1000 साल पुराना वो गांव जहां राजा, सैनिक और कुत्ता बने ‘पालिया देव’!

Last Updated:April 19, 2025, 23:15 IST
Santhal: मेहसाणा के संथाल गांव में स्थित तीन पालिया हजार साल पुरानी वीरता की मिसाल हैं. ये राजा, सैनिक और वफादार कुत्ते की शहादत की गवाही देती हैं, जिन्हें गांववाले आज भी ‘पालिया देव’ के रूप में पूजते हैं.
पालिया देव की पूजा
गुजरात के मेहसाणा जिले के जोटाना तालुका में स्थित है एक छोटा लेकिन ऐतिहासिक गांव – संथाल. यह गांव जोटाना से महज 2-3 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां आज करीब 4000 से 5000 लोग रहते हैं. खास बात ये है कि इस गांव को सरकारी अभिलेखों में संथाल राज्य या शहर के रूप में दर्ज किया गया है. यहां कदम रखते ही पुलिस स्टेशन के बाहर तीन पुरानी पालिया (युद्ध स्मारक) दिखाई देती हैं, जो गांव की बहादुरी और इतिहास की अनमोल झलक पेश करती हैं.
हजार साल पुरानी वीरगाथा की गवाही देती हैं तीन पालियासंथाल गांव की ये तीन पालिया महज पत्थर नहीं, बल्कि उस समय की वीरता और त्याग की याद दिलाती हैं. गांव के पूर्व सरपंच और एडवोकेट मनुभाई त्रिवेदी ने Local18 से खास बातचीत में बताया कि संथाल गांव की स्थापना 1005 ईस्वी में सोमदेव नागर ने की थी. इसके 317 साल बाद, यानी 1322 में इसे राज्य का दर्जा मिला. पहले ये इलाका 24 छोटे राज्यों में बंटा हुआ था.
पहली पालिया वीर सामंत सिंह झाला की याद मेंतीनों पालियों में पहली पालिया गांव के पहले राजा वीर सामंत सिंह झाला की है. उन्होंने संथाल राज्य की नींव रखी थी और बहादुरी के साथ शासन किया. दूसरी पालिया उनके वंशज वेगड़ सिंह झाला की है, जो एक युद्ध में मोहम्मद शाह के आक्रमण के दौरान शहीद हुए थे.
तीसरी पालिया है एक ढोल बजाने वाले योद्धा कीतीसरी पालिया एक ऐसे व्यक्ति की है, जिसका नाम कालिया था. वह कोई सेनापति या राजा नहीं, बल्कि ऐसा वीर था जो आक्रमण का संकेत देने के लिए ढोल बजाता था. युद्ध के समय वह अपने पांव फैला कर सेना को तैयार करता था और इसी दौरान वह भी शहीद हो गया.
एक वफादार कुत्ते की भी है कहानीइतिहास की इन तीन वीर गाथाओं के साथ एक और अनोखी बात यह है कि उस युद्ध में एक वफादार कुत्ता भी शहीद हुआ था. यह कुत्ता सैनिकों के साथ हमेशा युद्धभूमि में मौजूद रहता था और अपनी वफादारी की मिसाल बन गया.
पालिया देव की होती है पूजा और श्रद्धा से निभाई जाती है परंपरासंथाल गांव के लोग इन पालियों को ‘पालिया देव’ के रूप में पूजते हैं. कोई नया काम हो, कोई गांव में प्रवेश करे या कोई शुभ कार्य हो, लोग पहले पालिया के सामने माथा टेकते हैं. साल में एक बार कटोसन स्टेट से वेगड़ सिंह झाला के वंशज आते हैं और पालिया के पास धूप और दीप जलाकर श्रद्धांजलि देते हैं.
गांववाले निभा रहे हैं अपनी जिम्मेदारीगांव के लोग इन ऐतिहासिक स्मारकों की नियमित रूप से सफाई करते हैं और वहां दीप जलाते हैं. कई ग्रामीण इन पालियों को आस्था और सुरक्षा का प्रतीक मानते हैं. यह परंपरा सालों से चली आ रही है और गांववाले इसे गर्व से निभा रहे हैं.
First Published :
April 19, 2025, 23:15 IST
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1000 साल पुराना वो गांव जहां राजा, सैनिक और कुत्ता बने ‘पालिया देव’!