30 साल की सेवा, 179 बार रक्तदान, कोटा का यह नाम बन चुका है हजारों जिंदगियों की उम्मीद

कोटा. कहते हैं सेवा का कोई विकल्प नहीं होता, और जब सेवा निरंतर, निस्वार्थ और संकल्प के साथ की जाए तो वह इतिहास बन जाती है. कोटा शहर में रक्तदान, एसडीपी और प्लाज्मा के क्षेत्र में ऐसा ही एक नाम है भुवनेश गुप्ता. टीम जीवनदाता के संरक्षक और संयोजक भुवनेश गुप्ता ने सेवा की जो मशाल तीन दशक पहले जलाई थी, वह आज एक जनआंदोलन का रूप ले चुकी है. उनका जीवन हजारों जरूरतमंदों के लिए आशा और भरोसे का प्रतीक बन चुका है.
भुवनेश गुप्ता अब तक 109 बार रक्तदान और 79 बार एसडीपी डोनेशन कर चुके हैं. इस तरह कुल 179 बार डोनेशन कर वे समाज के सामने एक प्रेरक मिसाल बन चुके हैं. वर्ष 1994 में उनकी माताजी शकुंतला गुप्ता के ऑपरेशन के दौरान रक्त की व्यवस्था में आई कठिनाई ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया. उसी दिन उन्होंने जीवन भर रक्तदान करने और अधिक से अधिक लोगों को इसके लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया, जिसे वे आज तक पूरी निष्ठा के साथ निभा रहे हैं.
छोटे प्रयास से बना बड़ा अभियानशुरुआत छोटे-छोटे रक्तदान शिविरों से हुई. धीरे-धीरे निरंतर प्रयास, जागरूकता अभियानों, संगोष्ठियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और स्कूल, कॉलेज व कोचिंग संस्थानों में आयोजित कार्यशालाओं के माध्यम से यह अभियान एक विशाल वटवृक्ष बन गया. आज टीम जीवनदाता के जरिए कोटा के साथ-साथ बूंदी, बारां, झालावाड़ और मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों तक जरूरतमंदों को समय पर रक्त और एसडीपी उपलब्ध कराई जा रही है.
हर समय सेवा के लिए तत्पर नामभुवनेश गुप्ता की पहचान केवल एक रक्तदाता की नहीं, बल्कि 24 घंटे सेवा के लिए तत्पर एक भरोसेमंद नाम के रूप में है. शहर में जब भी रक्त या प्लेटलेट्स की व्यवस्था कठिन होती है, लोग निश्चिंत होकर उनका नाम और नंबर देते हैं. डेंगू और कोरोना काल के दौरान उन्होंने प्लेटलेट्स और प्लाज्मा की व्यवस्था कर सैकड़ों मरीजों की जान बचाई. कोरोना संक्रमण के समय स्वयं और परिवार के पॉजिटिव होने के बावजूद उन्होंने फोन और सोशल मीडिया के माध्यम से सेवा कार्य को लगातार जारी रखा.
सम्मान और परिवार का सहयोगतीन दशकों की इस अविराम सेवा के लिए भुवनेश गुप्ता को उपराष्ट्रपति सहित जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सैकड़ों सम्मान मिल चुके हैं. वे कहते हैं कि सबसे बड़ा सम्मान तब मिलता है, जब किसी जरूरतमंद के चेहरे पर राहत की मुस्कान दिखाई देती है. इस सेवा यात्रा में उनका पूरा परिवार सहभागी है. पत्नी डॉ. क्षिप्रा गुप्ता और मुंबई गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस कर रहे पुत्र नमन गुप्ता भी इस अभियान से जुड़े हुए हैं. भुवनेश गुप्ता मानते हैं कि परिवार का सहयोग ही उन्हें हर समय सेवा के लिए ऊर्जा देता है.
सेवा से समाज को नई दिशाआज भुवनेश गुप्ता रक्तदान का पर्याय बन चुके हैं. उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि दान, दया, त्याग और सेवा के माध्यम से न केवल व्यक्तिगत जीवन बदले जा सकते हैं, बल्कि पूरे समाज को एक नई दिशा भी दी जा सकती है.



