65% आरक्षण बिहार में? सुप्रीम कोर्ट में RJD के वकील ने रखी ऐसी दलील, CJI चंद्रचूड़ की बेंच ने जारी कर दिया नोटिस
नई दिल्ली. बिहार में आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर गरमा रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) द्वारा दायर उस याचिका पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें आरक्षण के संबंध में पटना हाईकोर्ट के फैसले की वैधता पर सवाल उठाया गया है. हाईकोर्ट ने बिहार में पिछड़ा वर्ग (बीसी), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के लिए पेश कानून को रद्द कर दिया था. प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले में केंद्र, बिहार सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया और राजद की याचिका को लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न करने का निर्देश दिया.
सुनवाई के दौरान, विल्सन ने बताया कि 50% सीमा से अधिक आरक्षण को बढ़ाने की अनुमति विशेष परिस्थितियों में दी गई थी, जैसा कि 2022 में अपने ईडब्ल्यूएस आरक्षण मामले के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ ने फैसला दिया था. नील ऑरेलियो नून्स मामले में 2022 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ग्रेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल और डेंटल कोर्स के लिए ऑल इंडिया कोटा सीटों में ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षण संवैधानिक रूप से वैध है. विल्सन के अनुसार, इस फैसले का औचित्य बिहार में हाशिए पर रहने वाले समुदायों तक बढ़ाया जाना चाहिए.
राजद का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि बिहार की आबादी में पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी 85 प्रतिशत है और जनहित अभियान बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के अनुसार 50 प्रतिशत की सीमा वैध नहीं है, जहां प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को संवैधानिक माना गया था.
शीर्ष अदालत ने 29 जुलाई को बिहार में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में लागू कोटा बढ़ोतरी की बहाली की मांग करने वाली राज्य सरकार की याचिका स्वीकार कर ली, लेकिन अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया. इसने याचिकाओं के समूह को सितंबर 2024 में अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.
राज्य सरकार को बड़ा झटका देते हुए पटना हाईकोर्ट ने 20 जून के अपने फैसले में बिहार विधानसभा द्वारा 2023 में पारित संशोधनों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि ये संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत समानता के प्रावधान का उल्लंघन करते हैं. बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत सर्वेक्षण कराने के बाद कोटा बढ़ा दिया था. नवंबर 2023 में जारी एक अधिसूचना में मौजूदा आरक्षण कानूनों में संशोधन करने की मांग की गई.
कानून से राज्य में कुल आरक्षण 75 प्रतिशत हो जाता, इसमें अनुसूचित जातियों के लिए 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों के लिए 2 प्रतिशत, अति पिछड़ा वर्गों के लिए 25 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए 18 प्रतिशत तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 10 प्रतिशत शामिल होता. नीतीश कुमार सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए पटना उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गईं. याचिकाओं में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुसार आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता.
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FIRST PUBLISHED : September 7, 2024, 02:36 IST