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1971 युद्ध: कर्नल रिनचेन की बहादुरी से भारत में शामिल हुआ तुरतुक गांव.

Last Updated:March 20, 2025, 11:20 IST

India Captured Turtuk Village: 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान से तुरतुक गांव छीन लिया था. भारतीय सेना के कर्नल रिनचेन ने गांववालों को भारत में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था. अब तुरतुक लद्दाख का हिस्सा …और पढ़ेंपाकिस्‍तान में था ये सुंदर गांव, 1971 के युद्ध में घुटने टेके तो भारत ने छीना

यह गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है.

हाइलाइट्स

1971 में भारत ने तुरतुक गांव पर कब्जा कियाकर्नल रिनचेन ने तुरतुक को भारत में मिलायातुरतुक अब लद्दाख का हिस्सा और सैलानियों की पसंदीदा जगह है

India Captured Turtuk Village: 1947 में देश के आजाद होने के समय सर सिरिल रेडक्लिफ ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का बंटवारा किया था. सर सिरिल रेडक्लिफ, इंग्लैंड के एक वकील थे. उन्हें सीमा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. रेडक्लिफ को 88 मिलियन लोगों के साथ 4,50,000 वर्ग किलोमीटर के इलाके को बांटने का काम सौंपा गया था. बंटवारे के बाद कुछ इलाके ऐसे भी रहे, जिन पर दोनों देश दावा ठोकते रहे. लेकिन, क्‍या आप जानते हैं कि 1971 के युद्ध में पाकिस्‍तान को हराने के बाद भारत ने उसका एक गांव ही छीन लिया. 

जम्मू-कश्मीर के बाल्टिस्तान इलाके का तुरतुक गांव बंटवारे में पाकिस्तान के हिस्से में चला गया. तब से लेकर 1971 तक वो पाकिस्‍तान के कब्जे में था. भारत और पाकिस्‍तान की सीमाओं के बीच होने के कारण इस गांव में बाहरी दुनिया के लोगों के आने पर प्रतिबंध था. ऐसे में ये गांव बाकी देश और दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ था. फिर भारत ने 1971 की जंग में पाकिस्‍तान को जबर्दस्त धूल चटाई. युद्ध के दौरान, भारतीय सेना ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के चार गांवों को अपने नियंत्रण में ले लिया था. ये चार गांव थे- तुरतुक, त्याक्शी, चलूंका और थांग. 1971 तक ये गांव पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का हिस्सा थे. इस तरह तुरतुक गांव पाकिस्‍तान के हाथ से निकल गया. अब ये गांव भारतीय नक्शे में शामिल है. 

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कर्नल रिनचेन ने तुरतुक को भारत में मिलायाबंटवारे के बाद तुरतुक गांव के लोगों को भारत आने में डर लगता था. भारत और पाकिस्‍तान के बीच 1971 में हुए युद्ध के दौरान कर्नल रिनचेन तुरतुक गांव पहुंच गए. उन्‍होंने गांव के लोगों को समझाया कि भारत के साथ आने में ही उनकी भलाई है. उन्‍होंने लोगों के मन से हर डर को दूर करने का काम किया. दरअसल, कर्नल रिनचेन तुरतुक के नजदीक के ही एक गांव के रहने वाले थे. इसलिए तुरतुक के लोग यहीं का आदमी समझ कर उन पर भरोसा करते थे. उनके समझाने पर तुरतुक के लोगों ने भारत के साथ आने का फैसला किया. जब भारतीय सेना उनके गांव में पहुंची तो यहां के लोगों ने नाच-गाकर जश्न मनाते हुए उसका स्वागत किया. 

