्स को सांस द्वारा अंदर लेना है. दरअसल, गन्ने के खुज्जे हवा में घुले होते हैं, जो सांस के द्वारा हमारे अंदर जाते हैं. इससे लंग्स में गांठ बनने की गंभीर समस्या पैदा होती है, जिसे बैगासोसिस रोग कहते हैं. इसके अलावा अस्थमा, लंग इन्फेक्शन के भी प्रबल चांसेज होते हैं. साथ में वहां के धुएं सेकॉन्टेक्ट डर्मेटाइटिस अर्थात चमड़े की बीमारी भी होती है.

Tags: Bihar News, Local18

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