गहलोत के गढ़ में फिर भड़का पायलट गुट का बगावाई रंग, कांग्रेस शहर अध्यक्ष चुनाव में ‘एक लाइन का प्रस्ताव’ बना विवाद का केंद्र

जोधपुर. राजस्थान की राजनीति में कभी न खत्म होने वाली गहलोत-पायलट अदावत ने एक बार फिर धमाल मचा दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह नगर जोधपुर में कांग्रेस संगठन सृजन अभियान के तहत शहर अध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया शुरू होते ही गुटबाजी ने तीखा रूप ले लिया. आनंद भवन स्थित कांग्रेस कार्यालय में शनिवार को हुई बैठक में ‘एक लाइन के प्रस्ताव’ की पुरानी परंपरा पर सवाल उठे, जिससे माहौल इतना गरमा गया कि पायलट गुट के नेताओं ने खुलकर विरोध जताया. सूरसागर विधानसभा क्षेत्र से हाल ही में हारे कांग्रेस प्रत्याशी शहजाद खान द्वारा रखे गए एक लाइन के प्रस्ताव पर पायलट समर्थक राजेश सारस्वत और राजेश मेहता ने तीखा विरोध दर्ज कराया, जबकि कई कार्यकर्ताओं ने पारदर्शी चुनाव की मांग तेज कर दी. आला कमान के इस फैसले पर पायलट गुट के नेताओं ने असहमति जताते हुए कहा कि यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक नहीं है और इससे पार्टी की एकजुटता को नुकसान पहुंचेगा.
यह टकराहट राजस्थान कांग्रेस के लिए एक नया संकट खड़ी कर रही है, खासकर तब जब पार्टी लोकसभा चुनावों के बाद संगठन को मजबूत करने की कोशिश में जुटी हुई है. जोधपुर, जो गहलोत का मजबूत किला माना जाता है, यहां गुटबाजी का शिकार बन रहा है. बैठक में उपस्थित सैकड़ों कार्यकर्ताओं के बीच तनाव इतना बढ़ गया कि बहस लंबी खिंच गई. शहजाद खान, जो सूरसागर सीट पर भाजपा के मनोज काला से हार गए थे, ने बैठक की शुरुआत में ही एक लाइन का प्रस्ताव रखा. यह प्रस्ताव शहर अध्यक्ष के चुनाव को बिना किसी बहस के पारित करने का था, जो पारंपरिक रूप से गहलोत गुट की रणनीति का हिस्सा रहा है. खान ने कहा कि पार्टी हाईकमान के निर्देशानुसार हम एकजुट होकर संगठन सृजन अभियान को सफल बनाएं. इस प्रस्ताव से हम तेजी से आगे बढ़ सकेंगे. लेकिन यह प्रस्ताव रखते ही पायलट गुट के नेताओं ने हंगामा मचा दिया.
लोकतंत्र की हत्या है एक लाइन का प्रस्ताव
पायलट समर्थक राजेश सारस्वत, जो जोधपुर शहर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं, ने सबसे पहले विरोध की ठोंक दी. उन्होंने कहा कि एक लाइन का प्रस्ताव रखकर आप लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं. क्या हम कार्यकर्ताओं की राय को दबा देंगे? यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और इससे छोटे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा. सारस्वत के साथ राजेश मेहता, पूर्व पार्षद और पायलट के कट्टर समर्थक ने भी साथ दिया. मेहता ने बैठक में खड़े होकर चिल्लाते हुए कहा कि गहलोत जी के गढ़ में भी अब बदलाव की हवा चलेगी. हम पोस्टर लगाकर ‘अबकी बार पायलट सरकार’ का नारा दे चुके हैं, अब संगठन चुनाव में भी पारदर्शिता चाहिए. अगर एक लाइन से फैसला होगा, तो हम सड़क पर उतरेंगे. मेहता का यह बयान बैठक में मौजूद गहलोत समर्थकों के लिए चुनौती बन गया, जिससे माहौल और गर्म हो गया.
