4 brothers reached to sister house for mayra with relatives riding on 21 decorated bullock carts in Bhilwara rjsr

मनीष दाधीच.
भीलवाड़ा. राजस्थान में शादियों में बहन के यहां मायरा (Mayra) भरना एक बड़ा उत्सव है. इसे यादगार बनाने के लिये लोग बेहताशा खर्चा भी करते हैं. बड़े-बड़े और महंगे उपहारों के साथ बहन को नगदी तथा आभूषण भेंट करते हैं. इसके लिये आजकल बाकायदा पीहर पक्ष के लोग लग्जरी कारों और अन्य वाहनों का कारवां लेकर पहुंचते हैं. लेकिन इससे इतर मेवाड़ इलाके के भीलवाड़ा जिले में एक परिवार ने अनूठा उदाहरण पेश किया है. इस परिवार चार भाइयों ने आधुनिक चकाचौंध से दूर रहकर परंपरागत तरीके से मायरा भरा है. इसके लिये ये 42 सजे धजे बैलों से जुती हुई 21 बैलगाड़ियों (Bullock carts) से बहन के यहां मायरा भरने पहुंचे.
मामला भीलवाड़ा जिले के चावंडिया गांव से जुड़ा है. त्याग और बलिदान की इस धरा के लोगों ने परंपरागत तरीके से मायरा भरकर एक बार फिर से पुरानी परंपरा को जीवंत कर दिया. चावंडिया गांव निवासी भैंरूलाल गुर्जर, दुर्गेश गुर्जर और कार्तिक गुर्जर मंगलवार को अपनी बहन की बच्चे की शादी में मायरा भरने के लिये गये थे. लेकिन इस दौरान उन्होंने लग्जरी और अन्य वाहनों के काफिले से दूरी बनाये रखी.
बैलों के गले में बांधे गये घुंघरू
ये चार भाई 42 सजे धजे बैलों से जुती हुई 21 बैलगाड़ियां पर अपने रिश्तेदारों के साथ सवार होकर बहन के घर मायरा भरने उसकी ससुराल नाथजी का खेड़ा पहुंचे. इसके लिये बैलों के गले में घुंघरू बांधे गये. मसक बाजे और डीजे की धुन पर नाचते गाते ये भाई परिवार, रिश्तेदार और ग्रामीणों के साथ मायरा भरने नाथजी का खेड़ा पहुंचे. बहन की ससुराल पहुंचने पर सभी का तिलक लगाकर स्वागत सत्कार किया गया. इस दौरान रास्ते में जिस किसी ने भी इस काफिले को देखा तो वह उसके साथ सेल्फी लिये बिना नहीं रह सका.
घर में गाड़ियां होने के बावजूद गये बैलगाड़ियों से
चावंडिया के इन गुर्जर भाइयों का कहना है कि उन्होंने समाज को एक संदेश भी देने की कोशिश की है. उनका कहना था कि आजकल जिस तरह से शादियों में बेतहाशा फिजूलखर्ची की जाती हैं उस पर रोक लगाने के लिए हमने यह प्रयास किया है. घर में गाड़ियां होने के बावजूद गुर्जर भाइयों ने बैलगाड़ियों से ही अपनी बहन के घर जाकर मायरा भरने का फैसला किया.
समाज को दिया नया और सार्थक संदेश
समाज को संदेश देते हुए इस परिवार ने बता दिया कि आपसी होड़ में कई बार गरीब आदमी बेवजह कर्ज में डूब जाता है. लेकिन परंपरागत तरीकों से अगर चला जाए तो आदमी कर्ज में नहीं डूबेगा. वहीं सकारात्मक सोच के साथ किया गया कार्य कहीं न कहीं समाज में नया और सार्थक संदेश भी देकर जाता है. ब्याह शादी में परंपरागत साधनों का उपयोग करने से पर्यावरण को भी प्रदूषण से बचाया जा सकता है.
आपके शहर से (भीलवाड़ा)
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