सबसे पुरानी गोपाल जी की 206 वीं हेडे की परिक्रमा निकलेगी पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था के साथ

निराला समाज टीम जयपुर।

गोपाल जी की 206वीं हेडे की परिक्रमा जिसे छठ की नगर परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है । गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन निकली। यह परिक्रमा स्वतंत्रता के आंदोलन से पूर्व वर्ष 1818 से निरंतर गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन निकलती है। शोभा यात्रा में स्वरूपों को रत्न जडि़त सोने-चांदी की पौशाक पहनाई जाती है जो वर्तमान में करीब दो सौ साल पुरानी है।

स्वरूप को चांदी की पालकी में घाट की गूणी में फतेह चन्द्रमा जी के मंदिर से भजन गाते भक्तगण चांदी की पालकी में सुरक्षा व्यवस्था के बीच सांगानेरी गेट मंदिर लेकर आते है। यहां से पूर्व मुखी हनुमान मंदिर से पदयात्रा रवाना होकर निज मंदिर गोपाल जी के पहुंचती है। परिक्रमा की शुरुआत गोपाल जी का रास्ता स्थित नरसिंह मंदिर से होती है। गुलाबी पगड़ी, सफेद धोती कुर्ता मे श्रद्धालु लवाजमे के साथ शोभायात्रा के रूप में रवाना होते हैं।
गोपाल जी के रास्ते से यह लवाजमा सांगानेरी गेट तक जाता है इस बीच पदयात्रा में जितने भी मंदिर पढ़ते हैं सबके ढोक देते हुए श्रद्धालु नगर परिक्रमा करते हुए धूलेश्वर गार्डन पंचमुखी हनुमान जी मंदिर गढ़ गणेश लाल डूंगरी गलता होते हुए घाट में बालाजी के दर्शन करके फतेह चन्द्रमा जी के मंदिर पहुंचते हैं। यहां से स्वरूप सज कर शाम को पालकी में सवार होकर सांगानेरी गेट आते हैं।
हाथी घोड़ा पालकी बैंडबाजों के साथ शोभायात्रा जोहरी बाजार त्रिपोलिया बाजार चौड़ा रास्ता होते हुए गोपाल जी के मंदिर में करीब रात 9:10 बजे के आसपास पहुंचती है। इस शोभायात्रा में आज से 30 साल पहले पूरा शहर उमड पडता था। घाट में पैदल चलने वालों को जगह नहीं मिलती थी मेला सा भर जाता था लेकिन समय के साथ यह सब कुछ कल की सी बात होकर रह गई।