पायलट गुट के समर्थकों ने की नारेबाजी
बैठक में करीब 200 से अधिक कार्यकर्ता मौजूद थे, जिनमें से कई ने पारदर्शी चुनाव की मांग का समर्थन किया. एक युवा कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पार्टी को मजबूत करने के नाम पर गुटबाजी चल रही है. लोकसभा चुनावों में हमने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन अब संगठन स्तर पर अगर ऐसी प्रक्रिया चलेगी, तो आगामी विधानसभा चुनावों में मुश्किल होगी. कई कार्यकर्ताओं ने सुझाव दिया कि शहर अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया को खुला रखा जाए और वोटिंग से फैसला हो. इस दौरान आनंद भवन के बाहर भी छोटे-मोटे नारेबाजी के समाचार मिले, जहां पायलट गुट के समर्थक ‘पारदर्शिता चाहिए’ के नारे लगा रहे थे.
नई बात नहीं है गहलोत-पायलट के बीच टकराव
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का टकराव कोई नई बात नहीं है. 2022 के राजनीतिक संकट के दौरान गहलोत गुट के 90 विधायकों ने इस्तीफे दिए थे, जिससे सरकार डगमगा गई थी. उसी समय ‘एक लाइन का प्रस्ताव’ विवाद का केंद्र बना था, जब गहलोत समर्थकों ने मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्ताव पारित करने की कोशिश की. पायलट ने इसे ‘अनुशासनहीनता’ करार दिया था. हाल ही में जून 2025 में राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि पर दोनों नेताओं की मुलाकात से सुलह की उम्मीद जगी थी, लेकिन जोधपुर की यह घटना सब कुछ धुंधला कर रही है. पायलट ने हाल ही में कहा था कि रात गई तो बात गई, अब गुटबाजी खत्म हो गई है, लेकिन जमीन पर स्थिति वैसी ही लग रही है.
अशोक गहलोत का मजबूत गढ़ माना जाता है जोधपुर
जोधपुर में यह टकराव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां गहलोत का पारिवारिक और राजनीतिक आधार मजबूत है. उनके बेटे वैभव गहलोत जोधपुर लोकसभा सीट से सांसद हैं और शहर कांग्रेस का नियंत्रण गहलोत गुट के पास ही माना जाता है. लेकिन पायलट गुट ने पिछले कुछ वर्षों में यहां पैठ बनानी शुरू कर दी है. 2017 में जोधपुर के बाजारों में ‘अबकी बार पायलट सरकार’ के पोस्टर लगे थे, जो गहलोत के गढ़ में चुनौती थे. राजेश मेहता जैसे नेता तब से सक्रिय हैं. शहजाद खान की हार के बाद उनका एक लाइन का प्रस्ताव रखना गहलोत गुट की रणनीति का हिस्सा लगता है, ताकि शहर अध्यक्ष पद पर उनका ही कोई उम्मीदवार काबिज हो सके. लेकिन पायलट गुट इसे ‘गठजोड़ की साजिश’ बता रहा है.
तटस्थ पर्यवेक्षक भेजने पर विचार
कांग्रेस आला कमान के लिए यह सिरदर्द बढ़ाने वाला है. राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने दिल्ली से फोन पर बैठक के पर्यवेक्षकों को निर्देश दिए हैं कि विवाद को शांत किया जाए. पार्टी सूत्रों के अनुसार, हाईकमान अब जोधपुर में तटस्थ पर्यवेक्षक भेजने पर विचार कर रहा है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि गुटबाजी की कोई गुंजाइश नहीं. संगठन सृजन अभियान सभी को एकजुट करेगा. लेकिन पायलट गुट के एक नेता ने कहा कि अगर एक लाइन का प्रस्ताव पारित हुआ, तो हम अलग से उम्मीदवार उतारेंगे. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने ट्वीट किया कि कांग्रेस में गुटबाजी का जहर फैल रहा है, जोधपुर से शुरू होकर पूरे राजस्थान में फैलेगा.