’11 साल का अलगाव और झूठे आरोप मानसिक क्रूरता’, दिल्ली हाई कोर्ट ने मंजूर की तलाक की अर्जी

नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति को अलग रह रही उसकी पत्नी द्वारा की गई मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक की मंजूरी देते हुए कहा है कि 11 साल से अधिक लंबे अलगाव और महिला द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों को देखते हुए उनके बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है. उच्च न्यायालय ने कहा कि रिश्ते को जारी रखने की कोई भी जिद समस्या को और बढ़ाएगी.
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा, ‘पक्षों के बीच वैवाहिक कलह चरम पर पहुंच गई है, क्योंकि उनके बीच विश्वास, समझ और प्यार पूरी तरह खत्म हो गया है. इतना लंबा अलगाव अपने साथ दाम्पत्य संबंध और सहवास की कमी लेकर आता है, जो किसी भी वैवाहिक रिश्ते का मूल आधार है. अपीलकर्ता (पुरुष) की गलती के बिना ग्यारह साल से अधिक समय तक अलग रहना, अपने आप में क्रूरता का कृत्य है.’
पारिवारिक कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
उच्च न्यायालय का आदेश हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक देने से इनकार करने के पारिवारिक अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली व्यक्ति की अपील को स्वीकार करते हुए आया. अलग हो चुके दंपति ने नवंबर 2011 में शादी की थी और इसके तुरंत बाद उनके बीच समस्याएं शुरू हो गईं. वे बमुश्किल छह महीने ही साथ रहे थे.
पत्नी ने दहेज सहित अन्य गंभीर आरोप लगाए थे
व्यक्ति ने दावा किया कि उसकी अलग रह रही पत्नी उस पर अपने मायके जाने के लिए दबाव डालती थी और ऐसा न करने पर अपनी जिंदगी खत्म करने की धमकी देती थी. उसने आरोप लगाया कि जब उसने ससुराल का अपना घर छोड़ा, तो वह वापस न लौटने पर अड़ गई. हालाँकि, महिला ने दावा किया कि उसके साथ क्रूर व्यवहार किया गया और पर्याप्त दहेज न लाने के लिए उसे परेशान किया गया तथा उसके पति और उसके परिवार के सदस्यों ने उसे उसके माता-पिता के घर छोड़ दिया तथा फिर वापस नहीं ले गए.
पति द्वारा सुलह के प्रयास किए जाने से उनके पुनर्मिलन में मदद नहीं मिली
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि शादी बमुश्किल छह महीने तक टिक पाई और कानूनी नोटिस भेजकर एवं महिला से ससुराल लौटने का अनुरोध करके पति द्वारा सुलह के प्रयास किए जाने से उनके पुनर्मिलन में मदद नहीं मिली. अदालत ने कहा, “संपूर्ण साक्ष्यों को व्यापक रूप से पढ़ने से, यह स्थापित होता है कि प्रतिवादी (महिला) वैवाहिक घर में समायोजन करने में सक्षम नहीं थी और उसके तथा अपीलकर्ता (पुरुष) के बीच सामंजस्य संबंधी मुद्दे थे.’’ इसने कहा कि हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (विवाहित महिला के साथ उसके पति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा की गई क्रूरता) के तहत आरोपपत्र दायर किया गया था, लेकिन दहेज उत्पीड़न या उसे मारने की कोशिश के आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया.

सुलह की कोई संभावना नहीं, अलगाव मानसिक क्रूरता का स्रोत
उच्च न्यायालय ने कहा कि पक्षों के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है और ‘झूठे आरोपों तथा शिकायतों से भरा इतना लंबा अलगाव मानसिक क्रूरता का स्रोत बन गया है एवं इस रिश्ते को जारी रखने का कोई भी आग्रह दोनों पक्षों के लिए और अधिक समस्या पैदा करेगा’. पीठ ने कहा, “हम साक्ष्य से यह निष्कर्ष निकालते हैं कि अपीलकर्ता के साथ क्रूरता की गई. इसलिए अपील स्वीकार की जाती है और क्रूरता के आधार पर तलाक मंजूर किया जाता है.’
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Tags: DELHI HIGH COURT
FIRST PUBLISHED : January 9, 2024, 23:20 IST