Health

अब नहीं सताएगा बुढ़ापा! वैज्ञानिकों ने मानव कोशिकाओं में खोजा खास प्रोटीन, कैसे करेगा काम

Anti-ageing: उम्र बढ़ने के साथ बुढ़ापा परेशान करने लगता है. बढ़ती उम्र में कई तरह की बीमारियां भी शरीर को अपना घर बना लेती हैं. बुढ़ापा जल्‍दी आने के लिए काफी हद तक हमारे आसपास का वातावरण, खानपान, दिनचर्या और तनाव जिम्‍मेदार होता है. फिर भी ज्‍यादातर लोग चाहते हैं कि वे हमेशा चुस्‍त-दुरुस्‍त और जवान रहें. कोई नहीं चाहता कि वो बूढ़ा होकर बीमारियों से घिरे. अब वैज्ञानिकों ने मानव कोशिकाओं के भीतर ही एक खास प्रोटीन के बुढ़ापा रोधी फंक्‍शन को खोज लिया है. इससे उम्‍मीद की जा सकती है कि अब किसी को भी बुढ़ापा नहीं सताएगा.

ऑस्ट्रेलिया की क्‍वींसलैंड यूनिवर्सिटी के क्‍वींसलैंड ब्रेन इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने पाया कि मानव कोशिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन एटीएसएफ-1 नए निर्माण और क्षतिग्रस्त माइटोकॉन्ड्रिया की मरम्मत के बीच अच्छे संतुलन को नियंत्रित करता है. ये ऊर्जा उत्पादन के लिए जिम्मेदार कोशिका का हिस्सा है. क्यूबीआई के एसोसिएट प्रोफेसर स्टीवन ज्‍यूरिन ने कहा कि माइटोकॉन्ड्रियल डिसफंक्शन डिमेंशिया और पार्किंसंस जैसी उम्र से जुड़ी बीमारियों समेत कई मानव रोगों की जड़ है. माइटोकॉन्ड्रिया से उत्पादित ऊर्जा जैविक कार्यों को चलाती है. इस प्रक्रिया के विषाक्त उप-उत्पाद कोशिका की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया में योगदान करते हैं.

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एटीएसएफ-1 बताता है, कब है पिटस्‍टॉप की जरूरत
शोधकर्ता ज्‍यूरिन ने कहा कि हमारी खोज स्वस्थ उम्र बढ़ने और विरासत में मिली माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों वाले लोगों के लिए अच्‍छे नतीजे ला सकती है. जब माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए तनाव की स्थिति में क्षतिग्रस्त हो जाता है तो एटीएसएफ-1 प्रोटीन मरम्मत करता है. इससे कोशिकीय स्वास्थ्य और लंबी उम्र को बढ़ावा मिलता है. ये ठीक वैसा ही है, जैसे एक रेस कार को पिटस्टॉप की जरूरत होती है. जब भी माइटोकॉन्ड्रिया को मरम्मत की जरूरत होती है तो एटीएसएफ-1 बताता है कि कोशिका के लिए पिटस्टॉप की जरूरत है. उन्‍होंने बताया कि हमने राउंडवॉर्म में एटीएफएस-1 का अध्ययन किया. इसमें पाया गया कि इसके फंक्‍शन को बढ़ाने से कोशिकीय स्वास्थ्य को बढ़ावा मिला. इसका मतलब है कि राउंडवॉर्म लंबे समय तक अधिक चुस्त रहे.

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माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए तनाव की स्थिति में क्षतिग्रस्त हो जाता है तो एटीएसएफ-1 प्रोटीन मरम्मत करता है. इससे लंबी उम्र को बढ़ावा मिलता है.

उम्र बढ़ने के साथ-साथ स्‍वस्‍थ होते गए राउंडवॉर्म्‍स
ज्‍यूरिन ने कहा कि अध्‍ययन में शामिल किए गए राउंडवॉर्म ज्‍यादा समय तक जीवित नहीं रहे, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ वे स्वस्थ होते गए. नेचर सेल बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में लेखकों ने कहा कि माइटोकॉन्ड्रियल क्षति को रोकने के लिए संभावित हस्तक्षेपों की पहचान करने की दिशा में कोशिकाओं के मरम्मत को बढ़ावा देनी की प्रक्रिया को समझना अहम कदम है. क्यूबीआई के माइकल दाई ने कहा कि हमारा लक्ष्य ऊतक और अंग कार्यों को लंबा खींचना है. ये उम्र बढ़ने के साथ कम हो जाते हैं. उन्‍होंने कहा कि आखिरकार हम ऐसे हस्तक्षेपों को डिजाइन कर सकते हैं, जो माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए को लंबे समय तक स्वस्थ रखते हैं. इससे हमारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है.