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तुरतुक की मस्जिदों में ली थी औरतों-बच्‍चों ने पनाहपाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का हिस्सा होने की वजह से इस गांव ने कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग देखी थी. उस समय इस इलाके की औरतों और बच्चों ने आक्रमणकारियों से बचने के लिए तुरतुक की मस्जिदों में ही पनाह ली थी. उस समय यहां सुविधाओं का घोर अभाव था. भारत में शामिल होने बाद तुरतुक गांव में सड़कें, स्‍कूल और अस्‍पताल बनाए गए. भारत में शामिल होने से पहले तुरतुक गांव के लोग पढ़ाई या रोजगार के लिए पाकिस्तान के मुख्य शहरों में जाते थे. जब तुरतुक भारत का हिस्सा बना तो ऐसे लोग पाकिस्‍तान में ही फंस गए. ऐसे में एक ही परिवार के कुछ लोग हिंदुस्तान आ गए और कुछ पाकिस्तान में रह गए. हालांकि, ऐसे लोग वीजा लेकर पाकिस्तान जाकर अपने परिजनों से मिल सकते हैं. 

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कराकोरम से घिरा ये सुंदर गांवजम्मू-कश्मीर के भारत में विलय और दोनों देशों की सीमाएं तय होने से पहले तक बाल्टिस्तान अलग राज्य था. तुर्किस्तान के यागबू वंश के शासकों ने 800 से लेकर 16वीं ईसवी तक बाल्टिस्‍तान पर राज किया था. ये शासक मध्य एशिया से यहां पहुंचे थे. बाल्टिस्तान में यागबू वंश के शासनकाल में कला और साहित्य को जमकर बढ़ावा मिला था. उनकी बनाई कई इमारतें तुरतुक गांव में आज भी मौजूद हैं. अब इन इमारतों को म्यूजियम में तब्‍दील कर दिया गया है. तुरतुक राजाओं के वंशज आज भी इस गांव को अपना घर मानते हैं. ये इलाका कराकोरम के सुंदर पहाड़ों से घिरा है. भारत और पाकिस्‍तान के बीच इस इलाके पर कब्‍जे को लेकर चली खींचतान के कारण किसी ने यहां की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्‍कृतिक विरासत पर ध्‍यान नहीं दिया. 

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भारत के किस इलाके में है तुरतुक गांवयह गांव लद्दाख के नुब्रा घाटी में स्थित है. तुरतुक गांव और आसपास का इलाका लंबे समय तक सिल्क रूट से जुड़ा था. इसके जरिये भारत, चीन, रोम और फारस तक कारोबार होता था. अब तुरतुक गांव भारत के लद्दाख में है. यहां की ज्‍यादातर आबादी मुसलमान है. लेकिन यहां के निवासियों पर तिब्बत और बौद्धों का गहरा असर है. मान्‍यता है कि इस इलाके के लोग इंडो-आर्यनों के वंशज हैं और बाल्टी भाषा बोलते हैं. हालांकि, इनके खानपान और संस्कृति पर स्‍थानीयता का पूरा असर है. भारत के एक छोर पर बसे तुरतुक के लोग सादा जीवन जीते हैं. 

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तुरतुक का ‘डेथ रिवर’ से क्‍या है नातातुरतुक के नजदीक श्योक नदी बहती है. सिल्क रुट के दौर में इसे ही डेथ रिवर कहा जाता था. महज 300 घर वाले इस गांव के लोग जौ की पैदावार करते हैं. इसके अलावा इलाके में खुबानी की पैदावार भी होती है. भारत में शामिल होने के बाद यहां कुछ सड़कें, स्कूल और अस्पताल बनाए गए हैं, लेकिन अभी ये गांव पूरी तरीके से विकसित नहीं है. एक दौर था जब तुरतुक के लोग कहीं नहीं जाते थे, न ही यहां कोई आता था. यह लेह शहर से लगभग 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. लेकिन अब तुरतुक सैलानियों की पहली पसंद बन चुका है. यह गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है. इस गांव में आज भी प्राचीन बौद्ध संस्कृति के अवशेष देखे जा सकते हैं. ये जगह बौद्ध-मुस्लिम संस्कृति की मिसाल है.


Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

March 20, 2025, 09:19 IST

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पाकिस्‍तान में था ये सुंदर गांव, 1971 के युद्ध में घुटने टेके तो भारत ने छीना

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