10 मिनट की राइड के लिए ₹2800, आईफोन से कैब बुक करने पर Ola-Uber लेते हैं ज्यादा पैसे?

हाइलाइट्स
क्या कैब बुकिंग ऐप्स iPhone यूजर्स से ज्यादा किराया वसूलते हैं?iPhone और Android फोन पर एक ही राइड के लिए अलग-अलग किराया दिखाया गया. कैसे कंपंनियों ट्रैक करती हैं यूजर्ज का विहैवियर?
चेन्नई: सोशल मीडिया पर एक दिलचस्प चर्चा चल रही है. क्या कैब बुकिंग ऐप्स iPhone यूजर्स से ज्यादा किराया वसूलते हैं? कई मौके पर देखा गया कि एक ही राइड के लिए Android और iPhone पर बुकिंग एप्स पर अलग-अलग किराया दिखाता है. इससे यह सवाल उठता है कि क्या ऐप्स के प्राइसिंग एल्गोरिदम Apple यूजर्स के लिए अलग-अलग किराए सेट करते हैं. अभी हाल में मुंबई से चौंकाने वाली खबर में कैब वाले ने फेक ऐप के जरिए एक विदेशी महिला से 2800 रुपये वसूल लिए. हालांकि, ई-मेल पर मिली शिकायत के बाद मुंबई पुलिस ने कैब ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया. यात्री ने शिकायत किया कि मुंबई एयरपोर्ट पर ऐसे कैब ड्राइवरों की भरमार लगी है और कोई चेक करने वाला नहीं, हालांकि उनकी शिकायत पर पुलिस ने सादे ड्रेस में जांच अभियान में 9 कैब ड्राइवरों को अरेस्ट कर उनकी गाड़ियों को सीज कर दी है.
अब बात करते हैं, iPhone और Android पर ऑनलाइन बुकिंग ऐप्स पर किराये को लेकर छिड़ी बहस पर. हाल में चेन्नई में तीन जगहों से एक iPhone और Android फोन पर एक ही राइड के लिए किराए की तुलना की गई थी. इस जांच सर्वे में हर बार iPhone पर किराया ज्यादा दिखा. हालांकि, इसे पक्के सबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता है. कैब बुकिंग ऐप्स पर किराया कभी-कभी डिमांड के अनुसार फ्लेक्सी होता है. हालांकि, यह फर्क छोटी दूरी की राइड्स और सिंगल राइड्स पर ज्यादा दिखा.
कंपनियों ने क्या कहे? टाइम्स ऑफ इंडिया के हवाले से इस सर्वे को लेकर Uber और Ola दोनों का जवाब आया है. Uber ने कहा कि वह फोन के आधार पर किराया पर्सनलाइज करने की कोई नीति नहीं है. अगर किराये में फर्क दिखता है, तो यह समय, दूरी, और रियल-टाइम डिमांड जैसे कारकों के कारण हो सकता है. Ola ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया.
एक्सपर्ट का राय भी जान लेतें हैकई एक्सपर्ट भी इस चर्चे में भार लिया. उन्होंने बताया कि ऐप्स इंस्टॉलेशन के समय यूजर्स से जो हार्डवेयर डेटा की अनुमति लेते हैं, उससे किराया भी तय किया जा सकता है. Fast track (चेन्नई) के मैनेजिंग डायरेक्टर सी. अंबिगापथी ने इसे पर अपनी राय दी है. उन्होंने कहा कि कंपनियां हार्डवेयर डिटेल्स के आधार पर किराए को बड़ी आसानी से बदल सकती हैं. इसे ‘डायनेमिक प्राइसिंग एल्गोरिदम’ कहा जा सकता है. सी-डैक तिरुवनंतपुरम के पूर्व डायरेक्टर पी. रविकुमार के अनुसार मशीन लर्निंग टूल्स (जैसे Google Cloud AI और Azure ML) के जरिए कंपनियां प्राइसिंग एल्गोरिदम में डिवाइस टाइप, ऐप यूसेज और सर्च पैटर्न जैसे डेटा क्लेक्ट करके किराया तय करती हैं.
यूजर के बिहेवियर का भी फायदा ऐप्स बार-बार किराया चेक करने वाले या अक्सर बुकिंग करने वाले यूजर्स के लिए भी किराया बढ़ा सकती हैं. कंपनियां डेटा का आपकी डेटा का इस्तेमाल करके आपके विहेवियर का अंदाजा लगाती हैं. जब कंपनियां जान जाती हैं कि यूजर बुकिंग जरूर करेगा, तो वे किराया बढ़ा देती हैं. कीमतें कम होने का इंतजार करने वाले यूजर्स को भी आखिरकार ज्यादा भुगतान करना पड़ता है.
क्या करें यूजर्स?– अलग-अलग डिवाइस पर किराए की तुलना करें.– ऐप का कैश डेटा क्लियर करें.– अनियमितता की शिकायत संबंधित अधिकारियों से करें.
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FIRST PUBLISHED : December 26, 2024, 07:31 IST