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रिवर्स एजिंग के लिए वैज्ञानिकों ने बनाया फार्मूला
वहीं, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने ऐसे छह केमिकल्स का मिश्रण बनाया है, जो इंसानों में उम्र के बढ़ते असर के उलट काम करेगा. ये मिश्रण इंसानों में बढ़ती उम्र के असर को घटाएगा. ये मिश्रण बूढ़े इंसान की त्‍वचा को जवान व्‍यक्ति जैसा बना देगा. वैज्ञानिकों का दावा है कि ये केवल त्‍वचा पर ही असर नहीं करेगा, बल्कि शरीर के अंदरूनी अंगों को भी दुरुस्‍त करेगा. अब तक इसका सफल ट्रायल चूहों और इंसानी कोशिकाओं पर किया जा चुका है. हार्वर्ड मेडिकल स्‍कूल के वैज्ञानिक व मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट डॉ. डेविड सिंक्लेयर के मुताबिक, यह मिश्रण ज्‍यादा महंगा नहीं होगा. उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि अगले साल तक इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू हो जाएगा.

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एजिंग रोकने को खास मार्कर्स का किया इस्‍तेमाल
दरअसल, वैज्ञानिकों ने बूढ़ी कोशिकाओं में से सेनेसेंट सेल्‍स को अलग कर लिया. सेनेसेंट कोशिकाएं जवान होती हैं. आमतौर पर कोशिकाएं बंटती रहती हैं, लेकिन कुछ बंटना बंद हो जाती हैं. कोशिकाओं का बंटना बंद होना ही बुढ़ापे की निशानी होती है. वैज्ञानिकों ने इसी कॉन्सेप्‍ट पर शोध शुरू किया था. वैज्ञानिकों ने टेस्टिंग कर कोशिकाओं पर एजिंग को रोकने वाले खास तरह के मार्कर्स का इस्तेमाल किया. इनमें न्यूक्लियोसायटोप्लाज्म प्रोटीन कम्पार्टमेंटलाइजेशन भी शामिल था. एनसीसी स्टेम हड्डी और मांसपेशियों की कोशिकाओं में अहम भूमिका निभाता है. वैज्ञानिकों ने उम्र को रोकने के लिए छह केमिकल का एक मिश्रण तैयार किया. इसका इस्तेमाल एनसीसी को पहले जैसी स्थिति में लाने के लिए किया गया.

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वैज्ञानिकों का दावा है कि महज चार दिन के उपचार का असर एक साल के एंटी एजिंग ट्रीटमेंट के बराबर दिख रहा था.

एक टेबलेट के रूप में पेश किया जाएगा फार्मूला
डॉ. डेविड के मुताबिक, महज चार दिन के उपचार का असर एक साल के एंटी एजिंग ट्रीटमेंट के बराबर दिख रहा था. वैज्ञानिकों ने अध्‍ययन के जरिये कोशिकाओं में हो रहे बदलाव की मात्रा को समझने की कोशिश की. डॉ. डेविड का कहना है कि फार्मूला को एक टेबलेट के रूप में लिया जा सकेगा. यह आंखों की रोशनी बढ़ाने के साथ ही बढ़ती उम्र की बीमारियों पर भी असर करेगी. बायोलॉजिस्ट मैट केबरलेन का कहना है कि इनोवेटिव स्क्रीन मैथड बड़ी खोज साबित हो सकती है. हालांकि, रिसर्च अभी शुरुआती दौर में है. टीम को इस फार्मूला का इस्तेमाल ज्‍यादा से ज्‍यादा जानवरों पर कर नतीजों पर गौर करने की जरूरत है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने उम्‍मीद जताई है कि अगले साल इसका ह्यूमन ट्रायल शुरू हो जाएगा.

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