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Shani Jayanti: 148 years made this wonderful coincidence, know muhurt | Shani Jayanti 2021: शनि जयंती पर 148 साल बना सूर्य ग्रहण का अदभुत संयोग, जानें पूजा का मुहूर्त

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ज्‍येष्‍ठ मास के कृष्‍ण पक्ष की अमावस्‍या को सूर्य पुत्र और कर्म फल दाता यानी कि न्‍याय के देवता माने जाने वाले शनिदेव की जयंती मनाई जा​ती है। इस वर्ष यह जयंती आज यानी कि 10 जून गुरुवार को है। इसी दिन सूर्य ग्रहण भी है और शनि जयंती के साथ यह एक दुर्लभ संयोग है। ज्योतिषविदों के अनुसार ऐसा संयोग 148 वर्ष के बाद बना है। इससे पहले शनि जयंती पर सूर्य ग्रहण 26 मई 1873 को हुआ था। हालांकि इस सूर्य ग्रहण में सूतक मान्‍य नहीं है। ऐसे में आप निश्चिंत होकर पूजा पाठ विधि विधान के साथ कर सकते हैं।

ज्योतिषाचार्य की मानें तो, चूंकि शनि जयंती पर लगने पर यह सूर्य ग्रहण भारत में आंशिक रूप से ही दिखाई दे रहा है। जबकि सूतक वहां मान्य होता है जहां ग्रहण दृष्टिगोचर होता है। ऐसे में ग्रहण के समय में जहां मंदिर बंद होते हैं, मांगलिक कार्य करना, खाना बनाना या खाना शुभ नहीं माना जाता है। इसके अलावा इस समय में निद्रा यानी कि सोना भी नहीं चाहिए। फिलहाल आइए जानते हैं शनि जयंती का महत्व और पूजा का मुहूर्त…

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शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 09 जून 2021 दोपहर 01 बजकर 57 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त: 10 जून 2021 शाम 04 बजकर 22 मिनट तक

मान्यता
शनि अमावस्या पर शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से शनिदेव की पूजा करने से साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा जैसे शनि से जुड़े दोषों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों के अनुसार जिन लोगों को हमेशा कष्ट, निर्धनता, बीमारी व अन्य तरह की परेशानियां होती हैं, उन्हें भगवान शनिदेव की पूजा जरूर करनी चाहिए।

इस दिन शनिदेव के मंदिर के साथ श्रीराम भक्त हनुमान जी के मंदिरों में पूजा पाठ होती है और बड़ी संख्या में श्रद्धालू पहुंंचते हैं। हालांकि कई जगह कोरोना लॉकडाउन है और महामारी के चलते मंदिर भी बंद हैं। ऐसे में घर पर रहकर ही आराधना कर सकते हैं। 

ऐसे करें शनिदेव की पूजा
– शनि जयंती के दिन स्नानादि के बाद विधि विधान से पूजा करना चाहिए। 
– एक लकड़ी के पाट पर काला कपड़ा बिछाएं।
– इस कपड़े पर शनि देव की प्रतिमा या फोटो या एक सुपारी रखें।
– इसके बाद दोनों ओर शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं।
– शनि स्वरूप के प्रतीक को जल, दुग्ध, पंचामृत, घी, इत्र से स्नान कराएं।
– शनि देव को इमरती, तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य लगाएं।
– नैवेद्य से पहले उन पर अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम और काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें।
– नैवेद्य अर्पण करके फल व ऋतु फल के संग श्रीफल अर्पित करें।
– पूजा के दौरान शनि स्त्रोत का पाठ करें।

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करें ये उपाय
– निर्धन जनों को भोजन कराएं या खाने-पीने की वस्तुओं का दान करें, तो शनि देव अति प्रसन्न हो जाते हैं।
– आप पर शनि देव की टेढ़ी नजर है, यानी साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव चल रहा है, तो काली गाय को बूंदी के लड्डू खिलाएं।
– काले घोड़े की नाल या नाव की कील का छल्ला बीच की अंगुली में धारण करें।
– कांसे के कटोरे को सरसों या तिल के तेल से भरकर उसमें अपना चेहरा देखकर दान करें।
– 800 ग्राम तिल तथा 800 ग्राम सरसों का तेल दान करें। काले कपड़े, नीलम का दान करें।

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